'लगान' से लेकर '83' और 'जर्सी' तक देश के गौरव को बयां करती हैं ये किक्रेट पर आधारित फिल्में

क्रिकेट महज एक खेल नहीं बल्कि देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोने सतत प्रयास व संघर्ष की प्रेरणा देने का माध्यम भी है। जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारतीय टीम जीत हासिल करती है तो हमारा हृदय गर्व व स्वाभिमान के भावों से भर उठता है।

By Ruchi VajpayeeEdited By: Publish:Fri, 03 Dec 2021 03:00 PM (IST) Updated:Fri, 03 Dec 2021 03:00 PM (IST)
'लगान' से लेकर '83' और 'जर्सी' तक देश के गौरव को बयां करती हैं ये किक्रेट पर आधारित फिल्में
भारत के विश्व विजेता बनने पर आधारित फिल्म ‘83’

प्रियंका सिंह व दीपेश पांडेय। स्वाधीनता पूर्व की पृष्ठभूमि में गढ़ी गई आशुतोष गोवारिकर की फिल्म ‘लगान’ में क्रिकेट के खेल के मैदान में अपने जुनून के बल पर अंग्रेजों को अपनी जायज बात मानने के लिए विवश करते नजर आते हैं ग्रामीण। क्रिकेट महज एक खेल नहीं, बल्कि देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोने, सतत प्रयास व संघर्ष की प्रेरणा देने का माध्यम भी है। जब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारतीय टीम जीत हासिल करती है तो हमारा हृदय गर्व व स्वाभिमान के भावों से भर उठता है। भारत के विश्व विजेता बनने पर आधारित फिल्म ‘83’, शाहिद कपूर की फिल्म ‘जर्सी’, भारतीय महिला क्रिकेटर मिताली राज व झूलन गोस्वामी की बायोपिक जल्द ही आएंगी।

क्रिकेट के खेल से सिनेमा का प्यार पुराना है। साल 1959 में रिलीज हुई फिल्म ‘लव मैरिज’ में देव आनंद का किरदार अपने गृहनगर झांसी के लिए क्रिकेट खेलता है। फिल्म का निर्देशन सुबोध मुखर्जी ने किया था। फिर साल 1990 में देव आनंद अपने ही निर्देशन में बनी फिल्म ‘अव्वल नंबर’ लेकर आए। फिल्म में आमिर ने क्रिकेटर की भूमिका निभाई थी। इसके बाद वर्ष 1984 में आई फिल्म ‘आल राउंडर’, जो साल 1983 में क्रिकेट विश्व कप में भारत की ऐतिहासिक जीत के बाद क्रिकेट पर बनी पहली फिल्म रही। ‘आल राउंडर’ में कुमार गौरव ने क्रिकेटर की भूमिका निभाई थी। इसके बाद ‘लगान’, ‘इकबाल’, ‘जन्नत’, ‘दिल बोले हड्डिपा’, ‘पटियाला हाउस’, ‘अजहर’, ‘काय पो छे’, ‘एमएस धौनी-द अनटोल्ड स्टोरी’ जैसी तमाम फिल्में रिलीज हुईं। ‘लगान’ के निर्देशक आशुतोष गोवारिकर कहते हैं कि जब भी कोई फिल्ममेकर फिल्म बनाता है तो उसके मन में यही भावना होती है कि ऐसी फिल्म बनाऊं, जो लोगों को सदियों तक याद रहे। ‘लगान’ को नई पीढ़ी ने भी देखा है, क्योंकि वह क्रिकेट के खेल पर आधारित फिल्म थी, ऐसे में वह प्रासंगिक बनी रही। जो भी फिल्म की कहानी सुनता था, वह यही कहता था

कि फिल्म में हीरो ने धोती पहनी है, क्रिकेट है, पीरियड फिल्म है, अवधी भाषा में बनने वाली है, कैसे यह फिल्म चल पाएगी। अंग्रेजों के खिलाफ कैसे अहिंसा का रास्ता अपनाते हुए क्रिकेट के जरिए अपना रोष व्यक्त किया जा सकता है, उस इमोशन ने मुझे इस फिल्म को बनाने के लिए प्रेरित किया था।

