Jharkhand Assembly Election 2019: दरकती आस्थाओं के रण में निष्ठा हारती रही, नेता जीतते रहे Palamu Ground Report

Jharkhand Assembly Election 2019. पलामू प्रमंडल की सभी विधानसभा सीटों पर दलबदलू प्रत्याशी किस्मत आजमा रहे हैं।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Thu, 14 Nov 2019 07:43 PM (IST) Updated:Thu, 14 Nov 2019 07:43 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: दरकती आस्थाओं के रण में निष्ठा हारती रही, नेता जीतते रहे Palamu Ground Report
Jharkhand Assembly Election 2019: दरकती आस्थाओं के रण में निष्ठा हारती रही, नेता जीतते रहे Palamu Ground Report

पलामू से संदीप कमल। सुबह का वक्त। मेदिनीनगर के नवाटोली मोहल्ले में चाय की दुकान। यहां बैठे बुजुर्ग सज्जन को इस बात का मलाल है कि अब मूल्यों की राजनीति नहीं होती। नेता हर पल पाला बदलते हैं। निष्ठा का कोई मोल नहीं। विचारधारा की राजनीति बीते समय की बात हो गई है। सुनील कुमार चंद्रवंशी और हीरा साव अस्सी के जमाने से पलामू की राजनीति को नजदीक से देख रहे हैं।

झारखंड विधानसभा के मौजूदा चुनाव में भी नेताओं ने जिस तरह रातों-रात दल और दिल बदले वह इन्हें कहीं ना कहीं कचोटता है। पलामू प्रमंडल की लगभग सभी सीटों पर रातों रात निष्ठा त्याग दल बदलने वाले नेताओं की जमात मिलेगी। दिन में फूल, रात में फल। डाल्टनगंज विधानसभा क्षेत्र से पिछली दफा झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर चुनाव जीतने वाले आलोक चौरसिया इस बार भाजपा के प्रत्याशी हैं।

पलामू की राजनीति में कभी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी की तूती बोलती थी। आज वे हाशिए पर हैं। शहर के बेलवाटिका स्थित उनके आवास पर सन्नाटा पसरा है। भाजपा, जनता दल और जनता दल (यूनाइटेड) तीन दलों में वे रहे और यहां की जनता का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया। पास की छतरपुर पाटन विधानसभा सीट से जब भाजपा ने राधाकृष्ण किशोर को बेटिकट किया, तो उन्होंने रातों रात आजसू का दामन थाम लिया।

इस सीट से भाजपा ने पुष्पा देवी को चुनाव मैदान में उतारा है। पुष्पा देवी के पति मनोज भुइयां राजद के सांसद रह चुके हैं। यही हाल हुसैनाबाद विधानसभा सीट का है। यहां से बसपा के टिकट पर पिछला चुनाव जीतने वाले कुशवाहा शिवपूजन मेहता इस बार बतौर आजसू उम्मीदवार खम ठोक रहे हैं। मेदनीनगर स्थित अपने आवास पर समर्थकों से घिरे राधाकृष्ण किशोर बुधवार को नामांकन की तैयारी में व्यस्त थे। कहते हैं -जहां निष्ठा और समर्पण की कद्र ना हो वहां से निकल जाना ही मैंने बेहतर समझा।

क्षेत्र के विकास के लिए पिछले पांच वर्षों में मैंने जो काम किया, उसी के बूते इस बार भी चुनाव मैदान में हूं। इधर पांकी विधानसभा सीट की बात करें तो यहां भाजपा के टिकट पर इस बार भाग्य आजमा रहे शशि भूषण मेहता पांकी विस उपचुनाव 2016 में बतौर झामुमो और इससे पहले 2014 के आम चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। विश्रामपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से रामचंद्र चंद्रवंशी भाजपा में आने से पूर्व राजद के टिकट पर विधायक चुने गए थे।

राज्य के स्वास्थ्य मंत्री हैं और पलामू प्रमंडल की स्वास्थ्य सेवाएं किसी से छिपी नहीं है। गढ़वा की बात करें तो यहां के भाजपा प्रत्याशी सत्येंद्र नाथ तिवारी एक बार झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर विधायक चुने जा चुके हैं। कभी झारखंड में राजद के खेवनहार रहे गिरिनाथ सिंह बड़ी उम्मीद के साथ भाजपा में आए थे। निराशा हाथ लगी। वे भी बागी तेवर में हैं। भवनाथपुर सीट की कहानी तो और भी दिलचस्प है। भानु प्रताप शाही अंतिम समय में भाजपा का टिकट ले उड़े। अनंत प्रताप देव मुंह ताकते रहे।

गढ़ में अपने समर्थकों की नारेबाजी के बीच दैनिक जागरण से बातचीत में छोटे राजा कहते हैं कि जब दागी लोग पार्टी में आ जाएंगे तो फिर पार्टी में बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। नेताओं की पल-पल बदलती निष्ठा पर जीएलए कॉलेज डाल्टनगंज के रिटायर्ड प्रोफेसर और आरएसएस से लंबे समय से जुड़े प्रोफेसर केके मिश्रा कहते हैं-पहले भाजपा में यह बात नहीं थी। यहां समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं की पूछ होती थी। जब आप किसी दल से किसी नेता को तोड़ कर लाते हैं तो यह आपकी तात्कालिक और कूटनीतिक जीत हो सकती है।

लेकिन लंबे अरसे से पार्टी संगठन में काम कर रहे लोगों में निराशा होती है। प्रो. मिश्रा इमरजेंसी के दौरान 22 महीने जेल में रह चुके हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में विभिन्न पदों पर काम करने का लंबा अनुभव है। बकौल प्रो. मिश्रा दूसरे दलों या दूसरी विचारधारा के लोगों के भाजपा में आने से वैसे लोग ठगा महसूस करते हैं जो किसी न किसी रूप में वृहत संघ परिवार से जुड़े हुए हैं। कोई किसी भी दल से कहीं भी आए-जाए, राष्ट्रहित के मुद्दे सर्वोपरि हैं, यह किसी को भूलना नहीं चाहिए।

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