फ़िरोज़ ख़ान: दिलचस्प रहा बॉलीवुड के इस ‘काउ ब्वाय’ का सफ़र, देखें दुर्लभ तस्वीरें

फ़िरोज़ ख़ान कैंसर से पीड़ित थे और मुंबई में उनका लंबे समय तक इलाज चला। 27 अप्रैल, 2009 को उन्होंने बेंगलुरु स्थित अपने फार्म हाउस में अंतिम सांस ली।

By Hirendra JEdited By: Publish:Tue, 25 Sep 2018 09:37 AM (IST) Updated:Wed, 26 Sep 2018 08:06 AM (IST)
फ़िरोज़ ख़ान: दिलचस्प रहा बॉलीवुड के इस ‘काउ ब्वाय’ का सफ़र, देखें दुर्लभ तस्वीरें
फ़िरोज़ ख़ान: दिलचस्प रहा बॉलीवुड के इस ‘काउ ब्वाय’ का सफ़र, देखें दुर्लभ तस्वीरें

मुंबई। 25 सितंबर, 1939 को बेंगलुरु में जन्मे फ़िरोज़ ख़ान ने राजसी अंदाज़ में एक अर्से तक दर्शकों के दिलों पर राज किया है। बॉलीवुड की दुनिया में जहां अभिनेता फ़िल्में खो देने के डर से अपनी छवि में बंधे रहते हैं वहां एक अभिनेता ऐसा भी था जिसने कभी खुद को किसी छवि में बंधने नहीं दिया।

अभिनेता फ़िरोज़ ख़ान ने बॉलीवुड में स्टाइलिश और बिंदास होने के जो पैमाने तय किये उस तक आज भी कोई नहीं पहुंच पाया है। फ़िरोज़ ख़ान का नाम सुनते ही एक आकर्षक, छरहरे और जांबाज़ जवान का चेहरा रूपहले पर्दे पर चलता-फिरता दिखाई पड़ने लगता है। बूट, हैट, हाथ में रिवॉल्वर, गले में लॉकेट, कमीज के बटन खुले हुए, ऊपर से जैकेट और शब्दों को चबा-चबा कर संवाद बोलते फ़िरोज़ ख़ान को हिंदी फ़िल्मों का ‘काउ ब्वाय’ कहा जाता था। हालीवुड में क्लिंट ईस्टवुड की जो छवि थी, उसका देशी रूपांतरण थे फ़िरोज़ ख़ान।

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अफगानी पिता और ईरानी मां के बेटे फ़िरोज़ बेंगलुरु से हीरो बनने का सपना लेकर मुंबई पहुंचे। उनके तीन भाई संजय ख़ान (अभिनेता-निर्माता), अकबर ख़ान और समीर ख़ान (कारोबारी) हैं। उनकी एक बहन हैं, जिनका नाम दिलशाद बीबी है। फ़िरोज़ की भतीजी और संजय ख़ान की बेटी सुजैन की शादी रितिक रोशन के साथ हुई थी। बॉलीवुड में फ़िरोज़ ख़ान ने अपने करियर की शुरुआत 1960 में बनी फ़िल्म ‘दीदी’ से की।

शुरुआती कुछ फ़िल्मों में अभिनेता का किरदार निभाने के बाद उन्होंने कुछ समय के लिए खलनायकों की भी भूमिका अदा की खास तौर पर गांव के गुंडों की। वर्ष 1962 में उन्होंने अंग्रेजी भाषा की एक फ़िल्म ‘टार्जन गोज टू इंडिया’ में काम किया। इस फ़िल्म में नायिका सिमी ग्रेवाल थीं। 1965 में उनकी पहली हिट फ़िल्म ‘ऊंचे लोग’ आई जिसने उन्हें सफलता का स्वाद चखाया। अभिनय के लिहाज से उनके लिए 70 का दशक यादगार रहा। ‘आदमी और इंसान’ (1970) में अभिनय के लिए फ़िरोज़ ख़ान को फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक कलाकार का पुरस्कार मिला। 70 के दशक में उन्होंने ‘आदमी और इंसान’, ‘मेला’, ‘धर्मात्मा’  जैसी बेहतरीन फ़िल्में दीं। इसी दशक में उन्होंने निर्माता-निर्देशक के रूप में अपना सफर शुरू किया। उनके इस सफर की शुरुआत फ़िल्म ‘धर्मात्मा’  से हुई।

वर्ष 1980 की फ़िल्म ‘कुर्बानी’ से उन्होंने एक सफल निर्माता-निर्देशक के रूप में सभी को अपना कूव्वत का लोहा मनवाया। कुर्बानी उनके करियर की सबसे सफल फ़िल्म रही। इसमें उनके साथ विनोद खन्ना भी प्रमुख भूमिका में थे। कुर्बानी ने हिंदी सिनेमा को एक नया रूप दिया। कुर्बानी ने ही हिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों को भी हॉट एंड बोल्ड होने का अवसर दिया। फ़िल्म में फ़िरोज़ और जीनत अमान की बिंदास जोड़ी को दर्शकों ने खूब पसंद किया। फ़िल्मों से अभिनय के बाद उन्होंने निर्देशन की तरफ रुख किया। उन्होंने लीक से हट कर कई फ़िल्में बनाई। 70 से 80 के दशक के बीच उनके निर्देशन में बनी धर्मात्मा, कुर्बानी, जांबाज और दयावान बॉक्स ऑफिस पर हिट हुई। वर्ष 1975 में बनी धर्मात्मा पहली भारतीय फ़िल्म थी जिसकी शूटिंग अफगानिस्तान में की गई। यह एक निर्माता निर्देशक के रूप में फ़िरोज़ की पहली हिट फिल्म भी थी। यह फ़िल्म हॉलीवुड फ़िल्म गॉडफादर पर आधारित थी।

1998 में फ़िल्म प्रेम अगन से उन्होंने अपने बेटे को फ़िल्मों में लाने का काम किया पर उनके बेटे फरदीन ख़ान उनकी तरह शोहरत बटोरने में विफल रहे। 2003 में उन्होंने अपने बेटे और स्पो‌र्ट्स प्यार के लिए फ़िल्म जानशीं बनाई पर फ़िल्म में अभिनय करने के बाद भी वह अपने बेटे को हिट नहीं करवा सके। फ़िरोज़ ख़ान ने आखिरी बार फ़िल्म वेलकम में काम किया। इस फ़िल्म में भी उनका वही बिंदास स्टाइल नजर आया जिसके लिए वह जाने जाते हैं।

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साल 2010 में उन्हें फ़िल्मफेयर लाइफ टाइम अचीवमेंट का खिताब दिया गया था। फ़िरोज़ ख़ान कैंसर से पीड़ित थे और मुंबई में उनका लंबे समय तक इलाज चला। 27 अप्रैल, 2009 को उन्होंने बेंगलुरु स्थित अपने फार्म हाउस में अंतिम सांस ली।

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