त्योहारों के मौसम में सिनेमाघरों की रौनक, हालीवुड से लेकर बालीवुड तक की फिल्में होंगी रिलीज

कोरोना संक्रमण की धीमी होती रफ्तार ने सिनेमाघरों में दर्शकों की संख्या कुछ राज्यों में बढ़ाई है। साल की शुरुआत में रिलीज साउथ की फिल्म ‘मास्टर’ ने बाक्स आफिस पर धमाल मचाया था। हाल ही में रिलीज हुई पंजाबी फिल्म ‘हौसला रख’ को पंजाब में बड़ी ओपनिंग मिली है।

By Priti KushwahaEdited By: Publish:Fri, 22 Oct 2021 11:42 AM (IST) Updated:Fri, 22 Oct 2021 11:42 AM (IST)
त्योहारों के मौसम में सिनेमाघरों की रौनक, हालीवुड से लेकर बालीवुड तक की फिल्में होंगी रिलीज
Hollywood to Bollywood Movies Will Be Released During The Festive Season In Cinema Hall Read Full Details Here

स्मिता श्रीवास्तव व प्रियंका सिंह, ​मुंबई। कोरोना संक्रमण की रफ्तार मंद पड़ने के बाद आज से महाराष्ट्र में सिनेमाघर खुल रहे हैं। इस बात से उत्साहित निर्माता ‘सूर्यवंशी’, ‘83’, ‘सत्यमेव जयते 2’, ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’, ‘आदिपुरुष’ जैसी बड़ी फिल्मों की रिलीज तारीख घोषित कर चुके हैं। फिल्मों की करीब 30 प्रतिशत कमाई महाराष्ट्र के थिएटर्स से होती है। वहां 50 प्रतिशत क्षमता के साथ सिनेमाघर खोले गए हैं। ऐसे में बड़े बजट में बनी फिल्मों की कमाई कैसे निकलेगी, बड़ी फिल्में दर्शकों को लुभाने में कितनी कारगर होंगी, एकसाथ रिलीज हो रही हालीवुड फिल्मों से बालीवुड फिल्मों को कैसी टक्कर मिलेगी? इन पहलुओं की पड़ताल कर रही हैं स्मिता श्रीवास्तव व प्रियंका सिंह...

कोरोना संक्रमण की धीमी होती रफ्तार ने सिनेमाघरों में दर्शकों की संख्या कुछ राज्यों में बढ़ाई है। साल की शुरुआत में रिलीज साउथ की फिल्म ‘मास्टर’ ने बाक्स आफिस पर धमाल मचाया था। हाल ही में रिलीज हुई पंजाबी फिल्म ‘हौसला रख’ को पंजाब में बड़ी ओपनिंग मिली है। डिस्ट्रीब्यूटर्स और एक्जीबिटर्स इस संकेत को सकारात्मक मान रहे हैं।

अच्छे हैं संकेत:

फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर समीर दीक्षित कहते हैं, ‘थिएटर मालिकों की अपनी कुछ डिमांड हैं। सिंगल स्क्रीन और मल्टीप्लेक्स का बिजली खर्च ज्यादा होता है। टिकट के सर्विस चार्ज बढ़ाने की भी बातें हो रही हैं, जिसका इस्तेमाल थिएटर के रखरखाव के लिए किया जाता है। सिंगल स्क्रीन को एक ब्लाकबस्टर फिल्म मिल जाए तो उनका सालभर का खर्च निकल आता है। 200 प्रतिशत की कमाई हो जाती है। बड़ी फिल्में उन्हें इस नुकसान से बचाएंगी। जर्मनी, अमेरिका, चीन सब जगह थिएटर खुल चुके हैं। लोग भी छोटे पर्दे पर कंटेंट देखकर उकता चुके हैं। ऐसे में सिनेमाघरों में फिल्मों को देखने दर्शक आएंगे। रोहित शेट्टी चाहते तो फिल्म ‘सूर्यवंशी’ को 350 करोड़ में डिजिटल प्लेटफार्म को बेच देते, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। थिएटर का गणित ऐसा है कि वह यहां दोगुना वसूल कर लेंगे। सैटेलाइट के साथ डिजिटल प्लेटफार्म अब फिल्मों के लिए कमाई का एक नया जरिया बनकर उभरेगा।’

बदलेगी सुपरहिट और हिट की परिभाषा:

बाक्स आफिस का कलेक्शन फिल्मों की नियति तय करता है। निर्माता रानी स्क्रूवाला कहते हैं, ‘सिनेमाघर और डिजिटल प्लेटफार्म के बीच विकल्प की जरूरत नहीं है। दोनों साथ चलेंगे तो अच्छा होगा। कहानियां किसी भी माध्यम पर हों, दर्शक उन्हें ढूंढ़ निकालेंगे। जब सिंगल स्क्रीन के सामने मल्टीप्लेक्स आए थे तब भी सवाल उठे थे, पर दोनों को ही दर्शक मिले। जो बदलेगा, वह है हिट और सुपरहिट के बीच की परिभाषा। फिल्म अब कहीं भी सुपरहिट हो सकती हैं। सुपरहिट का टैग बाक्स आफिस के कलेक्शन पर निर्भर नहीं करेगा। वह फिल्म दर्शकों से कितना कनेक्ट कर पाई, क्या वह फिल्म सदाबहार बनी? इससे तय होगा।’

त्योहार होंगे गुलजार:

