नक्सली सिर्फ बीहड़ और जंगलों में नहीं हैं बल्कि शहरों में रहने वाले लोग भी नक्सलवाद का समर्थन करते हैं: राजीव खंडेलवाल

मुझे नक्सलबाड़ी का विषय काफी जंचा। नक्सलवाद विषय पर बहुत ज्यादा शोज या फिल्में नहीं बनी हैं। लोग इतना ही जानते हैं कि उनकी लड़ाई अलग है। इस शो में समस्या के मूल को स्पर्श करते हुए नक्सल और पुलिस के बीच का अलग मुद्दा उठाया गया है।

By Priti KushwahaEdited By: Publish:Fri, 27 Nov 2020 01:39 PM (IST) Updated:Fri, 27 Nov 2020 01:39 PM (IST)
नक्सली सिर्फ बीहड़ और जंगलों में नहीं हैं बल्कि शहरों में रहने वाले लोग भी नक्सलवाद का समर्थन करते हैं: राजीव खंडेलवाल
Rajeev Khandelwal Upcoming Web Series Naxalbari Release On Zee5

प्रियंका सिंह, जेएनएन। कॅरियर के शुरुआती दौर से ही राजीव खंडेलवाल ने वैरायटी किरदारों को चुना है। कई किरदार उन्होंने इसलिए छोड़ दिए थे, क्योंकि वह खुद रिपीट नहीं करना चाहते थे। जी5 पर कल रिलीज होनी वाली वेब सीरीज ‘नक्सलबाड़ी’ में राजीव पुलिस अफसर के किरदार में नजर आएंगे। जंगल में शूट किए गए इस शो को लेकर राजीव से बातचीत के अंश.. 

लगातार इंटेंस किरदार कर रहे हैं। यह शो करने के पीछे क्या वजह रही? 

मुझे यह विषय काफी जंचा। नक्सलवाद विषय पर बहुत ज्यादा शोज या फिल्में नहीं बनी हैं। लोग इतना ही जानते हैं कि उनकी लड़ाई अलग है। इस शो में समस्या के मूल को स्पर्श करते हुए नक्सल और पुलिस के बीच का अलग मुद्दा उठाया गया है। इस लड़ाई से फायदा या नुकसान नक्सलियों का है, सरकार का या फिर पुलिस का, इसे दिखाने की कोशिश की गई है।

 

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शो के दौरान नक्सली दुनिया के बारे में क्या समझने का मौका मिला? 

नक्सलवाद के पीछे जो कारण रहे हैं या अपने अधिकारों के लिए जो लड़ाई उन्होंने शुरू की थी, वह किसी दूसरी दिशा में चली गई है। मैं इसे गलत या सही नहीं कहूंगा। नक्सली सिर्फ बीहड़ और जंगलों में नहीं हैं। कई शहरों में रहने वाले लोग भी नक्सलवाद का समर्थन करते हैं। उन्हें फंडिंग करते हैं।  

महाराष्ट्र के जंगल में महामारी के दौरान शूट करना मुश्किल रहा होगा?   

(हंसते हुए) बहुत रोमांचक रहा। शारीरिक दूरी बनाए रखने की कोशिश सब कर रहे थे, लेकिन बरसात का मौसम था। कीचड़ था। एक्शन सीक्वेंस थे। कभी शूट करते वक्त बिच्छू, सांप दिख जाते थे। लगातार सैनिटाइजेशन किया जा रहा था और ऑक्सीजन लेवल चेक हो रहा था। एक्शन सीक्वेंस में शारीरिक दूरी संभव नहीं थी। हमारी अप्रोच यही थी कि खुद का ख्याल रखेंगे, तभी सामने वाला ठीक रहेगा। हमारा होटल जंगल से 35 किलोमीटर दूर था। हम लोग सुबह पांच बजे उठ जाते थे। शूटिंग के लिए सुबह छह बजे तक हमें जंगल पहुंचना होता था। शाम को होटल आने के बाद काढ़ा पीना, स्टीम लेना ये सब करते थे। 27-28 दिन जंगल में शूट किया है। कुछ हिस्से मुंबई में शूट हुए हैं। ये वाकई मुश्किल था।

 

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एक्शन के लिए ट्रेनिंग कैसी रही?  

मेरी फिल्म ‘शैतान’ के ही एक्शन डायरेक्टर इस शो के एक्शन को कोरियोग्राफ कर रहे थे। मेरी छवि एक्शन वाली नहीं रही है, लेकिन मुङो एक्शन करना पसंद है। एक्शन सीन्स खुद ही किए हैं। बंदूक तो कई फिल्मों में इस्तेमाल की हैं, उसकी ट्रेनिंग पहले ली है। मैं आर्मी बैकग्राउंड से हूं, ऐसे में यूनिफार्म पहनने के बाद जो एटिट्यूड आता है, वह पहले से ही अंदर है।  

इन दिनों जिस तरह का कंटेंट बन रहा है, वैसा काम आप कॅरियर की शुरुआत में ही कर चुके हैं। इस दौर को खुद के लिए सही मान रहे हैं?  

मेरे लिए हर वक्त सही रहा है। कई बार दरवाजे खुलते हैं और कई लोगों को उसमें जाने के मौके मिल जाते हैं। उसमें दाखिल होने वाले अगर आप पहले शख्स हैं तो अफसोस नहीं होना चाहिए। कॉमर्शियली फिल्मों के सफल होने का गणित अलग है। समय से आगे रहना मेरे लिए सम्मान की बात है। एक दौर था, जब लार्जर दैन लाइफ वाली फिल्में बन रही थीं, जिसमें हीरो दस गुंडों की पिटाई कर देता था। ऐसे दौर में अगर आप अलग हटकर कुछ करें और दूसरे भी आपको फॉलो करें तो खुशी ही होती है।

 

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धारा के विपरीत जाकर उस तरह की फिल्मों को न करना कठिन रहा होगा?  

(हंसते हुए) दुनिया यह महसूस कराती है कि तुम जो कर रहे हो, गलत कर रहे हो। बड़े बैनर को मना कर रहे हो, लेकिन जब मैं बड़े बैनर के साथ ‘कहीं तो होगा’ शो कर रहा था, तब मेरे किरदार को देश का सबसे रोमांटिक हीरो माना जा रहा था, पर मैंने उसे छोड़ने का फैसला किया। खुद को चीजों से अलग करने की कला, मैंने तभी सीख ली थी। कई सीनियर निर्देशकों को मना किया था, लेकिन मुझे कोई दुख नहीं रहा, क्योंकि मैं खुद को रिपीट नहीं करना चाहता था। मैं अब डार्क कॉमेडी कर रहा हूं। जिसमें मुझे पहले नहीं देखा गया है। 

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