हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेष: सिनेमा के दर्पण में पत्रकारिता का अक्स दर्शाती हैं ये फिल्में

Hindi Journalism Day Special हिंदी सिनेमा में न्यू डेल्ही टाइम्स जाने भी दो यारों मैं आजाद हूं नो वन किल्ड जेसिका पीपली लाइव नायक पेज 3 द ताशकंद फाइल्स जैसी कई फिल्में पत्रकारिता के नजरिए से दिखाई गई हैं। इन फिल्मों में पत्रकारों की कार्यशैली कार्यप्रणाली की झलक मिलती है।

By Ruchi VajpayeeEdited By: Publish:Mon, 31 May 2021 04:54 PM (IST) Updated:Mon, 31 May 2021 04:54 PM (IST)
हिंदी पत्रकारिता दिवस विशेष: सिनेमा के दर्पण में पत्रकारिता का अक्स दर्शाती हैं ये फिल्में
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स्मिता श्रीवास्तव-प्रियंका सिंह, मुंबई ब्यूरो। पत्रकारिता को भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। जनता के हित में प्रश्न पूछना, अहम मुद्दों पर विमर्श आरंभ करना और आम जनता को हकीकत से रूबरू कराना पत्रकारिता के मूल में है। 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस है। हिंदी सिनेमा में 'न्यू डेल्ही टाइम्स', 'जाने भी दो यारों', 'मैं आजाद हूं', 'नो वन किल्ड जेसिका', 'पीपली लाइव', 'नायक', 'पेज 3', 'द ताशकंद फाइल्स' जैसी कई फिल्में पत्रकारिता के नजरिए से दिखाई गई हैं। इन फिल्मों में पत्रकारों की कार्यशैली और कार्यप्रणाली की झलक मिलती है। आगामी दिनों में फिल्म 'धमाका' में कार्तिक आर्यन पत्रकार की भूमिका में नजर आएंगे। सिनेमा और पत्रकारिता में संबंध, फिल्मों में उसके चित्रण और जरूरत की पड़ताल की स्मिता श्रीवास्तव व प्रियंका सिंह ने...

समाज का प्रतिरूप है सीनेमा

सिनेमा को समाज का आईना कहा जाता है। मीडिया ऐसा दर्पण है जो समाज और देश को उसकी सच्चाइयों का आईना दिखाता है। फिल्मों में भी इनके तमाम पहलुओं को फिल्मकारों ने अपने नजरिए से दर्शाया है। फिल्म 'न्यू डेल्ही टाइम्स' में शशि कपूर का किरदार बेहद ईमानदार संपादक होता है। फिल्म के अंत में दिखाया गया है कि किस प्रकार दो राजनीतिक पार्टियां अपने हितों को साधने के लिए उसे मोहरे की तरह इस्तेमाल करती हैं। अमिताभ बच्चन और शबाना आजमी अभिनीत फिल्म 'मैं आजाद हूं' में निहित स्वार्थों के लिए मीडिया किस प्रकार से छवि को बनाने या बिगाडऩे का काम करता है, उस पहलू को दर्शाया गया।

मीडिया प्रहरी की भूमिका में है

'मद्रास कैफे', 'मुंबई मेरी जान' समेत अनेक फिल्मों में पत्रकारिता का गंभीर पहलू दर्शाया गया। पत्रकारिता से फिल्मों में आए लेखक उमाशंकर सिंह कहते हैं, 'सिनेमा और मीडिया का रिश्ता सहोदर का रहा है। सिनेमा लोगों का मनोरंजन करता है और जीवन मूल्यों की बात करता है। मीडिया का काम सूचनाएं देना और लोगों को जागरूक करना है। मीडिया प्रहरी की भूमिका में है। मीडिया का पावर है। सिनेमा उसे भी इस्तेमाल भी करता है। 'नायक' फिल्म उसका उदाहरण है।'

मधुर भंडारकर बोले...

