वर्षा ऋतु में सावन का खुशनुमा एहसास है मेघ मल्हार, फिल्मी गीतों में हुआ सबसे ज्यादा इस राग का प्रयोग

आज से आगमन हो गया है श्रावण मास का। जब प्रकृति हरियाली का आवरण ओढ़ नई-नवेली दुल्हन सी लगती है। ऐसे मौसम में स्वत ही संगीत की ओर ध्यान चला जाता है। इस मौसम में संगीतप्रेमियों का पसंदीदा राग है मेघ मल्हार।

By Ruchi VajpayeeEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 03:11 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 03:11 PM (IST)
वर्षा ऋतु में सावन का खुशनुमा एहसास है मेघ मल्हार, फिल्मी गीतों में हुआ सबसे ज्यादा इस राग का प्रयोग
Image Source: rain Photo From Instagram Page

मुंबई ब्यूरो,डॉ. संजय स्वर्णकार। जाता है कि राग मेघ मल्हार के गायन-वादन से संगीतज्ञ वर्षा ऋतु के प्रारंभिक परिवेश का सृजन करते थे। भारतीय फिल्म संगीत में भी इसकी भावपूर्ण प्रस्तुतियां मिलती हैं। आइए जानते हैं कि क्या है राग मेघ मल्हार, कैसे होता है इसका गायन और क्या होता है इसका मन पर असर ...

आज से आगमन हो गया है श्रावण मास का। जब प्रकृति हरियाली का आवरण ओढ़ नई-नवेली दुल्हन सी लगती है। ऐसे मौसम में स्वत: ही संगीत की ओर ध्यान चला जाता है। इस मौसम में संगीतप्रेमियों का पसंदीदा राग है मेघ मल्हार।

मेघ मल्हार को मल्हार अंग से गाया जाता है

भारतीय शास्त्रीय संगीत की यह विशेषता है कि इसमें अलग-अलग समय और मौसम के राग बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है मेघ मल्हार। मेघाच्छन्न आकाश, उमड़ते-घुमड़ते बादलों की गर्जना और वर्षा के प्रारंभ की अनुभूति कराने की क्षमता रखने वाला यह राग खुशनुमा एहसास कराने के लिए पर्याप्त है। हालांकि मधुमाद सारंग भी मेघ मल्हार से मिलता-जुलता है मगर इनके गायन का तरीका भिन्न है क्योंकि मधुमाद सारंग में सारंग का अंग नजर आता है तो वहीं मेघ मल्हार को मल्हार अंग से गाया जाता है।

ऐसा है राग मल्हार

काफी थाट से उत्पन्न हुए मेघ मल्हार को मेघ राग भी कहते हैं। कोमल निषाद से शळ्रू होने वाला यह राग पांच सुरों (नि, सा, रे, म, प) का समूह होता है, जिनको औडव कहते हैं। इसका वादी स्वर षड्ज (सा) और उससे कम लगने वाला स्वर है पंचम (प)। इसके रिषभ(रे) पर सदैव मध्यम(म) का कण लगाया जाता है। जब ‘रे’ पर आंदोलन करेंगे तो ‘म’ का कण लगता है। जब ‘रे’, ‘प’ दो सुर लगते हैं तो इनकी संगत मल्हार का सूचक होती है। रिषभ आंदोलन के साथ इस राग को पहचानने में सुगमता होती है। इसमें धैवत (ध), गंधार(ग) दोनों स्वर निषिद्ध हैं, वर्जित बताए गए हैं। इस राग में मध्यम बहुत ज्यादा प्रभावी है अर्थात इसका खूब प्रयोग होता है। कुछ विद्वान इसमें कोमल गंधार का अल्प प्रयोग भी करते हैं।

भारतीय शास्त्रीय संगीत में बंदिश का बहुत महत्व है

मेघ मल्हार का गायन तीनों सप्तकों (मंद्र सप्तक, मध्य सप्तक व तार सप्तक) में किया जाता है। मंद्र अर्थात नीचे के स्वर, मध्य अर्थात बीच के व तार अर्थात ऊपर के स्वर, इस प्रकार यह तीनों सप्तकों में गाया जाने वाला राग है। चूंकि यह काफी थाट का राग है इसलिए इसमें कोमल निषाद (नि) का मुख्य प्रयोग होता है। कुछ परंपरा में मेघ मल्हार में शुद्ध निषाद का भी प्रयोग होता है और कुछ लोग वर्जित स्वरों का भी प्रयोग कर देते हैं, लेकिन हमारे भारतीय शास्त्रीय संगीत की बंदिश(स्वर, पद और ताल) का बड़ा महत्व है, जिनका पालन आवश्यक होता है।

मल्हार के कई प्रकार हैं। सूर मल्हार, मियां मल्हार, नट मल्हार, जयंत मल्हार के साथ-साथ मेघ मल्हार इसका एक प्रकार है।

