'धमाका' में एक ही कमरे और कपड़े में पूरी फिल्म करने पर कार्तिक आर्यन ने कही ये बात, शेयर किया खास अनुभव
कार्तिक आर्यन अब अलग-अलग तरह के किरदार निभा रहे हैं। 19 नवंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म ‘धमाका’ में टीवी एंकर की भूमिका में नजर आए कार्तिक से मुंबई के एक पांच सितारा होटल में हुई बातचीत के अंश...
मुंबई, जेएनएन। कार्तिक आर्यन अब अलग-अलग तरह के किरदार निभा रहे हैं। 19 नवंबर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म ‘धमाका’ में टीवी एंकर की भूमिका में नजर आए कार्तिक से मुंबई के एक पांच सितारा होटल में हुई बातचीत के अंश...
इंडस्ट्री में दस वर्ष पूरे हो रहे हैं। इन वर्षों में कितने धमाके सहे हैं?
मेरे लिए यह बहुत लर्निंग एक्सपीरियंस रहा है। काफी कुछ सीखने को मिला है। मैंने इस सफर में उतार-चढ़ाव सब कुछ देखा है। मैं उम्मीद करता हूं कि यह सफर ऐसे ही चलता रहे और मेरे फिल्ममेकर मुझे दोबारा अपनी फिल्मों में काम दें, मेरे साथ बार-बार फिल्में करें। मैं उम्मीद करता हूं कि अपने काम में और सुधार करके अलग-अलग फिल्में लोगों तक पहुंचा सकूं।
एक अलग जानर और सिर्फ एक बंद कमरे में शूटिंग के क्या अनुभव रहे?
मुझे पहली बार ऐसा किरदार निभाने का मौका मिल रहा था। मैं इसे लेकर काफी उत्साहित और खुश था, लेकिन नर्वस भी कि यह मेरे लिए अपने आप को साबित करने का एक मौका था। उसमें मुझे कमी की जरा भी गुंजाइश नहीं चाहिए थी। मैं इसमें पत्रकार का किरदार निभा रहा हूं तो मैंने जूम काल पर कई रिपोर्टर्स और आरजे (रेडियो जाकी) से बातें की। जितना हो सकता था हमने इस फिल्म में पूरी मेहनत लगा दी। फिल्म अलग है, इसी का मजा भी है। बतौर कलाकार खुद को एक्सप्लोर कर रहा हूं।
एक ही कमरे और एक ही कपड़े में शूट करने को लेकर आपकी क्या प्रतिक्रिया थी?
(हंसते हुए) मैंने पूछा कि स्विट्जरलैंड में शूट कर सकते हैं क्या? शूटिंग वहां पर रखते हैं और स्टूडियो वहीं बना देते हैं। (गंभीर होकर) मैंने कपड़े और लोकेशन बदलने वाली काफी फिल्में की हैं, लेकिन यह फिल्म एक ही सेटअप पर शूट की गई है। मेरा किरदार (अर्जुन) एक ही कुर्सी पर बैठा हुआ है, फिर कहानी आपको कुर्सी से बांधकर रखती है। यही इस फिल्म की खूबसूरती है।
फिल्म में खोने और पाने की बात है। आपने अपनी जिंदगी में इस मुकाम पर पहुंचने के बदले क्या खोया?
फैमिली टाइम, क्योंकि भागदौड़ की जिंदगी में आपको परिवार के साथ इतना वक्त नहीं मिलता। मेरा परिवार ग्वालियर में रहता था। उम्मीद है कि आगे ऐसा न हो और मैं उन्हें ज्यादा वक्त दे पाऊं।
क्या इस फिल्म को करने के बाद टीआरपी और मीडिया इंडस्ट्री की कार्यशैली को ज्यादा अच्छी तरह से समझा?
मैं इस फिल्म को टीआरपी और अन्य पहलुओं के नजरिए से नहीं देख रहा था। मेरा जुड़ाव सिर्फ इससे था कि इस इंसान ने अपने सफर में क्या खोया क्या पाया? जब उसके पास मौके आ रहे थे, तब उसने कुछ पाया या जब उसके पास मौके नहीं आ रहे थे और उसने मौके छीन लिए, तब उसने कुछ पाया या सब कुछ खो दिया। यह सवाल मेरे दिमाग में गहरा प्रभाव छोड़कर गया। पत्रकारिता को लेकर इसमें जो मैंने सीखा वह यह है कि यह टीआरपी के खेल से ज्यादा जिम्मेदारी का काम है।
कभी कोई ऐसी खबर रही, जिससे आपको परेशानी हुई हो?
हां, ऐसा कई बार होता है। अगर मैं सामान्यत: भी अपने किसी दोस्त से मिलता हूं तो उसके पीछे कोई एजेंडा बन जाता है।
माफी मांगने की अहमियत इस फिल्म को करने के बाद पता चली या पहले से ही पता थी?
माफी की अहमियत मुझे बचपन से ही पता थी। माफी मांगने के लिए कभी जल्दी या देर नहीं होती है। अगर आप गलत हैं और आप सामने वाले इंसान से माफी मांगते हैं, तो वह आपकी सराहना करता है।
आपने कहा था कि एक्टिंग को जुआ मानते हैं, अब इस जुए में जीतना किस हद तक सीख लिया है?
फिलहाल मैं अपनी जिंदगी में संतोषजनक और खुशहाल स्थिति में हूं। मैं अब ऐसा कुछ सोच ही नहीं रहा हूं। रिलीज से पहले एक किस्म का उत्साह है, साथ में थोड़ी नर्वसनेस भी है कि पता नहीं फिल्म जितनी हमें अच्छी लगी दर्शकों को भी उतनी अच्छी लगेगी या नहीं।
जिंदगी के किस धमाके ने आपको बिल्कुल हिला दिया था?
लाकडाउन में डाक्टर्स ने जिस तरह का काम किया था, उसने मेरे अंदर एक जुनून वाला एहसास जगाया, क्योंकि मेरे परिवार और आस-पास में बहुत से डाक्टर हैं। जब वैक्सीन भी नहीं थी तब भी वह ऐसी बीमारी के खिलाफ बहुत ज्यादा काम कर रहे थे, जिसके बारे में हमें ज्यादा पता नहीं था। मेरे लिए वह जुनून एक धमाके की तरह था। इस धमाके ने बतौर इंसान भी मुझमें काफी बदलाव किया है।