50 Years Of Zeenat Aman: ऐसी 'लैला' फिर नहीं आयी, कभी 'रूपा' कभी 'रोमा' बनकर दिखाया अभिनय का दमख़म

ज़ीनत अमान का फ़िल्मी करियर ग्लैमर और चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं का बेहतरीन संतुलन रहा है। ज़ीनत ने अपनी फ़िल्मों और किरदारों के ज़रिए जहां हिंदी सिनेमा की हीरोइन के ग्लैमर को एक नई परिभाषा दी वहीं कुछ बेहद चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं निभाकर अभिनय की नई ऊंचाइयों को छुआ।

By Manoj VashisthEdited By: Publish:Wed, 24 Feb 2021 11:56 AM (IST) Updated:Wed, 24 Feb 2021 09:32 PM (IST)
50 Years Of Zeenat Aman: ऐसी 'लैला' फिर नहीं आयी, कभी 'रूपा' कभी 'रोमा' बनकर दिखाया अभिनय का दमख़म
Zeenat Aman in younger days and now. Photo- Mid-Day, Instagram

नई दिल्ली, जेएनएन। जिसको भी देखूं, दुनिया भुला दूं, मजनूं बना दूं ऐसी मैं लैला... मधुर संगीत से सजे क़ुर्बानी फ़िल्म के इस गाने पर थिरकती अदाएं दिखातीं ख़ूबसूरत ज़ीनत अमान किसे याद नहीं होंगी। सत्तर और अस्सी दशक की इस फ़िल्मी लैला ने सच में लाखों दिलों को अपना दीवाना बनाया था। अपने हुनर की ख़ूबसूरती से अपने नाम को सार्थक करने वाली ज़ीनत अमान ने 2021 में 50 साल का शानदार सफ़र पूरा कर लिया है और इस सफ़र के कुछ अहम पड़ाव आज भी हिंदी सिनेप्रेमियों के ज़हन में अटके हैं।

ज़ीनत अमान का फ़िल्मी करियर ग्लैमर और चुनौतीपूर्ण भूमिकाओं का बेहतरीन संतुलन रहा है। ज़ीनत ने अपनी फ़िल्मों और किरदारों के ज़रिए जहां हिंदी सिनेमा की हीरोइन के ग्लैमर को एक नई परिभाषा दी, वहीं कुछ बेहद चुनौतीपूर्ण भूमिकाएं निभाकर अभिनय की नई ऊंचाइयों को छुआ।

सत्तर और अस्सी के दौर में ज़ीनत ने ख़ूबसूरती, स्टाइल और अदाकारी का ऐसा मानदंड स्थापित किया, जिसे बाद की कई एक्ट्रेसेज़ ने फॉलो किया। ज़ीनत ने अपने समय के सभी टॉप कलाकारों के साथ कई यादगार फ़िल्में दी हैं, मगर कुछ फ़िल्में ऐसी हैं, जिनके लिए उन्हें आज भी यादगार हैं। ज़ीनत ने 50 साल पूरे होने पर अपने दोस्तों के साथ इसका जश्न मनाया, वो भी पॉरी वाले अंदाज़ में...

 

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सत्यम शिवम सुंदरम से लिया रिस्क

साल 1978 में आई सत्यम शिवम सुंदरम भीतरी और बाहरी सुंदरता के बीच फ़र्क का बेहद ख़ूबसूरत संदेश देती है। रूपा की मधुर आवाज़ सुनकर नायक को लगता है कि देखने में भी वो उतनी ही सुंदर होगी और अपनी कल्पना को हक़ीक़त मानकर वो उससे प्यार करने लगता है, मगर नायक को तब बड़ा झटका लगता है, जह वह रूपा का रूप देखता है। रूपा का चेहरा दाग़दार था। इस किरादर के ऑफ़र होने की कहानी ज़ीनत ने खु़द टीवी शो 'माई लाइफ़ माई स्टोरी' के दौरान बताई थी। फ़िल्म का निर्देशन राज कपूर ने किया था और शशि कपूर हीरो थे। ख़ास बात यह है कि इस फ़िल्म में ज़ीनत ने गांव की लड़की का किरदार निभाया था, मगर इस फ़िल्म के आने तक ज़ीनत हिंदी सिनेमा में ग्लैमरस हीरोइन के रूप में स्थापित हो चुकी थीं। ज़ीनत ने रिस्क लिया और कामयाब रहीं।

 