बड़ी फिल्मों को त्योहार पर रिलीज करने का चलन पुराना है। ‘सूर्यवंशी’ फिल्म दीवाली पर रिलीज होगी, ‘83’ फिल्म क्रिसमस पर आएगी। इस पर एग्जीबिटर अक्षय राठी कहते हैं, ‘वैक्सीनेशन के बाद लोग अब परिवार के साथ बाहर निकलना सुरक्षित समझ रहे हैं। इसका असर यकीनन थिएटर में रिलीज होने वाली फिल्मों के कलेक्शन पर पड़ेगा। हर फिल्म को अच्छा विंडो मिलेगा। सिर्फ त्योहार पर नजरें नहीं हैं। तेलुगु फिल्म ‘पुष्पा’ और अंग्रेजी फिल्म ‘स्पाइडर मैन नो वे होम’ जैसी फिल्में 17 दिसंबर को रिलीज हो रही हैं। नए साल पर ‘जर्सी’ फिल्म आ रही है। एक हफ्ते बाद ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ और ‘आरआरआर’ रिलीज होंगी। जिन्हें फेस्टिवल मिल गए, उन्होंने ले लिए, जिन्हें नहीं मिले वे भी आएंगे। इंतजार का फल सबको मिलेगा।’

बिजनेस की शर्र्तों में बदलाव:

अक्षय आगे कहते हैं, ‘महामारी से पहले कमर्शियल टम्र्स होते थे, उसमें फिल्म की रिलीज के आठ हफ्ते बाद ही वे फिल्में डिजिटल प्लेटफार्म पर जाया करती थीं। आठ हफ्ते के विंडो को चार हफ्ते कर दिया गया है, ताकि उन्हें कुछ प्रीमियम मिल सके। सिनेमाघर पूरा सपोर्ट उन फिल्मों को करेंगे, जिन्होंने इंतजार किया है। जितना बिजनेस महामारी से पहले होता था, उतना बिजनेस अब भी होगा। पूरी कोशिश यही होगी कि दर्शकों पर खर्च का अतिरिक्त भार न पड़े। खाना-पीना, पार्किंग सब कंट्रोल में रहे। सिनेमाघरों की क्षमता कई जगहों और विदेश में अब भी 50 प्रतिशत ही है, ऐसे में जब पूरी क्षमता के साथ थिएटर्स खुलेंगे तो यह विंडो आठ हफ्तों का हो जाएगा। फिल्मों को ज्यादा वक्त तक सिनेमाघर में रखने से निर्माता को भी फायदा होता है।’

बड़ी फिल्मों के आने से होगा छोटी फिल्मों का फायदा:

बड़ी फिल्मों के साथ कई छोटी और दूसरी भाषा की फिल्में भी रिलीज का इंतजार कर रही हैं। ऐसे में बड़ी फिल्मों की रिलीज के बीच का अंतर छोटी फिल्मों के लिए फायदेमंद साबित होगा। समीर कहते हैं, ‘मराठी में 200 से ज्यादा फिल्में रुकी हुई हैं। हमने बड़ी फिल्मों के एक-दो हफ्ते के गैप में उन फिल्मों को रिलीज करने के बारे में सोचा है। पब्लिक थिएटर तक आने लगी तो छोटी फिल्में चलने लगती हैं, मसलन ‘सूर्यवंशी’ जैसी बड़ी फिल्म की टिकट अगर नहीं मिली तो वे दूसरी फिल्में देख लेते हैं। एक फिल्म चलने से दूसरी फिल्म चलने लगती है।’

फार्मूला बदलने की जरूरत नहीं:

‘सत्यमेव जयते 2’ फिल्म के निर्देशक मिलाप जवेरी कहते हैं, ‘महामारी के बाद अब जब थिएटर खुले हैं तो बड़ी फिल्मों का रिलीज होना जरूरी है। यही वजह है कि ‘सूर्यवंशी’, ‘83’, ‘लाल सिंह चड्ढा’, ‘सत्यमेव जयते 2’ की रिलीज तारीख की घोषणा हो गई है। दर्शक भारी तादाद में सिनेमाघर में तभी आएंगे जब उन्हें बड़ी फिल्में देखने का अवसर दिया जाएगा। मेरा मानना है कि कहानी कहने का फार्मूला नहीं बदलेगा। रियलिस्टिक फिल्मों के साथ कमर्शियल फिल्मों के अपने दर्शक हैं। मैं खुद डायलागबाजी वाली फिल्में देखते हुए बड़ा हुआ हूं, जिसमें तालियां और सीटियां बजती हैं। दर्शकों में वह ऊर्जा आज भी है।’

दर्शक फिल्में देखेंगे, डिजिटल हो या थिएटर:

‘प्यार का पंचनामा’ सीरीज, ‘सोनू के टीटू की स्वीटी’ और ‘धमाका’ फिल्मों के अभिनेता कार्तिक आर्यन कहते हैं, ‘अब दर्शकों का झुकाव थिएटर और डिजिटल प्लेटफार्म दोनों तरफ है। ऐसा नहीं है कि बाक्स आफिस के लिए अलग फिल्म बनेगी, स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म के लिए अलग बनेगी। आज की तारीख में दर्शकों की दिलचस्पी कहानी में है। अगर उन्हें ट्रेलर अच्छा लगता है तो वे उसके लिए थिएटर जाएंगे, घर पर टीवी या लैपटाप पर देखेंगे, लेकिन देखेंगे जरूर। हमारे लिए यही जरूरी है कि फिल्म लोगों तक पहुंचनी चाहिए। बाक्स आफिस पर यह दबाव रहता है कि आडियंस फिल्म देखने के लिए आएगी या नहीं। स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म पर क्रेडिबिलिटी का दबाव होता है।’

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