यह वर्षाकालीन राग है 

मेघ अर्थात बादल और मल्हार का अर्थ है वर्षा ऋतु में गाया जाने वाला एक प्रकार का राग। पांच सुरों के इस राग में जब ‘म’, ‘रे’, ‘प’ तीन सुरों का एक साथ प्रयोग होगा तो यह मल्हार अंग से संबंधित होगा। इसी से ही इसकी पहचान हो जाती है। कुछ इसमें ‘स’ पर अलापचारी ज्यादा करते हैं तो कुछ ‘प’ पर भी रुकते हैं। यह वर्षाकालीन राग है, जो सिद्धांतत: रात्रि के द्वितीय प्रहर में गाया जाता है। इस ऋतु प्रधान राग के बारे में यह किंवदंती है कि जैसे संगीत सम्राट तानसेन ने दीपक राग गाया तो उनके शरीर की प्रचंड गर्मी इसी राग द्वारा शांत की गई थी। कुछ विद्वानों का यह अभिमत है कि तब तानसेन की ही पुत्री ने मेघ राग गाया था, तो कुछ का अभिमत है कि उनकी पत्नी ने गाया था। इस पर विभिन्न मत व्याप्त हैं।

भारतीय सिनेमा में इस राग का सबसे ज्यादा प्रयोग हुआ है

हिंदी सिनेमा के कुछ गीतों में भी मेघ मल्हार के प्रयोग नजर आते हैं। ‘दुख भरे दिन बीते रे भैया’(मदर इंडिया, 1957), ‘आ लौट के आजा मेरे मीत’(रानी रूपमती, 1957), ‘तुम अगर साथ देने का वादा करो’ (हमराज, 1967), ‘कहां से आए बदरा, घुलता जाए कजरा’ (चश्मेबद्दूर,1980) मेघ मल्हार के प्रमुख उदाहरण हैं। भारतीय सिनेमा में तमिल फिल्मों में इस राग का सर्वाधिक प्रयोग हुआ है। मधुर और शांत राग होने के कारण कई बार इस राग में विरह का भी वर्णन होता है। जब बादल बरसते हैं, तब प्रीतम से दूर प्रेयसी के मन से हूक निकलती है कि-

‘गरजे घटा घन कारे कारे,/पावस ऋतु आई,

दुलहन मन भाई,/रैन अंधेरी बिजुरी डरावे

सदा रंगीले मोहम्मद शाह/पिया घर न आए

इस राग से मन शांत होता है

वैसे तो हमारे शास्त्रीय संगीत में बहुत से राग हैं जिनके माध्यम से हम वात विकार, कफ विकार, आम वात, कुल मिलाकर शारीरिक व्याधियों और मानसिक तनावों को दूर कर सकते हैं। इन रागों में मेघ मल्हार बहुत ही गंभीर और मधुर प्रकृति का राग है। इसकी सांगीतिक ध्वनि सुनने से शरीर को आराम तो मिलता है साथ ही उच्च रक्तचाप, सिर दर्द, अनिद्रा जैसी तकलीफों से राहत भी मिलती है और शांति का अनुभव होता है।

मेघ मल्हार रात्रि के दूसरे पहर का राग है

इसमें कोई दोराय नहीं कि शास्त्रीय संगीत को सुनकर ही आप संगीत के असली स्वरूप को जान सकते हैं। हर राग का गायन समय निश्चित बताया गया है। इसकी वजह यह है कि जिस राग को जिस समय, प्रहर, ऋतु के अनुसार गाया जाए तो उसका जो प्रभाव है वह तभी पड़ता है। पहले समय में जब बैठकें होती थीं तो शाम को शुरू होकर सुबह तक चलती थीं। तब प्रहर के अनुसार अलग-अलग राग गाए जाते थे। यद्यपि, जैसा मैंने पहले कहा कि, मेघ मल्हार रात्रि के दूसरे प्रहर का राग है किंतु सीखने-सिखाने के लिए इसे किसी भी वक्त गाया जा सकता है। अगर आज के वक्त में गुरु को यह राग सिखाना है तो वह वर्षा या रात्रि का इंतजार तो नहीं कर सकेगा। इसी तरह यदि कहीं बैठक में किसी ने मेघ मल्हार की प्रस्तुति का प्रस्ताव दिया तो अपवाद के तौर पर इसे गाना पड़ जाता है।

तानसेन के गुरु भी गाते थे ये राग

हालांकि कुछ परंपरागत गायक ऐसे भी थे जो रीति-रिवाज, ऋतु, प्रहर, बंदिश, समय का ध्यान रखते हुए ही गायन करते अन्यथा बादशाह तक को भी मना कर देते थे। तानसेन के गुरु स्वामी हरिदास भी इसी प्रकार अपने हृदय की आज्ञा से ही गाते थे। वास्तव में भारतीय शास्त्रीय संगीत ऐसे ही संत साधकों की स्वर तपस्या से समृद्ध हुआ है, जिन्होंने दरबारी सुख की जगह अपनी कुटिया में कीर्तन को चुना और संगीत को ही ईश्वर की आराधना बना दिया।

(लेखक प्रख्यात शिक्षाविद् और शास्त्रीय संगीत के अध्येता हैं)

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