पत्रकारों के नजरिए से कहानी मधुर भंडारकर निर्देशित 'पेज 3' अखबारों में चमकती हस्तियों की बातों, बड़े लोगों की पार्टियों के मकसद और उनके दोहरे चरित्र के बारे में बात करती है। साथ ही संपादक की मजबूरियां और अखबार के मालिक के हितों के सवाल भी उठाने की कोशिश करती है। उस फिल्म को बनाने को लेकर मधुर कहते हैं कि वर्ष 2001 में फिल्म 'चांदनी बार' और 'सत्ता' को मिली सफलता के बाद मेरे पास अचानक से पार्टियों के न्योते आने लगे। मैं पार्टी में जाता था, वहां पर विभिन्न क्षेत्रों से ताल्लुक रखने वाले लोग आते थे, पर उनका चेहरा मुखौटा लगता था। मैंने रिसर्च करना शुरू किया। यह सोचना शुरू किया कि इसे किस प्वाइंट आफ व्यू से दिखाया जाना चाहिए।

 मधुर भंडारकर ने आगे कहा- वर्ष 2003 की बात है मुंबई में मैं एक बड़ी पार्टी से बाहर आ रहा था। वहां पर कई पत्रकार थे। रात में तीन-चार पत्रकारों को पैदल टैक्सी स्टैंड की तरफ जाते देखा। मैंने उन्हें टैक्सी स्टैंड तक छोडऩे का आग्रह किया। उसके बाद मुझे लगा कि पत्रकार पार्टी में बड़े-बड़े लोगों से बात कर रहे थे, लेकिन बाहर आकर किसी आम इंसान की भांति थे। मुझे लगा कि अगर पत्रकार के नजरिए से दिखाऊंगा तो परफेक्ट होगा,क्योंकि उसकी पहुंच सब जगह होती है।'

फिल्म द ताशकंद फाइल्स को ईमानदार पत्रकारों को समर्पित किया

सच्चाई सामने लाते हैं पत्रकार भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत की पड़ताल करती फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' ने सुर्खियां बटोरी थीं। इसकी कहानी भी एक पत्रकार की खोज के इर्दगिर्द रची गई थी। इसके लेखक और निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री कहते हैं कि मैंने अपनी फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' को ईमानदार पत्रकारों को समर्पित किया है। वजह यही है रही कि भ्रष्ट लोगों की वजह से बिगड़ रहे समाज को बचाकर, उसमें छिपी सच्चाई को सामने लाने का काम ईमानदार पत्रकार कर रहे हैं। फिल्म में इलेक्ट्रानिक मीडिया के बजाय प्रिंट मीडिया चुनने के पीछे वजह यही रही कि इलेक्ट्रानिक मीडिया कई बार एक रूम तक सीमित रह जाता है। अखबार के पत्रकार खबर के पीछे की सच्चाई पर गहनता से काम करते हैं, क्योंकि वे जो लिखते हैं, वह एक डॉक्यूमेंट बन जाता है। इस फिल्म की रिसर्च में लाल बहादुर शास्त्री की मौत के बाद उस वक्त प्रकाशित अखबारों के लेख सबसे ज्यादा काम आए। उन्हीं लेखों से फिल्म की नींव बनी।

पत्रकार कुलदीप नैयर ने कहा...

अनुभवी और वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर के निधन से पहले उनके इंटरव्यू और इनपुट्स से मैं कई दूसरे पत्रकारों तक पहुंचा। भारतीय पत्रकारों ने इस फिल्म को बनाने में अहम रोल निभाया है। कलाकारों की भूमिका किसी भी किरदार को विश्वसनीय बनाने में कलाकारों की अहम भूमिका होती है। जेसिका लाल मर्डर केस से प्रेरित फिल्म 'नो वन किल्ड जेसिका' में एक टीवी चैनल के बॉस का किरदार निभाने वाले अभिनेता सत्यजीत मिश्रा कहते हैं कि जितनी ईमानदारी पत्रकारिता में चाहिए, उतनी ही ईमानदारी इस किरदार को पर्दे पर उतारने के लिए भी चाहिए थी। मैं एक ऐसी पत्रकार का बॉस बना था, जो बहुत ही तेज-तर्रार और महत्वाकांक्षी होती है। वह रिश्ता जब समझ में आ जाता है कि तो किरदार को करना आसान हो जाता है। इस फिल्म का शीर्षक एक हेडलाइन पर रखा गया था। पहले किसी नेता से सवाल बेबाकी से पूछे जाते थे। आज शायद ही कोई वैसे सवाल पूछे, उसके पीछे कई कारण हैं। कमर्शियल चीजें दबाव बनाती हैं। ईमानदारी से पत्रकारिता करना बहुत मुश्किल है।

