कंगना रनोट ने ‘मणिकर्णिका’ फ्रेंचाइजी की दूसरी फिल्म ‘मणिकर्णिका रिटर्न्स: द लीजेंड ऑफ दिद्दा’ का किया ऐलान

कश्मीर की रानी दिद्दा ने साबित किया था कि शारीरिक दुर्बलता उनकी राह के आड़े नहीं आ सकती। उनके इसी साहस पर कंगना रनोट ने ‘मणिकर्णिका’ फ्रेंचाइजी की दूसरी फिल्म ‘मणिकर्णिका रिटन्र्स द लीजेंड ऑफ दिद्दा’ का ऐलान किया है।

By Ruchi VajpayeeEdited By: Publish:Sun, 21 Nov 2021 02:35 PM (IST) Updated:Sun, 21 Nov 2021 02:35 PM (IST)
कंगना रनोट ने ‘मणिकर्णिका’ फ्रेंचाइजी की दूसरी फिल्म ‘मणिकर्णिका रिटर्न्स: द लीजेंड ऑफ दिद्दा’ का किया ऐलान
Image Source: Kanagan Ranaut Social media page

मुंंबई ब्यूरो, स्मिता श्रीवास्तव। समाज में दिव्यांगता अभिशाप मानी जाती रही है, लेकिन कश्मीर की रानी दिद्दा ने साबित किया था कि शारीरिक दुर्बलता उनकी राह के आड़े नहीं आ सकती। उनके इसी साहस पर कंगना रनोट ने ‘मणिकर्णिका’ फ्रेंचाइजी की दूसरी फिल्म ‘मणिकर्णिका रिटन्र्स: द लीजेंड ऑफ दिद्दा’ का ऐलान किया है। 

प्राचीन संस्कृत कवि कल्हण ने कश्मीर के इतिहास की सबसे शक्तिशाली महिला शासक के रूप में रानी दिद्दा का उल्लेख किया है। रानी दिद्दा की कहानी इतिहास का एक चमकीला अध्याय है। एक उपेक्षित दिव्यांग कन्या से शुरू हुआ यह सफर कश्मीर के राजा की पत्नी बनने और वैधव्य के बाद राज्य की बागडोर संभालने और उसे एकजुट रखने की कहानी है। 79 वर्ष के जीवनकाल में रानी दिद्दा का व्यक्तित्व एक ऐसी मजबूत मिसाल के तौर पर उभरा, जिनका नाम सुनकर ही दुश्मन के रोंगटे खड़े हो जाते थे। अपनी दूरदर्शिता, रणनीतियों, सैन्य क्षमता और कुशल प्रबंधन की वजह से उन्होंने करीब 54 साल तक शासन किया।

जन्म से दिव्यांग दिद्दा का जीवन काफी संघर्षमय रहा। तत्कालीन लोहार साम्राज्य की राजकळ्मारी दिद्दा जन्म से ही पोलियो से ग्रस्त थीं। इस कारण वे न सिर्फ उपहास का विषय बनीं बल्कि माता-पिता के प्यार से भी वंचित रहीं। वल्जा नामक सहायिका ने बचपन में उनका पालन-पोषण किया और हमेशा उनके साथ रहीं। दिद्दा दिव्यांग भले ही थीं, लेकिन बहुत बुद्धिमान और सुंदर भी थीं। एक दिन महल में घूमते हुए वह उस जगह पहुंच गईं जहां पर सैनिक तलवारबाजी और अन्य हथियारों का अभ्यास कर रहे थे। उन्हें वह काफी रास आया। वो वहां जो भी देखतीं, उसका अभ्यास करतीं।

जल्द ही सिपाहियों के मुख्य प्रशिक्षक विक्रमसेन ने उन्हें देख लिया। दिद्दा ने कई बार विक्रमसेन से गुरु बनने की प्रार्थना की पर वह हंसकर टाल देते थे। मगर दिद्दा ने अभ्यास करना नहीं छोड़ा। एक बार पूरा राजपरिवार शारदा मंदिर में वार्षिक हवन के लिए गया। यह मंदिर जंगल के करीब था। दिद्दा भी अपने भाई-बहनों के साथ वहां थीं। अचानक नजदीक ही झाड़ियों में शेर को देखकर दिद्दा समझ गईं कि उनके छोटे भाई की जान संकट में है। जब दिद्दा शेर से कुछ कदम की दूरी पर थीं, तभी विक्रमसेन वहां पहुंचे। दिद्दा ने जमीन से उठाई लकड़ी के धारदार सिरे से शेर पर ऐसा वार किया वह वहीं ढेर हो गया।