आम किरदारों से ज्यादा मेहनत:

जब बात खेल की होती है तो उस खेल की तकनीक जानना बहुत जरूरी है। पर्दे पर दर्शक करीब से देख पाते हैं, ऐसे में अगर तकनीक गलत हुई तो वे फिल्म को नकार देंगे। ‘जर्सी’ फिल्म में शाहिद एक ऐसे क्रिकेटर की भूमिका में हैं, जो क्रिकेट छोड़ चुका है, लेकिन क्रिकेट का मैदान उसे आकर्षित करता रहता है। शाहिद कहते हैं कि मुझे लगता है कि खेलों पर आधारित कोई भी फिल्म करना बहुत मुश्किल होता है, इन फिल्मों को पर्याप्त समय देना पड़ता है। जब मैं स्कूल में था तो खूब क्रिकेट खेलता था। इस फिल्म की स्क्रिप्ट सुनने के बाद मुझे लगा कि यह तो मैं कर सकता हूं, लेकिन उस समय मैं भूल गया था कि स्कूल में क्रिकेट खेले हुए 25 वर्ष हो गए हैं। जब मैंने क्रिकेट खेलना शुरू किया तोे एहसास हुआ कि मुझे खुद पर काफी काम करना है। 40 वर्ष की उम्र में सीजन बाल के साथ खेलने और उससे चोट खाने पर बहुत दर्द होता है। क्रिकेट हमारे देश का सबसे लोकप्रिय खेल है। शूटिंग शुरू होने से पहले मैंने करीब चार महीने क्रिकेट की प्रैक्टिस की। लाकडाउन के बाद फिल्म की शूटिंग दोबारा शुरू होने से पहले भी मैंने करीब ढाई महीने प्रैक्टिस की। अगर आप ऐसी चीजों को प्रामाणिकता के साथ नहीं कर पाते हैं तो कहानी कितनी भी अच्छे से लिखी गई हो, वह खराब हो जाती है।

क्रिकेट की राजनीति भी दिलचस्प:

फिल्म ‘पटियाला हाउस’ में जहां एक ओर अक्षय का किरदार विदेश में नस्लभेद की वजह से राजनीति के चलते क्रिकेट नहीं खेल पाता है, वहीं फिल्म ‘जन्नत’ में क्रिकेट की दुनिया में मैच फिक्सिंग के उस पहलू को छुआ गया था, जिसको लेकर बातें कम ही होती हैं। इस फिल्म के लेखक संजय मासूम कहते हैं कि फिक्सिंग के जो टम्र्स होते हैं, कैसे और क्या पैंतरे वे इस्तेमाल करते हैं, उसके बारे में रिसर्च करनी पड़ी थी। जो खेल स्टेडियम में खेला जा रहा है, दर्शक और क्रिकेट प्रेमी वही देखते हैं, लेकिन कई बार खबरें मैच फिक्सिंग को भी लेकर आती हैं। उसके बैकड्राप पर भी काल्पनिक कहानी बनाने का स्कोप था। मैच फिक्सिंग की दुनिया लोगों ने नहीं देखी थी, उसमें हमने थोड़ी लिबर्टी लेते हुए कुछ चीजें रिसर्च करके जोड़ीं व कहानी को दिलचस्प बनाया। यह मुश्किल था, क्योंकि लोग क्रिकेटर्स को भगवान की तरह पूजते हैं। हमें फिल्म के दृश्य सही से बनाने थे, बिना किसी खिलाड़ी और दर्शकों को दुख पहुंचाए। सिनेमा के ही दर्शक क्रिकेट भी देखते हैं। जन्नत’ में मैच फिक्सिंग की दुनिया दर्शक पहली बार देख रहे थे। इस पर कहानी लिखना चुनौतीपूर्ण था, लेकिन क्रिकेट फैन होने की वजह से लिखने में

