20 Years Of Lagaan: आमिर ख़ान ने चार बार सुनी थी 'लगान' की स्क्रिप्ट, फ़िल्म का आइडिया लगा था बकवास!

ऑस्कर अवॉर्ड्स की विदेशी भाषा फ़िल्म श्रेणी में नॉमिनेशन तक पहुंची लगान 15 जून 2001 को रिलीज़ हुई थी और आज 20 साल की उम्र पूरी कर चुकी है मगर लगान की कशिश कम नहीं हुई। लगान जैसी कालजयी फ़िल्म का आइडिया पहली बार में आमिर को बकवास लगा था

By Manoj VashisthEdited By: Publish:Tue, 15 Jun 2021 11:03 AM (IST) Updated:Tue, 15 Jun 2021 11:03 AM (IST)
20 Years Of Lagaan: आमिर ख़ान ने चार बार सुनी थी 'लगान' की स्क्रिप्ट, फ़िल्म का आइडिया लगा था बकवास!
Aamir Khan found Lagaan's ideas absurd. Photo- Mid-Day

नई दिल्ली, मनोज वशिष्ठ। लगान हिंदी सिनेमा की उन फ़िल्मों में शामिल है, जिन्होंने समय की हदों से परे अपनी सार्थकता और प्रासंगिकता साबित की है। ऑस्कर अवॉर्ड्स की विदेशी भाषा फ़िल्म श्रेणी में नॉमिनेशन तक पहुंची लगान 15 जून 2001 को रिलीज़ हुई थी और आज 20 साल की उम्र पूरी कर चुकी है, मगर लगान की कशिश कम नहीं हुई।

मगर, आपको जानकर यह ताज्जुब होगा कि लगान जैसी कालजयी फ़िल्म का आइडिया पहली बार में आमिर को बकवास लगा था और उन्होंने फ़िल्म का निर्माता-कलाकार बनने से पहले चार बार इसकी स्क्रिप्ट सुनी थी। यह दिलचस्प क़िस्सा आमिर ने मीडिया के साथ बातचीत में साझा किया। पूरा क़िस्सा आमिर की ज़ुबानी...

1893 में लगान माफ़ी के लिए क्रिकेट- क्या बकवास है!

आशुतोष (गोवारिकर) ने लगान की कहानी मुझे पहली बार दो मिनट में सुनाई थी। उसने कहा था- एक गांव है। बारिश नहीं हो रही है तो गांव वाले लगान नहीं दे पा रहे हैं। लगान ख़त्म करवाने के लिए वो शर्त लगाते हैं कि क्रिकेट खेलेंगे। यह आइडिया मुझे बहुत बुरा लगा।

मैंने कहा- यह कोई आइडिया है! 1893 में क्रिकेट खेल रहे हैं, लगान माफ़ करवाने के लिए। मेरी कुछ समझ मे नहीं आया। मैंने कहा कि तेरी दो फ़िल्में (पहला नशा और बाज़ी) नहीं चली हैं। अब ठीक-ठाक काम कर। वो थोड़ा मायूस हुआ। फिर तीन महीने ग़ायब हो गया। तीन महीने बाद उसने फिर फोन किया कि यार मेरे पास स्क्रिप्ट है, कब सुन सकता है?

 

 

 

 

View this post on Instagram

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

A post shared by Aamir Khan Productions (@aamirkhanproductions)

स्क्रिप्ट सुनकर उड़ीं हवाइयां 

मैंने कहा- ठीक है, अगले हफ़्ते सुनते हैं। फिर मुझे शक़ हुआ। मैंने पूछा- यार, यह वही क्रिकेट वाली स्टोरी तो नहीं है, जो तूने सुनाई थी। उसने कोई जवाब नहीं दिया। बस कहा कि तू सुन ले। मैंने कहा- क्रिकेट वाली है तो मैं नहीं सुनूंगा। तीन घंटा बर्बाद नहीं करूंगा।

इतनी बुरी कहानी है, फिर भी तू उस पर काम कर रहा है। उसने कहा कि मैंने लिख दी है। इतना टाइम लगा है, तू सुन तो ले। मुझे झुंझलाहट तो हुई, लेकिन दोस्त है, सुनना तो पड़ेगा। जब मैंने पहली बार डिटेल स्क्रिप्ट सुनी, तो मेरी हवाइयां उड़ गयीं। इतनी अच्छी स्क्रिप्ट थी। जो आप फ़िल्म देखते हैं, 99 पर्सेंट वही था।

