Loksabha Election 2019 : बुंदेलखंड...पानी के साथ बह रही कई अन्य समस्याएं

खास बात यह है कि चुनाव सिर पर हैं लेकिन इन जगहों पर अभी तक न कोई प्रत्याशी वोट मांगने आया है और न ही समस्या के लिए कोई समाधान ही प्रस्तावित है।

By Umesh TiwariEdited By: Publish:Fri, 26 Apr 2019 05:14 PM (IST) Updated:Fri, 26 Apr 2019 05:14 PM (IST)
Loksabha Election 2019 : बुंदेलखंड...पानी के साथ बह रही कई अन्य समस्याएं
Loksabha Election 2019 : बुंदेलखंड...पानी के साथ बह रही कई अन्य समस्याएं

महोबा/चित्रकूट [प्रियम वर्मा]। नदी, तालाब हों या पहाड़ और जंगल। सिर्फ किताबों में पढ़े और पेंटिंग में छपे हैं...कभी किसी चुनाव में क्या ये मुद्दा बने हैं। शायद नहीं, तभी यहां के लोग अब ये जानने लगे हैं कि वादे किसी के भी हों लेकिन, बदलाव के लिए प्रयास खुद से करने हैं। विडंबना ही है कि कोई क्षेत्र अपनी खामी से पहचान के आयाम गढ़े। प्रकृति की गोद में सालों से पल रहा बुंदेलखंड ममता की बूंद को तरसता रहा है और यही उसकी पहचान में सितारे गढ़ता रहा है लेकिन, अब पानी यहां की समस्या नहीं बल्कि कई अन्य समस्याओं की वजह है। चुनावी मौसम में भी इस बार यह वादों और प्रयासों के लिहाज से बीहड़ है। न प्रत्याशी आ रहे हैं और न कोई वादा कर रहे हैं। बात तो दूर, दीदार से भी परहेज है।

महोबा से कुछ किमी दूर स्थित मुढारी गांव का हर परिवार बहू तलाश रहा है लेकिन, समझौते की हर कोशिश के बाद भी बेबस नजर आ रहा है...मौदहा ब्लॉक का कपसा गांव एकता की अनोखी मिसाल पेश कर रहा है, सबकी एक सी समस्या है लेकिन, सालों से एक सुकून भरी सुबह की इन्हें आस है।

गुढ़ा...यह गांव अपने नाम की तर्ज पर अब बूढ़ा हो गया है। यहां ज्यादातर परिवारों के जवां इरादे शहर के हो गए हैं। घरों में बूढ़े मां-बाप रह गए हैं और बूंद-बूंद के मोहताज बन गए हैं। जानकार हैरानी नहीं होगी कि इन सारी समस्याओं का इल्जाम है पानी पर और समाधान के लिए निगाहें सरकार पर। खास बात यह है कि चुनाव सिर पर हैं लेकिन, इन जगहों पर अभी तक न कोई प्रत्याशी वोट मांगने आया है और न ही समस्या के लिए कोई समाधान ही प्रस्तावित है।

विकासखंड मौदहा का एक गांव है कपसा...मटके के ऊपर मटका टिकाए सिर पर पल्लू लिए कतार में चली आ रहीं महिलाओं को देख अचरज हुआ। लगा कि एकता की क्या अनूठी मिसाल है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं। सबकी विपदा एक है और एक के दुख ने दूसरे की बांह थाम रखी है। हर सुबह उन्हें ईश्वर की नहीं, पानी की जरूरत है और इसके लिए सालों से दो किमी दूर स्थित इस इकलौते कुंए पर आती हैं। पानी सीमित है। सो मिलकर बंटवारा होता है।

गुसियारी गांव की भी करीब यही स्थिति है। नदी के तीन किनारे कुएं खोदकर उससे पीने लायक पानी निकालते हैं। कोई परिवार सहित आता है तो कुछ पड़ोसी बुजुर्गों के लिए अतिरिक्त जलधन सहेजता है। यहां पांच हजार की आबादी है। प्रधान असरार खान कहते हैं कि संसाधनों को लेकर प्रयास किया जा सकता है बाकी स्थायी हल तो सरकार के हाथ में है जो अब दूर की कौड़ी नजर आता है। फिलहाल कोई प्रत्याशी अभी तक मिलने नहीं आया।

