आर्किटेक्ट बनना चाहते थे पापोन, बन गए गायक, जागरण से की विस्तार से बातचीत

Papon on his musical journey and Bollywood उनकी गायिकी में एंविएंट इलेक्ट्रॉनिका और इलेक्ट्रॉ गजल के साथ नए जमाने और भारतीय क्लासिकल साउंड्स का भी अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है।

By Manoj VashisthEdited By: Publish:Fri, 24 Jan 2020 06:12 PM (IST) Updated:Fri, 24 Jan 2020 06:12 PM (IST)
आर्किटेक्ट बनना चाहते थे पापोन, बन गए गायक, जागरण से की विस्तार से बातचीत
आर्किटेक्ट बनना चाहते थे पापोन, बन गए गायक, जागरण से की विस्तार से बातचीत

नई दिल्ली, अभिनव गुप्ता। बॉलीवुड पर रैप और पॉप म्यूजिक के बढ़ते वर्चस्व के बीच भी कुछ गायक मेलॉडी को ही बॉलीवुड म्यूजिक की आत्मा मानते हैं। पापोन नाम से लोकप्रिय अंगराग महंत ऐसे ही गायकों में शुमार हैं। असमिया लोकगीत की बड़ी हस्तियों के घर पैदा हुए पापोन ने भारतीय क्लासिकल और ट्रेडिशनल म्यूजिक की बाकायदा ट्रेनिंग ली।

यही कारण है कि उनकी गायिकी में एंविएंट इलेक्ट्रॉनिका और इलेक्ट्रॉ गजल के साथ नए जमाने और भारतीय क्लासिकल साउंड्स का भी अनोखा मिश्रण देखने को मिलता है। ‘दम मारो दम’ फिल्म के अपने गाने ‘जीयें क्यूं’ से चर्चा में आए पापोन ने फिल्म ‘दमलगा के हाईशा’ के लोकप्रिय गाने ‘मोह मोह के धागे’ से और अधिक ख्याति बटोरी। जागरण न्यू मीडिया के सीनियर जर्नलिस्ट अभिनव गुप्ता ने ओडिसा के कोनार्क में आयोजित मरीन ड्राइव इको रीट्रिट कार्यक्रम के अवसर पर पापोन से उनकी म्यूजिक जर्नी पर विस्तार से बातचीत की।

अंगराग महंत से पापोन बनने तक की यात्रा आपने कैसे पूरी की?

पापोन मेरा पेट नैम है। जिन दिनों मैं दिल्ली में पढ़ाई कर रहा था, मेरे मित्र मुझे पापोन कहने लगे। हालांकि असम के मेरे स्कूली मित्र अभी भी मुझे अंगराग ही कहते हैं। इसके पीछे कोई अन्य कहानी नहीं है।

आपने अपना म्यूजिक बैंड ‘पापोन एंड ईस्ट इंडिया कंपनी’ की लॉन्चिंग कैसे की?

जिस समय मैं दिल्ली में पढ़ रहा था, उसी समय ‘जुनाकी रति’ नामक असम में मैंने एक एल्बम रिलीज किया। दिल्ली में मैं MIDIval Punditz के साथ गाता था, क्योंकि वे वहीं के थे। उसी समय अपना बैंड बनाने का विचार मेरे जेहन में आया। उन दिनों असमिया लोकगीत से दुनिया वाकिफ भी नहीं थी। मैंने राजस्थानी और अन्य लोकगीतों को ग्लोबल प्लेटफॉर्म पर सुना था, लेकिन असमिया कहीं नहीं था।

क्या आपने लोकप्रिय असमिया लोकगीत गायकों के घर पैदा होने के कारण म्यूजिक को अपनाया या फिर आपकी अन्य ख्वाहिशें भी थीं?

बचपन से ही मैंने घर में म्यूजिक का माहौल देखा और वहीं इसे सीखा भी। चूंकि मेरे पापा म्यूजिक के सिलसिले में विभिन्न जगहों की यात्रा किया करते थे, ऐसे में मेरा पूरा बचपन ही ग्रीन रूम, स्टेज के पीछे, स्टूडियो में बैठकर और सोफे पर सोकर कटा है। मेरे पापा खगेन महंत म्यूजिक की दुनिया के बड़े नाम रहे, इसीलिए मेरी तुलना अक्सर उनसे की जाती है। उस उम्मीद पर खरा उतरने के लिए साफ तौर पर मेरे ऊपर काफी दबाव भी रहता है। हालांकि स्कूल के दिनों मैं बहुत म्यूजिक नहीं सीखा या गाया करता था। उसके बदले पेंट और स्केच में मेरी अधिक दिलचस्पी थी। इसीलिए मैं आर्किटेक्ट बनना चाहता था और दिल्ली भी मैं आर्किटेक्ट बनने ही गया था।

ख्याति से अक्सर आप दूर रहते हैं। बॉलीवुड में भी आपकी एंट्री सीमित है। इसकी क्या वजह है?

मैं क्वालिटी में यकीन करता हूं, नंबर में नहीं। इसीलिए बॉलीवुड से मेरे पास एक या दो गाने ही आते हैं। मैं हर कुछ नहीं गाता हूं। खासकर वे गाने मैं नहीं गाता हूं, जिनके साथ मैं जस्टिस नहीं कर सकता। यही कारण है कि मैं बॉलीवुड के लिए अधिक गाने नहीं कर रहा हूं। हालांकि अच्छे लोग मुझे अच्छे काम देते रहते हैं। इसीलिए मेरे जो भी फैंस हैं, वे मुझे दिलोजान से पसंद करते हैं।

जीयें क्यूं और मोह मोह के धागे जैसे लोकप्रिय और चर्चित गानों के बावजूद आपमें भक्ति, सूफी और क्लासिकल म्यूजिक की तरफ रुझान है। आप जगजीत सिंह के बड़े फैन रहे हैं। क्या आपने गजल को अपने म्यूजिक में समाहित करने के बारे में कभी सोचा?

बचपन से मुझे गजल पसंद हैं, लेकिन मुझे शक था कि मैं गजल गा पाऊंगा या नहीं। लेकिन अब मुझे लगता है कि मुझे गजल की तरफ थोड़ा रुख करना चाहिए। 2020 मेरे लिए कुछ नया लेकर आने वाला है। मैंने गजलों के एक एलबम पर काम शुरू किया है। मैंने ट्यूंस भी बना लिए हैं और लिरिक्स पर काम चल रहा है।

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