इस घटना के बाद विक्रमसेन ने दिद्दा को प्रशिक्षित करना शुरू किया। उन्हें समझ आ गया था कि दिद्दा में महान योद्धा बनने के गुण हैं। इन प्रतिभाओं के बावजूद दिद्दा के पिता सिंहराज उनके लिए वर तलाश नहीं पा रहे थे। हालात ऐसे बने कि राग-रंग के लिए कुख्यात कश्मीर के राजा क्षेमगुप्त के साथ उनका विवाह हो गया। भ्रष्ट राजा की वजह से बर्बादी की कगार पर पहुंच चुके राज्य को रानी दिद्दा ने स्वयं संभालने की ठानी। तमाम विरोधों के बावजूद उन्होंने राजनीतिक निर्णय लेने आरंभ कर दिए और पूरे साम्राज्य पर आधिपत्य स्थापित कर लिया।

लोककथा है कि गर्भावस्था के दौरान एक बार रानी दिद्दा शहर के भ्रमण पर निकलीं। उन्होंने देखा कि पूरा शहर खाली हो गया है। उन्हें बताया गया कि राजा का एक पुराना सैनिक दुर्जन डाकू बन गया है। रानी दिद्दा ने अपने विश्वासपात्र मंत्री नरवाहन से कहा कि यह खबर फैला दो कि अगर दुर्जन यहां आया तो वापस नहीं जाएगा। दुर्जन ने यह चुनौती स्वीकार की। अगले दिन दोनों के बीच जंग हुई, जिसमें रानी दिद्दा विजयी रहीं। दुर्जन को हिरासत में ले लिया गया। रानी के प्रति राज्य के लोगों में भी आदरभाव जगा।

वर्ष 950 में राजा क्षेमगुप्त के निधन से रानी दिद्दा की जिंदगी में तूफान आ गया। सत्ता हासिल करने के लिए स्वजनों ने सती प्रथा का हवाला देकर रानी दिद्दा को सती करवाना चाहा। आशीष कौल ने प्रभात प्रकाशन से आई अपनी किताब ‘दिद्दा: कश्मीर की योद्धा रानी’ में लिखा है कि दिद्दा पहले तो सती होने के लिए मान गईं। फिर चिता के पास पहुंचकर उन्होेंने कहा कि मैं अपनी जिंदगी का इस तरह से बलिदान नहीं दूंगी। मैंने राजा को वचन दिया है कि उनके पुत्र अभिमन्यु और साम्राज्य का ध्यान रखूंगी। इसके बाद अभिमन्यु का राजतिलक हुआ और रानी दिद्दा राज्य संरक्षक बनीं। राजदरबार की साजिशों और पारिवारिक कलह का सामना करते हुए उन्होंने राज्य पर पकड़ मजबूत बनाए रखी।

अपने पुत्र अभिमन्यु की हत्या के बाद वह काफी व्यथित हुईं। उन्होंने अपने पौत्र नंदीगुप्त को कश्मीर का नया राजा नियुक्त किया। वह राज्य को संभाल पाने में नाकाम रहा। नंदीगुप्त की अक्षमता के कारण रानी दिद्दा ने उसे हटा दिया और सबसे छोटे पौत्र भीमगुप्त को राजा घोषित किया। छह साल बाद भीमगुप्त का संदिग्ध परिस्थितियों में निधन हो गया। हालातों के चलते रानी दिद्दा फिर गद्दी पर बैठीं। बढ़ती उम्र को देखते हुए उन्हें लगा कि विदेशी आक्रमण से साम्राज्य को बचाने के लिए व्यापक योजना बनानी चाहिए। उन्होंने संग्रामराज को गोद लिया और राज्य की सत्ता सौंपी।

वर्ष 1003 में रानी दिद्दा का निधन हो गया। उनके निधन के दस साल बाद जब महमूद गजनवी ने कश्मीर पर हमला किया था, तो उसे असफलता ही हाथ लगी थी। दरअसल, रानी दिद्दा की सैन्य विरासत के चलते संग्रामराज ने महमूद गजनवी जैसे आक्रांता को कश्मीर की सीमा से खदेड़ दिया था। यह सही मायने में महिला सशक्तीकरण की कहानी है जिसने पुरुषप्रधान समाज में तमाम दुश्वारियों के बावजूद अंत तक हार नहीं मानी। इतिहास में दिद्दा के अमूल्य योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। बड़े पर्दे पर कंगना के रूप में रानी दिद्दा के सफर को देखना रोमांचक अनुभव होगा। 

chat bot
आपका साथी