इचौली गांव की आबादी 4500 के करीब है। करीब ऐसी ही स्थिति है। प्रधान आलोक कुमार यादव कहते हैं कि गांव में पाइप पेयजल योजना के तहत पानी के पाइप बिछाकर पानी सप्लाई होती है। आधे गांव की जलापूर्ति कुएं और तालाब के सहारे ही होती है। यहां भाजपा प्रत्याशी पुष्पेन्द्र सिंह चंदेल, बसपा प्रत्याशी दिलीप कुमार सिंह और कांग्रेस प्रत्याशी प्रीतम सिंह किसान हैं। अभी तक सिर्फ वादों में ही मेहरबान हैं।

कुलपहाड़ गांव के बाहर समूहों में कई युवा बैठे हैं। यहां मुद्दा चुनाव नहीं बल्कि उनकी शादी है। पढ़ा-लिखा, खाया-कमाया, सब आजमाया फिर भी मां-बाप को बहू का सुख न दे पाया...इनकी बातों का कुछ यही सार था। जी हां, इस गांव में लोग अपनी बेटियां नहीं देते। परिजनों को डर सताता है कि पानी के जुगाड़ में ही कहीं उनकी बेटियों का जीवन न बीते।

दरअसल, गांव से करीब तीन किमी दूर का कुआं ही यहां पेयजल का मुख्य स्रोत है। वहां से पानी लाना मजबूरी है। मुढारी गांव में भी लगभग यही स्थिति है। हर कोशिश की जाती है लेकिन, लोगों के लिए लड़की कुंवारी अच्छी, पर इन गांवों में नहीं देंगे। लिहाजा बुढ़ापे का सहारा बेटे गांव छोड़ रहे हैं। वंश बचा रहे, बस यही सोच रहे हैं।

अब बात चित्रकूट की। अधिकांश गांवों में हैंडपंप तो है लेकिन, पानी नहीं। गोपीपुर गांव के ग्रामीण तीन किमी दूर चोहड़ का गंदा पानी पीकर प्यास बुझाते हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मानिकपुर के प्रभारी अधीक्षक डॉ. राजेश कुमार कहते हैं कि पीलिया, उल्टी दस्त, पेट दर्द के मरीज बड़ी संख्या में आते हैं। पहाड़ी ब्लॉक के बकटा बुजुर्ग गांव में तो फ्लोराइड युक्त पानी की समस्या दो दशक से है। यहां किसी का पैर टेढ़ा हो गया तो किसी की पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस बीमारी से ग्रस्त है।

मानिकपुर ब्लॉक की तीन दर्जन ग्राम पंचायतों में लघु सिंचाई विभाग द्वारा लगभग 1800 कुआं खोदे गए पर ज्यादातर अधूरे रह गए। यहां 28 नलकूप व 2500 हैंडपंप में 70 फीसद खराब हैं। वर्तमान में बांदा-चित्रकूट लोकसभा क्षेत्र से चुनाव में कांग्रेस से बाल कुमार पटेल, भाजपा से आरके सिंह पटेल और सपा-बसपा गठबंधन से श्यामा चरण उम्मीदवार हैं। अभी तक पेयजल संकट किसी के स्थानीय एजेंडे में नहीं शामिल।

कुदरत ने बुंदेली धरा को वैसे तो सात नदियों ककरयाऊ, चंद्रावल, उर्मिल, धसान, वर्मा, अर्जुन, ब्रह्म नदी का वरदान दिया लेकिन, कहीं अवैध खनन की वजह से तो कहीं कुदरती तप से इस क्षेत्र से पानी ही छीन लिया। करीब दो साल पहले चांदो गांव से निकली चंद्रावल नदी को पुनर्जीवित करने की पहल की भी गई। तत्कालीन मंडलायुक्त कल्पना अवस्थी ने प्रयास किया, मामला शासन पहुंचा, हर योजना अधूरी ही रह गई। अब इस चुनाव यहां के लोगों को किसी खुशनसीब बौछार की कोई उम्मीद नहीं। इनके लिए मुद्दा सिर्फ राष्ट्रीय है, जनप्रतिनिधि से कोई मतलब नहीं।

नदियां व वर्तमान स्थिति

अर्जुन नदी : उद्गम स्थल पर ही दम तोड़ गई।

क्योलारी : मप्र के चेकडैम की वजह से सूखी।

चंद्रावल : बांध बनाने के बाद उद्गम स्थल में सूखी।

वर्मा नदी - मौदहा डैम बनने के बाद प्रवाह थमा।

ब्रह्म नदी - यह नदी भी पूरी तरह सूख गई।

ककरयाऊ - कई साल पहले ही साथ छोड़ गई।

उर्मिल नदी - उर्मिल बांध में दम तोड़ देती है। 

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