Jharkhand Assembly Election 2019 : मुस्करा रहे आदिवासी वोटर, पूछने पर बोलते-'आबोइज् के गे...'

Jharkhand Assembly Election 2019. आदिवासी वोटरों में सीएनटी का सेंटीमेंट दिखा तो सिलिंडर की सेंधमारी भी रही।

By Rakesh RanjanEdited By: Publish:Sun, 08 Dec 2019 10:46 AM (IST) Updated:Sun, 08 Dec 2019 04:59 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019 : मुस्करा रहे आदिवासी वोटर, पूछने पर बोलते-'आबोइज् के गे...'
Jharkhand Assembly Election 2019 : मुस्करा रहे आदिवासी वोटर, पूछने पर बोलते-'आबोइज् के गे...'

जमशेदपुर, भादो माझी। Jharkhand Assembly Election 2019   लोकतंत्र के इस महापर्व में अगर मेले सा नजारा कहीं था तो गांवों में। खासकर आदिवासी बहुल इलाकों में। सुबह-सुबह तालाब में नहाने के लिए इन गांवों में शनिवार को आम दिनों से ज्यादा भीड़ थी। नहा-धोकर वोट देने जो जाना था। वोट डालने से पहले तालाब के घाट (जहां लोग नहाते हैं) पर ही आज झारखंड की सरकार तय हो रही थी। किसकी बनानी है, किसकी बिगाडऩी है। दांत से दातून पीसते सरकार की समीक्षा की जा रही थी।

सीएनटी एक्ट से लेकर दो-दो गैस सिलिंडर मिलने तक पर माहौल बनाया जा रहा था। मुद्दा सीएनटी-सिलिंडर ही नहीं, मुद्दा यह भी था कि कौन नेता (प्रत्याशी) गांव में आया था, कौन नहीं। कुल मिलाकर ऐसे ही समीकरणों पर अपना सियासी नफा-नुकसान आंक कर आदिवासी वोटरों ने सुबह के नौ बजते-बजते मन की मुट्ठी बंद कर ली। तय कर लिया कि इस ओर जाना है, उसको हराना है। किसे वोट दे रहे हैं पूछने पर मुस्करा देते, और शिद्दत से झिझकते हुए कहते-'आबोइज् के गे।' (हमारे अपने को ही।) अब आप खुद समझ लीजिए कि 'हमारे अपने' के मायने इस विधानसभा सीट पर क्या हैं।  

सुनते सबकी, करते मन की

बहरहाल, अब नौ बजने को थे, बूथ पर लाइन लंबी होती जा रही थी। बूथ के बाहर राजनीतिक दलों के नेता वोट का दाना चुगने को चहचहाने लगे थे। जो बूथ पर पहुंचता, उसे अपने हिसाब का समीकरण बताते, फायदे गिनाते। विपक्ष के नेता कान में फूंकते कि उधर (पक्ष) जाओगे तो जमीन से भी जाओगे। एक्ट-वेक्ट अधिकतर वोटरों को बहुत बुझाता नहीं। सो, सीधे-सीधे उनसे संताली में कहा गया-'हासा-बाडग़े बो ऐड़े ओचो आ।' (जमीन लुट जाएगी)। यह सुन वोटर सिर हिलाकर आगे चले जाते। आगे उन्हें पक्ष वाले सिलिंडर के साथ-साथ शौचालय, सड़क, आयुष्मान की याद दिलाते। यहां से भी पर्ची पकड़े वे बढ़ जाते। लाइन में खड़े होते। उंगली नीली करने के बाद बाहर निकलते तो चेहरे पर अलग ही सुकून लिए। सुकून इस बात का कि अब इसको वोट दो-उसको वोट दो के लिए उन्हें टोका नहीं जाएगा। दे दिया। बस।

धिरोल गांव में अलग मिजाज

पोटका विधानसभा क्षेत्र के धिरोल गांव में वोटरों का यह मिजाज हर दूसरे चेहरे पर दिख रहा था। इस इलाके से भाजपा से मेनका सरदार तो झामुमो से संजीव सरदार मोर्चे पर हैं। दिलचस्प बात यह कि इस इलाके के अधिकतर आदिवासी वोटरों को वोट देने तक यह ठीक-ठीक नहीं पता कि उनके वोट से मुख्यमंत्री तक तय होगा। संताली में पूछते भी हैं-'हें बबू लाय मेसे, मुदीये दाड़ेआ से सुनिया? (बाबू बताओ तो जरा कि इस बार मोदी जीत रहे कि शिबू।) उनका यह सवाल सुन आपको लगेगा कि ये राष्ट्रीय फलक को ध्यान में रखकर तो सियासी सवाल नहीं कर रहे, लेकिन नहीं। उन्हें तो दो ही नेता का नाम ठीक से पता है। वह हैं शिबू सोरेन और नरेंद्र मोदी। यही बात उन्हें परंपरागत वोटर भी बनाती है। परंपरागत वोटर, यानी उनके क्षेत्र में कौन खड़ा है, कौन नहीं, इसकी उन्हें जानकारी तक नहीं, बस जिसको देते आए थे, उसे देना है। 

हमने तो काम कर दिया

घाटशिला विधानसभा क्षेत्र की और बढऩे पर वोटरों का उत्साह बढ़ता दिखा। लाइन लंबी होती जा रही थी। भदुआ गांव के पास बने बूथ पर मिले बुजुर्ग राजाराम मुर्मू उस समय ताजा-ताजा वोट देकर निकले थे। पूछने पर कि किसे वोट किए? क्या मिजाज है इलाके में? कौन जीत रहा? बताते कि जीते कोई, हमने तो काम कर दिया। पूछने पर कि क्या राम मंदिर... धारा 370...कश्मीर... का कुछ हल्ला है? सवाल सुन वह खुद प्रश्नवाचक नजर से देखने लगे। सकपका कर बोले-'चुल्हा ले ञाम आकादा।' (गैस सिलिंडर का लाभ मिला है।) बाकी किसी सवाल का जवाब नहीं दिया।  कुल मिलाकर आदिवासी वोटरों के वोटिंग ट्रेंड में इस बार सीएनटी को लेकर सेंटीमेंट दिखा तो उज्ज्वला के सिलिंडर की सेंधमारी भी दिखी। वोटर सीधे हैं। इनमें से कुछ ने सेंटीमेंट के साथ वोट किया तो कुछ ने परंपरागत और बाकी मन की मुट्ठी बंद कर अपनी-अपनी पसंद के हिसाब से। 

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