Jharkhand Assembly Election 2019: राजनीति की पाठशाला बना बाबूलाल मरांडी का झाविमो

Jharkhand Assembly Election 2019. एक समय एक साथ छह विधायकों ने मरांडी का साथ छोड़ दिया था। चुनाव से पूर्व बनता और बिखरता रहा है बाबूलाल का कुनबा।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Publish:Mon, 18 Nov 2019 07:33 PM (IST) Updated:Tue, 19 Nov 2019 08:29 AM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: राजनीति की पाठशाला बना बाबूलाल मरांडी का झाविमो
Jharkhand Assembly Election 2019: राजनीति की पाठशाला बना बाबूलाल मरांडी का झाविमो

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Assembly Election 2019 - झारखंड के क्षेत्रीय दलों में राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो ही है, जिसके आठ में से छह विधायकों ने एक साथ दल का साथ छोड़ दिया। विधानसभा चुनाव 2014 के ठीक बाद  कंघी छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले इन विधायकों में से दो मंत्री बना दिए गए, जबकि तीन को विभिन्न बोर्ड-निगमों का अध्यक्ष बना दिया गया। शेष बचे में दो में से एक लातेहार के विधायक प्रकाश राम ने भी पिछले दिनों उनका साथ छोड़ दिया और कमल खिलाने निकल पड़े।

साथ छोडऩे वालों में से आधे से अधिक विधायक ऐसे हैं, जिन्हें झाविमो ने राजनीतिक पहचान दिलाई थी। यह तो रही विधायकों की बात, दल छोडऩे वाले विभिन्न  पदधारियों और समर्थकों की बात करें, तो यह संख्या सौ को भी पार कर जाती है। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि झाविमो राजनीति की पाठशाला बनकर रह गई है, जहां लोग नामांकन लेते हैं और प्रशिक्षण के बाद कहीं और राजनीतिक ठौर तलाश लेते हैं।

बताते चलें कि भाजपा का दामन छोडऩे के बाद बाबूलाल मरांडी ने 2006 से नई पार्टी झाविमो के साथ अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी। वह भी एक दौर था, बाबूलाल ने जब भाजपा से किनारा किया था, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे रवींद्र राय, दीपक प्रकाश, प्रवीण सिंह, समरेश सिंह दर्जनों नेता उनसे जुड़ते चले गए। झाविमो के गठन के लगभग ढाई वर्ष बाद हुए विधानसभा चुनाव 2009 में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर झाविमो ने 11 सीटें हासिल की।

2014 के चुनाव में मोदी लहर के बावजूद उन्होंने आठ सीटें फतह की। हालांकि, बाबूलाल स्वयं अपनी विधायकी बचाने में सक्षम नहीं रहे। लोकसभा चुनाव में भी उन्हें मुंह की खानी पड़ी। 2006 में उनके साथ चलने की कसम खाने वाले बीच राह में ही उन्हें छोड़कर चलते बने। दल छोडऩे का यह सिलसिला अनवरत जारी रहा। 2014 से 2019 के कालखंड में भी सैकड़ों समर्थक पार्टी छोड़कर चले गए। 2014 के बाद दल छोड़कर जाने वाले विधायकों के बाद यह सुर्रा भी उठा कि झाविमो का भाजपा में विलय हो गया।

अलबत्ता निर्वाचन आयोग ने दल की मान्यता बरकरार रखी है। झाविमो इस बार अकेले दम पर 81 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। अन्य दलों के विक्षुब्धों का झाविमो में आने का क्रम जारी है। अब देखना है कि  झाविमो के बनते और टूटते कुनबे को बाबूलाल इस बार किस हद तक संभाल पाने में कामयाब होते हैं।

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