कम शब्दों में अभिनय करना पसंद करती हैं शेफाली शाह, स्क्रिप्ट चुनते वक्त रखती हैं इस बात का ख्याल

चार अलग-अलग शॉर्ट फिल्म को मिलाकर बनी इस फिल्म में शेफाली का किरदार अनकही शीर्षक की शॉर्ट फिल्म में अपने पति बेटी और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है। शेफाली बता रही हैं फिल्म व निजी जिंदगी से जुड़ी बातें।

By Pratiksha RanawatEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 04:20 PM (IST) Updated:Sun, 18 Apr 2021 07:46 AM (IST)
कम शब्दों में अभिनय करना पसंद करती हैं शेफाली शाह, स्क्रिप्ट चुनते वक्त रखती हैं इस बात का ख्याल
शेफाली शाह, मानव कौल- फोटो साभार: Instagram

 दीपेश पांडेय, मुंबई। बीते करीब ढाई दशक से हिंदी सिनेमा में सक्रिय शेफाली शाह आज से नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो रही एंथोलॉजी फिल्म 'अजीब दास्तान्स में नजर आएंगी। चार अलग-अलग शॉर्ट फिल्म को मिलाकर बनी इस फिल्म में शेफाली का किरदार 'अनकही' शीर्षक की शॉर्ट फिल्म में अपने पति, बेटी और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करती है। शेफाली बता रही हैं फिल्म व निजी जिंदगी से जुड़ी बातें...

अभिनय में शब्दों की जरूरत कम

इस फिल्म में शेफाली का किरदार नताशा अपनी बेटी और दोस्त से साइन लैंग्वेज (इशारों में) में बातचीत करती है। फिल्म के लिए शेफाली ने बाकायदा साइन लैंग्वेज सीखी। वह बताती हैं, 'मुझे डायलॉग्स के इस्तेमाल के बगैर सिर्फ अपने अभिनय से बातें बयां करना  पसंद है। अगर मेरा बस चले तो मैं हर फिल्म में बिना बोले अभिनय करूं। हर प्रोजेक्ट मिलने के बाद सबसे पहले मैं अपनी ही लाइनें कम करती हूं। जो भाव शब्दों के बगैर व्यक्त किए जा सकते हैं, उसके लिए बोलने की जरूरत नहीं। लिहाजा इस फिल्म को करना मेरे लिए सहज था। हां, साइन लैंग्वेज सीखना मेरे लिए चुनौती थी। अन्य चुनौतियों की बात करें तो मुझे आज भी कैमरे के सामने जाने में डर लगता है। मेरे लिए हर दिन शूट करना चुनौतीपूर्ण होता है।

आंखों में हमेशा सच नहीं दिखता

फिल्म में एक डायलॉग है कि आंखों से झूठ बोलना मुश्किल है। इस डायलॉग के संदर्भ में शेफाली कहती हैं, 'मुझे झूठ बोलना बहुत बोरिंग लगता है। एक झूठ के बाद दूसरा, दूसरे के बाद तीसरा, इस तरह से सौ झूठ हो जाते हैं। झूठ बोलने में बहुत मेहनत लगती है और मैं वह नहीं कर सकती। मैं ऐसी परिस्थिति में जाना ही नहीं पसंद करती, जहां मुझे झूठ बोलने की जरूरत पड़े। हम हर चीज में ईमानदारी से प्रतिक्रिया दे सकते हैं। वैसे छोटी-छोटी बातों में मैं भी झूठ बोल देती हूं। जैसे अगर किसी जरूरी काम के बीच मेरा बेटा फोन करके मुझसे ओटीपी मांगता है तो मैं उससे झूठ बोल देती हूं कि ओटीपी आया ही नहीं। रही बात आंखों से झूठ बोलने की तो कई लोग इतने आत्मविश्वास के साथ झूठ बोलते हैं कि उनकी आंखें भी झूठ बोल देती हैं।

त्वरित फैसले लेती हूं

स्क्रिप्ट चयन को लेकर अपनी प्राथमिकताओं के बारे में शेफाली बताती हैं, '(हंसते हुए) पहली बात तो यह कि मेरे पास कई विकल्प होते ही नहीं हैं। प्रोजेक्ट को चुनने के लिए मैंने कोई खास नियम नहीं बनाया है। जो कहानी, जो

किरदार मेरे दिल को छूते हैं और मेरी क्षमता को चुनौती देते हैं, वह प्रोजेक्ट मुझे करना होता है। फिर वह किरदार छोटा है या बड़ा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। मैंने अपने करियर में कभी कोई योजनाएं नहीं बनाई, दिमाग में जो त्वरित फैसला आया उसी पर काम करती हूं। कुछ खास तरह के किरदारों को प्राथमिकता देकर मैं खुद को सीमित नहीं करना चाहती हूं। मैं हर वह काम करना चाहती हूं, जो मैं कर सकती हूं। अगर मैं कर सकूं तो मैं एलियन का भी किरदार निभाना पसंद करुंगी।

किरदार के जीवन को समझना जरूरी

शेफाली अपने किरदार को शूट करने से पहले उसके जीवन को समझना जरूरी मानती हैं। वह कहती हैं, 'बहुत से कलाकार पहले सीन पर काम करते हैं, लेकिन मैं सीन पर सबसे अंत में काम करती हूं। मेरे हिसाब से सीन तो किरदार के जीवन का सिर्फ एक हिस्सा मात्र होता है, सबसे पहले मैं उसके जीवन को समझने की कोशिश

करती हूं। परिस्थितियों के हिसाब से कैमरे के सामने चीजें अपने आप हो जाती हैं।

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