Sharat Saxena ने खुलासा, जैसे ही हिंदी फिल्मी इंडस्ट्री छोड़ी, साउथ के इस सुपरस्टार ने दिया रोल

निगेटिव रोल कुछ लकी नहीं रहे। जब ‘गुलाम’ रिलीज हुई थी उस समय फिल्म हिट हो गई थी। लोगों को हमारा काम भी अच्छा लगा लेकिन उसी समय गुलशन कुमार के साथ हादसा हो गया था। उसके बाद से तकरीबन चार साल तक फिल्म इंडस्ट्री शटडाउन रही थी।

By Priti KushwahaEdited By: Publish:Sun, 27 Jun 2021 05:28 PM (IST) Updated:Sun, 27 Jun 2021 05:28 PM (IST)
Sharat Saxena ने खुलासा, जैसे ही हिंदी फिल्मी इंडस्ट्री छोड़ी, साउथ के इस सुपरस्टार ने दिया रोल
Photo Credit - Sharat Saxena midday Photo Screenshot

स्मिता श्रीवास्तव, मुंबई। हिंदी सिनेमा में पांच दशक से सक्रिय अभिनेता शरत सक्सेना बीते दिनों अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज ‘शेरनी’ में शिकारी पिंटू भैया के किरदार में खूब सराहे गए। फिल्म और फिल्मी दुनिया के अनुभवों को लेकर स्मिता श्रीवास्तव से बातचीत के अंश ...

‘शेरनी’ में आपके अभिनय की काफी प्रशंसा हो रही है...

मैंने पहली बार किसी क्रिएटिव डायरेक्टर के साथ काम किया है। यह अलग किस्म की फिल्म है। करीब 50 साल के फिल्मी करियर में पहली बार क्रिटिकली क्लेम फिल्म में काम किया है। डायरेक्टर अमित मसुरकर अच्छी किस्म की फिल्में बनाते हैं। उन्होंने हमें जिम जाते देखा। वहां से हमें पिंटू भैया के रोल के लिए अप्रोच किया और हमें यह रोल मिल गया।

 

 

 

 

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फिल्म की कहानी मध्य प्रदेश से है और आप भी वहीं से है। वहां की कुछ यादें ताजा हुईं?

हम जबलपुर, भोपाल में थे। बेसिकली हम वहां पर पढ़ाई कर रहे थे। भोपाल में हमने स्कूलिंग की, फिर जबलपुर में इंजीनियरिंग की। जंगल-वंगल जाना नहीं होता था। हम पहली बार इस फिल्म की शूटिंग के लिए जंगल गए। बालाघाट का जंगल कान्हा नेशनल पार्क से लगा हुआ है। यहां लगे इतने बड़े पेड़ अपनी जिंदगी में आज तक नहीं देखे थे।

करियर की शुरुआत में आपने काफी संघर्ष किया। तब प्लान बी के बारे में नहीं सोचा था?

(हंसते हुए) जैसे ही सोचते थे कि फिल्म लाइन छोड़नी है कोई न कोई आकर रोल दे देता था। यह पता नहीं ईश्वर की मेहरबानी कहो या अभिशाप, हमेशा ही ऐसा रहा। एक बार मैंने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी थी तो कमल हासन साहब ने अपनी फिल्म में रोल दे दिया था। उसके बाद साउथ में काम चालू हो गया। छह साल तमिल, तेलुगु, मलयालम फिल्में करते रहे, फिर वापस मुंबई में काम मिलने लगा। 30 साल तक न्यूकमर कहलाते थे। 40 साल में फाइटर उसके 10-11 साल बाद एक्टर कहलाने लगे। बचपन से अभिनय करना ही हमारी ख्वाहिश रही है। इसी से हम खुद को खुश रखते हैं और सांत्वना भी देते हैं कि क्लास में हर इंसान फस्र्ट तो आता नहीं है, बस रेस में दौड़ना जारी है।

 

 

 

 

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सलमान खान की कई फिल्मों में आपने अभिनय किया है। उनके साथ कैसा अनुभव रहता है?

सलमान खान की हम पर काफी मेहरबानियां हैं। उनसे पहले उनके पिता सलीम साहब ने हम पर काफी एहसान किए हैं। हम नए-नए मुंबई आए थे तो सलीम साहब ने हमें ‘काला पत्थर’, ‘शक्ति’, ‘शान’, ‘दोस्ताना’ जैसी कई फिल्मों में रोल दिलाए। सलीम-जावेद साहब की वजह से हमको काफी फिल्मों में काम मिला। तब सलमान बच्चे थे। जब वह बड़े हुए तो सौभाग्य से हमको उनके साथ भी काम मिल गया। वह मेरे लिए हमेशा सपोर्टिव रहे।

 

 

 

 

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‘गुलाम’ फिल्म में निगेटिव किरदार में आपको काफी पसंद किया गया। कह सकते हैं कि निगेटिव किरदार आपके लिए लकी रहे?

नहीं जी। निगेटिव रोल कुछ लकी नहीं रहे। जब ‘गुलाम’ रिलीज हुई थी, उस समय फिल्म हिट हो गई थी। लोगों को हमारा काम भी अच्छा लगा, लेकिन उसी समय गुलशन कुमार के साथ हादसा हो गया था। उसके बाद से तकरीबन चार साल तक फिल्म इंडस्ट्री शटडाउन रही थी। तो कुल-मिलाकर ‘गुलाम’ से कोई फायदा नहीं हुआ था। उसके तीन-चार साल बाद ‘आगाज’ में विलेन का रोल मिला, लेकिन वह फिल्म नहीं चली। सो, विलेन का रोल करने से बेसिकली हमें कोई फायदा नहीं हुआ है। हां, जब कुछ फिल्मों में पिता के किरदार किए तो लोगों ने तब थोड़ा पसंद भी किया। ‘साथिया’ के बाद हमारा करियर ग्राफ चेंज हुआ। फिर कॉमेडी और इमोशनल रोल करते हुए हमें थोड़ी तरक्की मिली। विलेन का काम करने से हमारी कभी तरक्की नहीं हुई।

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