Lok Sabha Election Results 2019: मोदी की सुनामी में उड़े कई दिग्गज

Lok Sabha Election Results 2019 इन चुनाव में जिन और बड़े चेहरों को हार का मुंह देखना पड़ा है उनमें मल्लिकार्जुन ज्योतिरादित्य वीरप्पा मोइली एचडी देवगौड़ा आदि शामिल हैं।

By Sanjeev TiwariEdited By: Publish:Thu, 23 May 2019 06:04 PM (IST) Updated:Thu, 23 May 2019 06:59 PM (IST)
Lok Sabha Election Results 2019: मोदी की सुनामी में उड़े कई दिग्गज
Lok Sabha Election Results 2019: मोदी की सुनामी में उड़े कई दिग्गज

अरविंद पांडेय, नई दिल्ली। आम चुनावों में मोदी की सुनामी का ही असर था, कि इस बार कई ऐसे दिग्गजों को भी हार की मुंह देखना पड़ा, जो 2014 में भी मोदी लहर से बच निकले थे। यह सभी ऐसे चेहरे हैं, जिनकी हार के बड़े मायने है।

इनमें मल्लिकार्जुन खड़गे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, वीरप्पा मोइली, एचडी देवगौड़ा, शत्रुध्न सिन्हा जैसे बड़े नाम शामिल हैं। इसके अलावा इन चुनाव में जिन और बड़े चेहरों को हार का मुंह देखना पड़ा है, उनमें दिग्विजय सिंह, शरद यादव, अशोक चाव्हाण, राजस्थान के मुख्यमंत्री के बेटे वैभव गहलोत, सुखराम के नाती आश्रय शर्मा जैसे नाम शामिल है।

आइए जानते है इन दिग्गजों की हार के मायने क्या हैं?-- 

- मल्लिकार्जुन खड़गे: - 2014 में मोदी की लहर के बाद जीत कर आए थे। लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता थे। ऐसे राज्य से है, जहां मौजूदा समय में जेडीएस और कांग्रेस की सरकार है। बावजूद इसके जनता ने नकार दिया। साफ संकेत है कि पार्टी ने विधानसभा चुनावों में जनता से जो वादा किया था, उसे पूरा नहीं किया।

- एचडी देवगौड़ा- पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा इस बार चुनाव मैदान में थे। बावजूद इसके उन्होंने विकास और क्षेत्र की जनता की ओर ध्यान देने के बजाय परिवार को ही बढ़ाने में ही जुटे रहे। यही वजह थी, कि जनता ने उन्हें नकार दिया। इस बार चुनाव मैदान में उनके साथ उनके दो नाती भी मैदान में थे। जबकि बेटा अभी कर्नाटक के मुख्यमंत्री है।

- दिग्विजय सिंह:- कांग्रेस के दिग्गजों में शुमार, लेकिन हिंदुत्व पर अनाप-शनाप बोलना मंहगा पड़ गया। उनकी इसी हिंदुत्व विरोधी छवि के चलते भाजपा ने उनके सामने कट्टर हिंदूवादी छवि का नेता साध्वी प्रज्ञा को मैदान में उतारा था। मौजूदा समय में राज्यसभा के सदस्य भी है।

-शरद यादव: विकास के बजाय सदैव जातिवादी राजनीति करते रहे। इस बार भी जातीय समीकरणों के आधार पर जीत की उम्मीद लगाए बैठे थे। पर बिहार की जनता ने उन्हें नकार दिया। नीतीश से अलग होने के बाद अब बिहार में उनकी पकड़ कमजोर हुई है।

-अशोक चव्हाण- महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री रहे है। लेकिन भाजपा- शिवसेना के गठबंधन की आंधी में खुद को बचा नहीं पाए। महाराष्ट्र में पार्टी के ज्यादातर दिग्गजों की हार से साफ है कि प्रदेश में पार्टी की पकड़ खत्म हो चुकी है। संजय निरुपम भी हारे हीं।

- वैभव गहलोत : कांग्रेस के रणनीतिकार और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे है। इनकी हार से बड़े मायने है। साफ है कि पार्टी ने प्रदेश की जनता से कर्ज माफी जैसे जो वादे किए थे, उसे पूरा नहीं कर पाए।

- ज्योतिरादित्य सिंधिया: कांग्रेस पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार 2014 की मोदी की लहर में भी जीतने वाले नेता थे। लेकिन जनता से जुड़ाव का अभाव और महाराजा की ठसक भारी पड़ गई। दो पीढि़यों से जिस गुना सीट पर इस परिवार का कब्जा रहता था, वह इस बार मोदी की सुनामी में हाथ से निकल गई।

-वीरप्पा मोइली:- कांग्रेस पार्टी के ऐसे सांसद रहे हैं जो 2014 में मोदी की लहर में भी जीते थे। लेकिन इस बार उन्हें भी हार का मुंह देखना पड़ा। इसकी वजह कर्नाटक में पार्टी के गलत तालमेल और सालों से एक सीट का प्रतिनिधित्व करने के बाद भी विकास कार्यो की ओर ध्यान नहीं दिया।

- आश्रय शर्मा:- पंडित सुखराम के नाती है। हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से मैदान में थे। लेकिन हार का सामना करना पड़ा। परिवार की दल बदलू राजनीति को जनता ने नकार दिया। इससे पहले सुखराम और उनके बेटे भाजपा में शामिल हुए थे। बेटे राज्य सरकार के मंत्री भी रहे। बाद में पाला बदल दिया था।

- शत्रुघ्न सिन्हा -आखिरकार अति महात्वाकांक्षा ले डूबी। 2014 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीतकर आए थे लेकिन सरकार में जगह नहीं मिलने से पूरे पांच सालों तक बागी बने घूमते रहे। पीएम मोदी की भी जमकर खिलाफत की। बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए। आखिरकार केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद से उन्हें तगड़ी पटखनी दी है।

- भूपेंद्र सिंह हुड्डा: जाट वोट बैंक सहारे परिवारवाद को बढ़ाने चले थे। अपनी पुरानी सीट रोहतक से बेटे को मैदान में उतारा, जबकि खुद सोनीपत से मैदान में उतरे गये। आखिरकार गैर जाट वोटों की एकजुटता और जाटों में उनके परिवारवाद के खिलाफ नाखुशी भारी पड़ी। आखिर हार की मुंह देखना पड़ा है।

- हरदीप सिंह पुरी:- मोदी सरकार के केंद्रीय मंत्री है। पंजाब के अमृतसर सीट से मैदान में थे। हालांकि हार का सामना करना पड़ा। हार के पीछे इनका बाहरी होना एक बड़ा कारण बड़ा बना। साथ ही वह इस बैरियर को तोड़ भी सकते थे पर उन्हें अचानक इस सीट से उतारा गया। जिसके चलते उन्हें काम करने और जनता के बीच पैठ बनाने के लिए कम समय मिला।

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