दर्पण का काम करे मीडिया कई बार समाचारों को सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत करने की कोशिशें भी मीडिया में

नजर आती हैं।

कुछ फिल्मों में दिखी सच्ची पत्रकारिता

फिल्म 'मुंबई मेरी जान' में टीवी न्यूज चैनलों का उत्कृष्ट चित्रण है जिसमें समाचारों को सनसनीखेज रूप में इस्तेमाल किया जाता है, वह भी तब जब यह 11 जुलाई, 2006 के मुंबई ट्रेन बम विस्फोट जैसी बड़ी त्रासदी की बात करता है। आमिर खान के प्रोडक्शन में बनी फिल्म 'पीपली लाइव' में टीवी पत्रकारिता का वह चेहरा दिखाया गया था, जहां टीआरपी का खेल, किसी की जिंदगी से ज्यादा मायने रखता है। यह मीडिया पर सटायर था। जहा इलेक्ट्रानिक मीडिया एक किसान की आत्महत्या को कवर करने में जुट जाता है। फिल्म में किसान बने अभिनेता रघुबीर यादव कहते हैं कि फिल्मों में आने से पहले मैं जबलपुर के एक अखबार में काम कर चुका हूं। हायरसेकेंड्री की परीक्षा दे रहा था, फीस के पैसे नहीं थे तो प्रेस जॉएन कर लिया था। नर्मदा ज्योती नामक शाम का एक अखबार था। दिन में वहां छपाई का काम करता था, शाम को पेपर बांटने निकल जाता था। उस वक्त अखबारों में समाज को सुधारने वाली बातें होती थीं। आजकल तो हेडिंग कैसे बनाई जाए, इस पर विचार होता है। यह पेशा भी बिजनेस बन गया है। हालांकि मीडिया में सभी ऐसे नहीं हैं, लेकिन कुछ लोग हैं, जिसका जिक्र 'पीपली लाइव' फिल्म में हुआ। टीआरपी की रेस में किसान के बारे में वे सोचना भूल जाते हैं। किसान नत्था को घर छोड़कर जाना पड़ता है। समाज में मीडिया की बहुत अहमियत है। वह समाज का दर्पण है। दर्पण का काम चीजों को वास्तविक दिखाना ही है, न की उसे तोड़-मरोड़ कर। 'पीपली लाइव' में वही दिखाने का प्रयास हुआ।

हिम्मत चाहिए सच कहने के लिए

फिल्म 'द ताशकंद फाइल्स' में समाचारपत्र की पत्रकार का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री श्वेता बासु प्रसाद कहती हैं कि मैं खुद पत्रकारिता में ग्रैजुएट हूं। मेरी इस पढ़ाई ने किरदार को निभाने में मेरी थोड़ी मदद कर दी। मैं मीडिया और पत्रकारों की बहुत इज्जत करती हूं। हिम्मत चाहिए, सच बोलने, रिसर्च करने और डेडलाइंस पर काम करने के लिए। मैंने अपने कॉलम्स के लिए काम किया है। मुश्किल जॉब है, आपको हमेशा तैयार रहना पड़ता सच्चाई को लोगों के सामने लाने के लिए। फिल्म और मीडिया दोनों एक-दूसरे के साथ चलते हैं।

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