ख़ुद पर ख़त्म हुई प्रोड्यूसर की तलाश

मैंने कहा- आशु कहानी तो बहुत बढ़िया लिखी है तूने, लेकिन यह बहुत मुश्किल फ़िल्म है। यह कौन बनाएगा? मैं उस समय प्रोड्यूसर नहीं था। मैं एक्टर था। इससे पहले मेरी और आशुतोष की 'बाज़ी' आयी थी, जो ख़ास कामयाब नहीं हुई थी। मैंने पूछा, यह फ़िल्म हम कैसे बनाएंगे? प्रोड्यूसर कौन है? चूंकि हम दोनों की पिछली फ़िल्म नहीं चली है, इसलिए कोई भी प्रोड्यूसर हम पर भरोसा नहीं करेगा।

इस फ़िल्म के लिए जैसे रिसोर्सेज़ चाहिए थे, वो नहीं मिलेंगे। मैंने उससे कहा कि तू पहले प्रोड्यूसर लेकर आ। जिस दिन तू प्रोड्यूसर ले आएगा, तब मैं करूंगा, लेकिन प्रोड्यूसर को यह मत बोलना कि आमिर ख़ान ने हां बोल दी है, क्योंकि फिर क्या होगा? वो प्रोड्यूसर आमिर की वजह से हां बोल रहा है। आशुतोष या कहानी की वजह से हां नहीं बोल रहा।

इस बीच मैंने कहा कि अगर तू किसी और को लेकर बनाना चाह रहा है तो देख ले। उसने कई एक्टरों को कहानी सुनायी, लेकिन लोगों को समझ में नहीं आयी। हर छह महीने पर मैं उसको बोलता था कि यार, एक दफ़ा और सुना। ऐसे करके मैंने तीन दफ़ा सुनी। जब भी सुनता था तो मैं सोचता था कि यह फ़िल्म करनी चाहिए यार, लेकिन हिम्मत नहीं होती थी। फिर एक रात मैं अकेला बैठा था।

मैंने सोचा- अगर गुरुदत्त, विमल रॉय, के आसिफ, शांताराम, महबूब ख़ान मेरी जगह होते तो डरते क्या? अगर तू उनकी तरह बनना चाहता है, तो उनकी तरह बर्ताव भी कर भाई। उससे मुझे हिम्मत मिली। उस समय मैंने डिसाइड किया कि अगर इसमें मुझे एक्टर करना है तो प्रोड्यूस भी करना पड़ेगा। मैं किसी और प्रोड्यूसर पर ट्रस्ट नहीं कर सकता। हालांकि, मुझे प्रोड्यूसर नहीं बनना था, क्योंकि मैंने अपने पिता को देखा हुआ था प्रोड्यूस करते हुए।

चौथी बार नैरेशन में शामिल हुए अम्मी-अब्बा और रीना

फिर एक आख़िरी दफ़ा मैंने आशु (आशुतोष गोवारिकर) को बोला कि एक चौथी दफ़ा सुना दे मुझे और उस नैरेशन में मैंने अम्मी-अब्बा जान को बुलाया। मैं अपने नैरेशन में किसी को बुलाता नहीं हूं। अकेले सुनता हूं। मैंने पहली बार अम्मी-अब्बा को बुलाया। पहली बार रीना को बुलाया, जो उस वक़्त मेरी पत्नी थीं। अम्मी-अब्बा जान, मैं, रीना, आशुतोष, झामू सुगंध.. इतने लोग थे मेरे स्टडी रूम में।

नैरेशन शुरू हुआ, ख़त्म हुआ। मैं सबसे चेहरे देख रहा था। मैं उनके भाव देख रहा था। मैंने अम्मी-अब्बा से पूछा। उन्होंने बस एक ही बात कही कि जब कहानी अच्छी होती है तो तुम्हें कर लेनी चाहिए। उसके आगे मत सोचो। फिर मैंने रीना से पूछा। उसने कहा, मुझे नहीं पता आपको करनी चाहिए या नहीं, लेकिन मुझे बहुत अच्छी लगी। आशुतोष को पता नहीं था यह सब। उसे लगा मैं तफ़रीह में चौथी बार सुन रहा हूं। मैंने उस दिन तय किया कि मैं फ़िल्म प्रोड्यूस कर रहा हूं और एक्ट भी कर रहा हूं। 

chat bot
आपका साथी