Photo- Mid-Day

दम मारो दम से बनीं ओवरनाइट सेंसेशन

हिंदी सिनेमा में उनका बड़ा ब्रेक 1971 की फ़िल्म हरे रामा हरे कृष्णा थी, जिसका लेखन, निर्माण और निर्देशन देव आनंद ने ही किया था। फ़िल्म में लीड रोल में भी वही थे। इस फ़िल्म में ज़ीनत ने देव की बहन का किरदार निभाया था। हिप्पी कल्चर ने इस फ़िल्म के ज़रिए हिंदी सिनेमा में दमदार दस्तक दी थी और ज़ीनत अमान पर फ़िल्माया गाना दम मारो दम एक एंथम बन गया था। बहन का किरदार निभाने के बावजूद ज़ीनत ओवरनाइट सेंसेशन बन गयीं। इसके बाद ज़ीनत ने कई फ़िल्मों में देव आनंद की प्रेमिका की भूमिका भी निभायी थी।

रोटी कपड़ा और मकान ने दिया नया मुकाम

दम मारो दम के बाद ज़ीनत का करियर चल पड़ा। एक के बाद एक फ़िल्में आने लगीं और चलने लगीं। इस बीच उन्होंने साल 1973 में 'यादों की बारात' मिली। आशा भोंसले और मोहम्मद ऱफ़ी की अवाज़ में 'चुरा लिया है तुमने जो दिल को' गाने ने एक बार फिर तहलका मचाया। ज़ीनत को एक और मुकाम तब मिला, जब उनके हिस्से 'रोटी कपड़ा और मकान' आई। यह फ़िल्म उस समय की ब्लॉकबस्टर रही।

डॉन की महबूबा रोमा डार्लिंग

अमिताभ बच्चन के साथ ज़ीनत अमान ने कई हिट फ़िल्मों में काम किया था, जिनमें डॉन सबसे यादगार फ़िल्म है। हिंदी सिनेमा की इस कालजयी फ़िल्म में अमिताभ डबल रोल में थे और ज़ीनत डॉन की महबूबा और दुश्मन रोमा के रोल में थीं। दिलचस्प बात यह है कि सत्यम शिवम सुंदरम और डॉन 1978 में ही आयी थीं और दोनों फ़िल्मों में ज़ीनत के दो अलग रूप देखने को मिले।

अस्सी का दौर आते-आते ज़ीनत अपने स्टारडम के शिख़र पर पहुंच चुकी थीं। वो हिंदी सिनेमा में सबसे अधिक फीस लेने वाली हीरोइनों में शुमार हो गयी थीं। इस दौरान अमिताभ के साथ 'लावारिस 'की, फ़िरोज़ ख़ान के साथ 'कुर्बानी' और धर्मेंद्र के साथ 'प्रोफेसर प्यार लाल' जैसी शानदार फ़िल्में कीं। ज़ीनत की सक्रियता फ़िल्मों में कम हो चुकी  'पानीपत' में उनकी एक्टिंग का जलवा देखने को मिलेगा। 1980 में उनकी एक और फ़िल्म उल्लेखनीय मानी जाती है- बीआर चोपड़ा की इंसाफ़ का तराज़ू, जो वुमन एम्पॉवरमेंट को रेखांकित करती एक संवेदनशील फ़िल्म है। इस फ़िल्म में ज़ीनत की अदाकारी को ख़ूब सराहा गया। ज़ीनत अभी भी फ़िल्मों में सक्रिय हैं। आशुतोष गोवारिकर की पानीपत में ज़ीनत ने एक किरदार निभाया था। 

Congratulations Zeenat. You have been a trail blazer. Hare Rama Hare Krishna brought a new heroine to the Hindi cinema https://t.co/N7p5TACFgK" rel="nofollow— Azmi Shabana (@AzmiShabana) February 23, 2021

ज़ीनत अमान का जन्म 19 नवम्बर 1951 को हुआ था। उनके पिता अमानुल्लाह एक जाने-माने स्क्रिप्ट राइटर थे, जिन्होंने मुग़ले-आज़म और पाक़ीज़ा जैसी फ़िल्में लिखी थीं। ज़ीनत ने 1970 में फेमिना मिस इंडिया एशिया पेसिफिक जीतने के बाद मिस एशिया पेसिफिक का ताज पहना था। फ़िल्मी दुनिया में उनकी शुरुआत इंडो-फिलिपीनो फ़िल्म द ईविल विदिन से हुई थी, जिसे लैम्बर्टो वी एवेलाना ने निर्देशित किया था। इस फ़िल्म में देव आनंद, प्रेम नाथ और एमबी शेट्टी जैसे भारतीय कलाकार विभिन्न भूमिकाओं में थे।

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