धर्मेंद्र ने शेयर किया वीडियो, जिसमें दिलीप कुमार कह रहे हैं- हर सांस में दम तोड़ते बच्चों की सिसकियां सुनाई देती हैं...
कहीं दवा की किल्लत कहीं अस्पताल में बेड नहीं। कहीं ऑक्सीजन के लिए मारामारी। दूसरी तरफ़ दवाओं की कालाबाज़ारी करने वाले बेशर्म लोग जिनके लिए यह मानवीय त्रासदी मालामाल होने की अश्लील ख़्वाहिश बन गयी है। ऐसा ही एक दृश्य दिलीप कुमार की फ़िल्म फुटपाथ में भी था।
नई दिल्ली, जेएनएन। देश इस वक़्त एक बड़ी आफ़त से गुज़र रहा है। कोरोना वायरस महामारी ने सांसों के लिए मोहताज कर दिया है। कहीं दवा की किल्लत, कहीं अस्पताल में बेड नहीं। कहीं ऑक्सीजन के लिए मारामारी। दूसरी तरफ़, दवाओं की कालाबाज़ारी करने वाले बेशर्म लोग, जिनके लिए यह मानवीय त्रासदी मालामाल होने की अश्लील ख़्वाहिश बन गयी है।
आपको, जानकर हैरानी होगी कि लगभग ऐसा ही एक दृश्य दिलीप कुमार की कई दशक पहले आयी फ़िल्म फुटपाथ में भी था। यह सीन पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया में सर्कुलेट हो रहा है और अब इसे धर्मेंद्र ने अपने ट्विटर एकाउंट से शेयर करके मौजूदा हालात पर अफ़सोस ज़ाहिर किया।
इस सीन में दिलीप साहब का किरदार एकल संवाद बोलता है- ''जब शहर में बीमारी फैली। हमने दवाइयां छुपा लीं और उनके दाम बढ़ा दिये। जब हमें पता चला कि पुलिस हम पर छापा मारने वाली है तो हमने वही दवाइयां गंदे नालों में फिकवा दीं। मगर, आदमी की अमानत को आदमी के काम नहीं आने दिया। मुझे अपने बदन से सड़ी हुई लाशों की बू आती है। अपनी हर सांस में मुझे दम तोड़ते बच्चों की सिसकियां सुनाई देती हैं।
हम जैसे ज़लील-कुत्तों के लिए आपके क़ानून में शायद कोई मुनासिब सज़ा नहीं होगी। हम इस धरती पर सांस लेने के लायक़ नहीं हैं। हम इंसान कहलाने के लायक़ नहीं हैं। इंसानों में रहने के लायक़ नहीं हैं। हमारे गले घोंट दो और हमें दहकती हुई आगों में जलाओ। हमारी बदबूदार लाशों को शहर की गलियों में फिकवा दो। ताकि वो मजबूर, वो ग़रीब, जिनका हमने अधिकार छीना है, जिनके घरों में हम तबाही लाये हैं, वो हमारी लाशों पर थूकें।
इस वीडियो के साथ धर्मेंद्र ने लिखा- 1952 में जो रहा था। आज भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। फुटपाथ में दिलीप साहब।
1952 mein jo ho raha tha... Aaj bhi kuchh aisa hi ho raha. Dalip sahab in Foot Paath. pic.twitter.com/t5PhI3KnUJ
9 अक्टूबर 1953 को रिलीज़ हुई फुटपाथ में दिलीप कुमार, मीना कुमार और अनवर हुसैन ने मुख्य भूमिकाएं निभायी थीं। फ़िल्म का निर्देशन ज़िया सरदही ने किया था। यह फ़िल्म हिंदी सिनेमा की क्लासिक फ़िल्मों की फेहरिस्त में दर्ज़ है। वैसे, धर्मेंद्र दिलीप कुमार को अपना आदर्श मानते रहे हैं और कई इंटरव्यूज़ में उन्होंने बोला है कि दिलीप कुमार की शहीद देखने के बाद वो फ़िल्मों में आने के लिए प्रेरित हुए थे।