UP Lok Sabha Election Result 2019 : बाहुबलियों से किनारा करता लोकतंत्र
लोकसभा चुनाव 2019 में अपने-अपने क्षेत्र में दमखम के बलबूते संसद से लेकर विधानभवन तक का सफर तय करने वाले दागियों की छोटी होती सूची इस बदलाव की गवाह है।
लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश की सियासत में बुलेट की दम पर बैलेट हासिल करने वाले बाहुबलियों को लोकतंत्र ने नकारना शुरू कर दिया है। लोकसभा चुनाव 2019 में अपने-अपने क्षेत्र में दमखम के बलबूते संसद से लेकर विधानभवन तक का सफर तय करने वाले दागियों की छोटी होती सूची इस बदलाव की गवाह है।
17वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में भी जहां बड़े राजनीतिक दल बाहुबलियों से किनारा कसते दिखे तो मतदाताओं ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने में कसर नहीं उठाई। भले ही जातीय समीकरणों की गणित के ही गाजीपुर से बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी तथा भगवा लहर ने बृजभूषण शरण सिंह की नैया भी पार लगा दी, लेकिन अन्य हर मोर्चा पर फेल रहे। यूपी में बाहुबलियों के चुनाव मैदान में उतरने और लोकसभा व विधानसभा का सफर तय का लंबा इतिहास रहा है।
जरायम की दुनिया में गहरा दखल रखने वाले बृजेश सिंह, अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, हरिशंकर तिवारी जैसे कई ऐसे नाम हैं, जो यूपी की सियासत में भी अपना दखल बनाने में कामयाब रहे। राजनीतिक दलों ने भी ऐसे दागियों को पहले खुलकर गले लगाया, लेकिन पिछले कुछ चुनावों ने इस ट्रेंड को तोड़ा। इसमें बड़ी भूमिका युवाओं व महिलाओं की देखी जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता ने धनंजय सिंह, अतीक अहमद, मित्रसेन यादव, डीपी यादव, अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना सरीखे कई बाहुबलियों को चित कर दिया था। इस बार भी अतीक अहमद ने वाराणसी से चुनावी मैदान में ताल ठोंकने की भरसक कोशिश की, लेकिन आखिरकार उन्हें ङ्क्षरग से बाहर ही रहना पड़ा। बताया गया कि धनंजय सिंह इस बार फिर चुनाव मैदान में आने की फिराक में थे, लेकिन किसी दल में बात नहीं बन सकी। मुख्तार अंसारी ने भी अपने बेटे अब्बास के लिए प्रयास किये पर उसे टिकट नहीं दिला सके। बृजेश सिंह अपने भतीजे सुशील सिंह को चंदौली से टिकट दिलाने की जुगत में थे पर नतीजा सिफर रहा। माफिया से माननीय बने विजय मिश्रा, अभय सिंह, जितेंद्र सिंह बबलू व ऐसे अन्य बाहुबलियों की भी कहीं दाल नहीं गल सकी।
इस चुनाव में जोड़तोड़ कर कई बाहुबलियों ने इंट्री तो ली पर एक बार फिर मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया। उन्नाव से सपा के टिकट पर चुनाव लड़े अरुण शंकर शुक्ला उर्फ अन्ना का संसद पहुंचने का ख्वाब फिर अधूरा रह गया। भदोही से रमाकांत यादव, फतेहपुर सीकरी से भगवान शर्मा उर्फ गुड्डू पंडित, सुलतानपुर से चंद्रभद्र सिंह व सहारनपुर से इमरान मसूद जैसे प्रत्याशियों की छवि उनकी राह का रोड़ा बनी। लोगों के बीच जाकर उन्होंने प्रचार तो किया, लेकिन अपना स्थान नहीं बना सके। रघुराज प्रताप सिंह ने अपनी पार्टी जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) बनाई और अपने रिश्तेदार अक्षय प्रताप सिंह को प्रतापगढ़ से चुनाव मैदान में उतारा पर उनका जादू नहीं चला। संतकबीर नगर से हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी ने बसपा के टिकट पर किस्मत आजमाई, लेकिन कामयाब नहीं हुए। गाजीपुर में मुस्लिम, यादव व दलित वोटों की तिकड़ी ने अफजल अंसारी की राह आसान की। पूर्वांचल की इस अहम सीट पर भाजपा सरकार के केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा की प्रतिष्ठा दांव पर थी। हालांकि गठबंधन से बदले समीकरणों ने इस सीट पर भाजपा को उभरने नहीं दिया।
आइसीयू में जा चुके हैं बाहुबली
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह मानते हैं कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में युवाओं ने बड़ा बदलाव किया है। इसका नतीजा है कि छुटपुट बाहुबली राजनीति से सिमट चुके हैं। कुछ बाहुबली अपवाद स्वरूप बचे हैं, लेकिन वे भी ज्यादा दिन टिक नहीं सकेंगे। युवा वर्ग को जात-पात व अपराध से एलर्जी है और वह इसका आभास करा रहा है। यह शुभ व सकारात्मक संदेश है। बाहुबली नेता पुलिस के लिए हमेशा चुनौती रहे हैं। वैसे ही जैसे करेला नीम चढ़ा। अब परिस्थितियां बदल रही हैं।
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