MP Election 2018: गढ़ हो या लहर, आगर में जीतते हैं 'पैराशूट' प्रत्याशी

चाहे भाजपा के नेता हों या कांग्रेस के, पैराशूट उम्मीदवार ही यहां से अधिक बार जीते हैं।

By Prashant PandeyEdited By: Publish:Mon, 19 Nov 2018 12:01 PM (IST) Updated:Mon, 19 Nov 2018 12:01 PM (IST)
MP Election 2018: गढ़ हो या लहर, आगर में जीतते हैं 'पैराशूट' प्रत्याशी
MP Election 2018: गढ़ हो या लहर, आगर में जीतते हैं 'पैराशूट' प्रत्याशी

शाजापुर, नईदुनिया प्रतिनिधि। आगर विधानसभा सीट 'बाहरी' नेताओं को खूब रास आती है। चाहे भाजपा के नेता हों या कांग्रेस के, 'पैराशूट' उम्मीदवार ही यहां से अधिक बार जीते हैं। एक उप चुनाव सहित कुल 15 चुनावों में से आठ बार इंदौर, उज्जैन व रतलाम के नेता यहां से विधायक बन गए। कुछ ने रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की। इस बार भी भाजपा व कांग्रेस ने बाहरी नेताओं पर ही दांव लगाया है। एक इंदौर से हैं तो दूसरे रतलाम जिले से। हालांकि, दोनों के लिए भितरघात का खतरा भी कम नहीं है।

आगर सीट से बाहरी नेताओं को टिकट देने का सिलसिला भाजपा-कांग्रेस ने अभी नहीं, बल्कि 1952 से शुरू कर दिया था। शुजालपुर के सौभागमल जैन कांग्रेस के टिकट पर आगर के पहले विधायक बने थे। तब से लेकर अब तक 66 साल के दौरान दोनों ही पार्टियों ने अधिकतर बाहरी नेताओं पर ही भरोसा जताया। सबसे ज्यादा भाजपा ने भरोसा कि या।

इस बार भी दोनों पार्टियों ने बाहरी नेताओं को ही टिकट दिए हैं। भाजपा के मनोहर ऊंटवाल रतलाम जिले के हैं तो कांग्रेस के विपिन वानखेड़े इंदौर से। भाजपा के पांच बाहरी नेता आगर सीट से अब तक विधायक बने हैं। वहीं कांग्रेस को तीन बार मौका मिला। आगर सीट भाजपा के लिए गढ़ मानी जाती है। वहीं शिवराज लहर का भी यहां असर रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस मुद्दों को भुनाकर यहां काबिज हुई।

शाजापुर-आगर जिले में कहीं नहीं ऐसी स्थिति- बाहरियों को लेकर आगर सीट पर जो माहौल बनता है, वह शाजापुर व आगर जिले की चार सीटों पर कम ही असर करता है। अधिकांश बार स्थानीय या जिले के नेताओं को ही मौका मिला है। सुसनेर सीट से तो सुसनेर या नलखेड़ा के ही विधायक रहे हैं। शाजापुर, शुजालपुर व कालापीपल (2008 से पहले गुलाना) सीट पर भी यही स्थिति रही।

इस बार हालात जुदा, पर जीत बाहरी के हिस्से ही

इस बार हालात कुछ जुदा हैं। भाजपा व कांग्रेस में सीधा मुकाबला है लेकि न दोनों ही पार्टी के उम्मीदवारों के लिए भितरघात का खतरा सबसे ज्यादा मंडरा रहा है। दरअसल, इस बार भाजपा-कांग्रेस दोनों में ही स्थानीय को टिकट देने की मांग जोरो से उठी थी। पुतले तक जलाए गए थे लेकिन पार्टियों ने बाहरियों को टिकट देकर स्थानीय दावेदारों की मंशा पर पानी फेर दिया। हालांकि, दावेदार काम तो कर रहे हैं लेकि न बेमन से। ऐसे में यह दोनों में से एक पार्टी के लिए खतरे की घंटी हो सकता है।  

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