26 Years Of Bandit Queen: पहली और आखिरी फिल्म समझकर की थी बैंडिट क्वीन- सीमा विश्वास

26th Years Of Bandit Queen 26 जनवरी 1994 को रिलीज फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में फूलन देवी की मासूमियत से लेकर डकैत बनने के सफर को सीमा बिस्वास ने अपने भावपूर्ण अभिनय से दर्शाया था।

By Manoj VashisthEdited By: Publish:Fri, 24 Jan 2020 05:38 PM (IST) Updated:Fri, 24 Jan 2020 05:38 PM (IST)
26 Years Of Bandit Queen: पहली और आखिरी फिल्म समझकर की थी बैंडिट क्वीन- सीमा विश्वास
26 Years Of Bandit Queen: पहली और आखिरी फिल्म समझकर की थी बैंडिट क्वीन- सीमा विश्वास

नई दिल्ली, जेएनएन। दस्यु सुंदरी और बैंडिट क्वीन के नाम से कुख्यात फूलन देवी अपने साथ हुए जुल्मों का बदला लेने के लिए डकैत बन गई थीं। उनकी जिंदगी को शेखर कपूर ने फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में उतारा था। अमानवीय व्यवहार, औरतों साथ जुल्म और ऊंच- नीच जैसे मुद्दों को उठाती इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ हिंदी फीचर फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री और सर्वश्रेष्ठ कॉस्ट्यूम डिजाइन के तीन राष्ट्रीय पुरस्कार मिले थे। सीमा बिस्वास के करियर में वह फिल्म मील का पत्थर साबित हुई। फिल्म को लेकर सीमा की बातें उन्हीं की जुबानी...

कभी सोचा नहीं था फिल्म करूंगी

मैंने फिल्मों में काम करने के बारे में कभी नहीं सोचा था। उस वक्त पर्दे पर दिखने वाली सभी अभिनेत्रियां खूबसूरत और ग्लैमरस हुआ करती थीं। मुझे पता था कि मैं न तो ग्लैमरस हूं और न ही खूबसूरत। उस वक्त मैं थिएटर में अभिनय किया करती थी। ‘बैंडिट क्वीन’ के निर्देशक शेखर कपूर ने पहले मुझे कुछ नाटकों में काम करते हुए देखा था। एक दिन उन्होंने मुझे इस फिल्म के बारे में बताया और कहा कि मैं तुम्हें फूलन देवी के किरदार में लेने जा रहा हूं। मैंने यह सोचकर फिल्म के लिए हामी भरी थी कि यह मेरी पहली और आखिरी फिल्म होगी। इसके बाद मुझे फिल्मों में काम नहीं करना है।

फूलन देवी के किरदार की तैयारी

(Photo- Mid-day)

इस किरदार की तैयारी के लिए हम फूलन देवी से मिलना चाहते थे। फूलन देवी उस वक्त पुलिस की हिरासत में थीं। हमें उनसे मिलने की अनुमति नहीं मिली। इससे मेरे लिए किरदार की तैयारी और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गई थी। मैं इसे अपनी आखिरी फिल्म मानती थी। इसलिए चाहती थी कि फिल्म के बाद लोग मुझे और मेरे काम को याद रखें। शूटिंग के दौरान हमें पहाड़ियों पर से खिसक कर उतरना था। पहले यह काम सेट पर मौजूद स्टंटमैन को करना था। मुझे उनका काम पसंद नहीं आया। मैंने शेखर से कहा कि यह मैं स्वयं करूंगी। उस वक्त हमारे पास सुरक्षा के लिए पैड नहीं थे। हमने पानी की बोतलें काटकर उनका पैड बनाया। उनको रस्सी से पैरों पर बांधकर पहाड़ियों पर खिसकती थी।

सो जाती थी जमीन पर

(Photo- i-next)

शूटिंग के दौरान फिल्म के सभी कलाकारों में एक खास किस्म का जुड़ाव हो गया था। सेट से लौटते वक्त मैं और फिल्म के सभी मुख्य कलाकार सौरभ शुक्ला, मनोज बाजपेई, गोविंद नामदेव और रघुवीर यादव एक ही गाड़ी में बैठकर होटल आते थे। कभी-कभी कोई गंभीर या बड़े सीन को फिल्माने के बाद मैं शारीरिक और मानसिक रूप से बहुत ज्यादा थक जाती थी। तब सह कलाकार मेरा बहुत ख्याल रखते थे। वे पूरे सफर के दौरान शांत रहते थे, ताकि मुझे कोई परेशानी न हो। हम तड़के सुबह चार बजे उठकर शूट के लिए सेट पर जाते थे। मैं शूट के लिए कॉस्ट्यूम में ही जाती थी। अगर शूटिंग में देरी होती या कोई और सीन शूट किया जा रहा होता तो मैं जमीन पर ही चादर बिछाकर सो जाती थी।

वह सीन जिसमें आंसू छलक आए  

मुझे याद है एक सीन की शूटिंग के दौरान जिसमें फूलन देवी को चौराहे पर खड़ा करके चप्पलों से मारा जाता है। उसकी शूटिंग और मेरी हालत देखकर वहां पर चाय बनाने वाले एक स्थानीय बुजुर्ग ने मुझसे कहा कि बेटा तुम अपने घर चली जाओ, पैसे लिए तुम कितना कष्ट झेल रही हो। वह बुजुर्ग इतना कहकर रोने लगे।

वक्त से आगे की फिल्म

मुझे लगता है कि वह फिल्म अपने वक्त से बहुत पहले बनाई गई थी। इस तरह की वास्तविक कहानियों पर आधारित फिल्में पिछले कुछ वर्षों से बनना शुरू हुई हैं। अब दर्शक इन्हें पसंद भी कर रहे हैं। मुझे सिनेमा का यह बदलाव देखकर अच्छा लगता है। ऐसी कहानियों को हमारे देश के अलावा वैश्विक सिनेमा में भी सराहना मिल रही है।

(Photo- PTI)

26 जनवरी 1994 को रिलीज फिल्म ‘बैंडिट क्वीन’ में फूलन देवी की मासूमियत से लेकर डकैत बनने के सफर को सीमा बिस्वास ने अपने भावपूर्ण अभिनय से दर्शाया था। फिल्म की रिलीज के 26 साल पूरे होने के मौके पर सीमा कहती हैं इस फिल्म ने उनका वह ख्वाब पूरा किया जो उन्होंने खुली आंखों से देखा था।

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