अनंतनाग सीट : आतंकवाद के गढ़ में लोकतंत्र का बिगुल, शांतिपूर्ण मतदान संपन्न कराना भी चुनौती

अनंतनाग सीट पर शांतिपूर्ण मतदान संपन्न कराना सुरक्षाबलों के साथ राजनीतिक दलों व चुनाव आयोग के लिए भी चुनौती है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Sun, 21 Apr 2019 08:39 AM (IST) Updated:Sun, 21 Apr 2019 08:39 AM (IST)
अनंतनाग सीट : आतंकवाद के गढ़ में लोकतंत्र का बिगुल, शांतिपूर्ण मतदान संपन्न कराना भी चुनौती
अनंतनाग सीट : आतंकवाद के गढ़ में लोकतंत्र का बिगुल, शांतिपूर्ण मतदान संपन्न कराना भी चुनौती

श्रीनगर, नवीन नवाज। अनंतनाग-पुलवामा संसदीय क्षेत्र इससे पहले कभी भी देश और जम्मू-कश्मीर की चुनावी सियासत में इतना अहम नहीं रहा है। यहां तीन चरणों में हो रहे मतदान से ही क्षेत्र की संवेदनशीलता का अंदाजा लगाया जा सकता है। दक्षिण कश्मीर के चार जिलों के 16 विधानसभा क्षेत्रों में फैले अनंतनाग संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रक्रिया को शांतिपूर्ण और स्वतंत्र रूप से संपन्न कराना सुरक्षाबलों, चुनाव आयोग और चुनाव लड़ रहे राजनीतिक दलों के लिए बड़ी चुनौती है। 
सुरक्षाबलों के लिए सिर्फ एक सुरक्षित वातावरण तैयार करने की जिम्मेदारी है, लेकिन उससे भी ज्यादा राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग के लिए ज्यादा से ज्यादा संख्या में मतदाताओं को मतदान केंद्र तक पहुंचाकर चुनाव बहिष्कार के असर को कम करने की चुनौती है। अनंतनाग, कुलगाम, पुलवामा और शोपियां जिले में फैले इस संसदीय क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती, प्रदेश कांग्रेस प्रमुख जीए मीर, नेकां के हसनैन मसूदी और भाजपा के सोफी मोहम्मद यु़सूफ समेत 20 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं। सबसे पहले 23 अप्रैल को जिला अनंतनाग में, 29 अप्रैल को कुलगाम में और 6 मई को पुलवामा व शोपियां में मतदान होगा। पूरे क्षेत्र में सिर्फ 10 फीसद मतदान केंद्र ही संवेदनशील हैं, अन्य सभी अत्यंत संवेदनशील हैं।

दक्षिण कश्मीर में 200 आतंकी सक्रिय :
जम्मू-कश्मीर में अल-कायदा की पहचान बने आतंकी संगठन अंसार उल गजवात-ए-हिंद का कमांडर जाकिर मूसा और हिज्ब का दुर्दांत आतंकी रियाज भी इसी इलाके से हैं। पूरे दक्षिण कश्मीर में लगभग 200 स्थानीय आतंकी सक्रिय हैं। इसके अलावा कोई गांव या मोहल्ला ऐसा नहीं है, जहां आतंकियों का ओवरग्राउंड नेटवर्क सक्रिय नहीं है। क्षेत्र में आतंकियों का दबदबा साफ नजर आता है। पूरे क्षेत्र में पुलिस, सेना और सीआरपीएफ के शिविरों की मौजूदगी, दिनरात सुरक्षाबलों की गश्त के बावजूद लोग शाम होते ही घरों से बाहर निकलने से कतराते हैं। यह वही इलाका है, जहां आतंकियों ने पुलिस अधिकारियों व कर्मियों के परिजनों को अगवा करते हुए संदेश दिया कि अगर हमारे परिजनों पर बात आयी तो हम जवाबी कार्रवाई करेंगे।

ठप हो गई थी सियासी गतिविधियां :
आतंकी बुरहान की जुलाई 2016 में मुठभेड़ में हुई मौत के बाद पूरे कश्मीर में विशेषकर दक्षिण कश्मीर में तेजी से बदले समीकरणों के बीच यहां मुख्यधारा की सियासी गतिविधियां लगभग ठप होकर रह गई थी। जिसने बीते छह माह के दौरान धीर-धीरे जोर पकड़ा है। अनंतनाग के खन्नबाल, लारनू, शांगस और डुरु को छोड़ अन्य इलाकों में अभी भी रैलियों व बैठकों से मुख्यधारा के दल कतरा रहे हैं। इन इलाकों में लोगों की भीड़ नजर नहीं आती, जो बताती है कि आतंकवाद, अलगाववाद की हवा गरम है।

दलों व चुनाव आयोग को करनी पड़ेगी मेहनत:
कश्मीर मामलों के विशेषज्ञ अहमद अली फैयाज का कहना है कि उत्तरी कश्मीर की अपेक्षा दक्षिण कश्मीर में अलगाववाद की भावना ज्यादा प्रबल है। पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में दक्षिण कश्मीर में अधिकांश जगहों पर उम्मीदवार ही नजर नहीं आए। कुछेक इलाकों को छोड़ दिया जाए तो चुनावी सभाएं नहीं हुई हैं। आप सुरक्षाबलों के सहारे सिक्योरिटी ग्रिड तो मजबूत बना लेंगे, आतंकियों को रोक लेंगे, लेकिन जो डर लोगों के दिल में है, उसे कैसे दूर करेंगे। ऊपरी इलाकों में जरूर वोटर दिखेंगे। लेकिन निचले इलाकों में मतदान केंद्र सूने रह सकते हैं। इसके लिए राजनीतिक दलों के अलावा चुनाव आयोग को भी मेहनत करनी है।

मतदान को लेकर कुछ जगह पर ही दिख रहा उत्साह:
2014 में जो जोश दक्षिण कश्मीर में था, वह सिर्फ कुछेक जगहों पर ही नजर आता है। अधिकांश जगहों पर लोग चुनाव को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं। इसके अलावा बीते तीन सालों में दक्षिण कश्मीर में करीब 400 स्थानीय आतंकी मारे गए हैं। इसलिए मारे गए आतंकियों के परिजन व उनके पड़ोसी ही नहीं सक्रिय आतंकियों के परिजन भी चुनाव प्रक्रिया से दूर रहेंगे। उनकी नजर से बचने के लिए उनके पड़ोसी भी मतदान केंद्र तक जाने से कतराएंगे।

पीडीपी का वोट बैंक जमात के प्रभाव वाले इलाकों में अधिक:
1999 के बाद से अगर दक्षिण कश्मीर में हुए मतदान के ट्रेंड को समझा जाए तो जमात ए इस्लामी के कैडर की मतदान में भागेदारी स्पष्ट रही है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का वोट बैंक भी जमात के प्रभाव वाले इलाकों में ही ज्यादा रहा है। इसके अलावा जमात ए इस्लामी शुरू से ही कश्मीर की सियासत में नेशनल कांफ्रेंस की प्रमुख विरोधी रही है। इसलिए उसके कैडर ने बीते 20 सालों में जब भी वोट डाला तो नेकां (नेशनल कांफ्रेंस) को हराने के लिए। वहीं कुलगाम में जमात ने माकपा के गढ़ को तोड़ने के लिए वोट किया है। इस समय जमात ए इस्लामी पर पाबंदी है। इसलिए उसका कैडर वोट डालने आएगा, यह तय नहीं है। अगर नहीं आता तो मतदान का प्रतिशत घटेगा।  

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