मजा आने लगा था। लोग जानना चाहते हैं कि जिस दुनिया को हम पसंद करते हैं, उसके भीतर क्या चीजें होती हैं, कैसी राजनीति होती है। इसके आसपास जो भी चीजें घटती हैं, वे दिलचस्पी पैदा करती हैं। किसी भी कहानी में क्रिकेट एक ऐडेड आकर्षण वाला मामला हो जाता है।

असल लोकेशन महत्वपूर्ण :

क्रिसमस के मौके पर रिलीज होने वाली फिल्म ‘83’ पिछले डेढ़ साल से रिलीज का इंतजार कर रही है। फिल्म के निर्देशक कबीर खान पहले ही कई बार कह चुके हैं कि ऐतिहासिक जीत पर बनी इस फिल्म का विषय कभी

पुराना नहीं हो सकता है। ऐसे में रिलीज में देरी से कोई दिक्कत नहीं होगी। इस फिल्म की शूटिंग चार महीने ब्रिटेन में हुई है, जबकि करीब डेढ़ महीने की शूटिंग भारत में की गई है। इससे पहले फिल्म की कास्ट ने करीब 15 दिनों के लिए धर्मशाला में ट्रेनिंग कैंप किया था, लगभग उतने ही दिनों की ट्रेनिंग मुंबई में भी की गई थी। कबीर ने फाइनल मैच को क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लंदन के लाड्र्स स्टेडियम में ही शूट किया। साल 1983 में विश्व कप विजेता टीम का हिस्सा रह चुके विकेट कीपर सैयद किरमानी का किरदार फिल्म 83’ में अभिनेता साहिल खट्टर ने निभाया है। वह कहते हैं कि हमने लाड्र्स के मैदान पर वास्तविक पिच पर क्रिकेट खेला है। जिम्बाब्वे के साथ जो मैच हुआ था, जिसमें कपिल देव और सैयद किरमानी ने 126 रनों की पार्टनरशिप की थी, वह मैच भी हमने असल स्टेडियम में ही खेला है। हम सभी कलाकारों के बीच वैसी ही केमिस्ट्री थी, जैसे वल्र्ड कप में भारतीय टीम के खिलाड़ियों के बीच दिखी थी। हमने इस फिल्म के लिए जो भी सीखा, उसका श्रेय मैं हमारे कोच बलविंदर

सिंह संधू को देना चाहूंगा। ट्रेनिंग के बाद मैं एक टेक में कैच लेने लग गया था। किरमानी सर ने खुद सेट पर खड़े होकर मुझे खेल के पैंतरे सिखाए हैं कि वह कैसे अंपायर के सामने आकर अपील करते थे। क्रिकेट वास्तव में एक खेल से अधिक है। यह हमें एकजुट होना, संघर्ष करना व विपरीत परिस्थितियों में हौसला बनाए रखना सिखाता है।

महिला क्रिकेटर भी हैं लाजवाब

भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान झूलन गोस्वामी और मौजूदा भारतीय एक दिवसीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तान मिताली राज पर फिल्में बन रही हैं। झूलन गोस्वामी का किरदार अनुष्का शर्मा निभाने वाली हैं, जबकि ‘शाबाश मिट्ठू’ में मिताली का किरदार तापसी पन्नू निभा रही हैं। तापसी ने मिताली की दोस्त और उनके साथ खेल चुकी नूशिन अल खदीर से क्रिकेट की बारीकियां भी सीखी हैं। नूशिन ने मिताली के व्यक्तित्व की अन्य बारीकियों से भी तापसी का परिचय करवाया है। तापसी कहती हैं कि मैं भले ही क्रिकेट की फैन हूं, लेकिन मैंने यह खेल पहले कभी नहीं खेला है। पिच पर उतरकर इसे खेलना एक बड़ी चुनौती है। दबाव में बेहतर परफार्म करना मेरी और मिताली दोनों की एक जैसी खासियत है।

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