Jharkhand Assembly Election 2019: विकास की जमीं पर लिखी जाएगी प्रत्याशियों की तकदीर Baharagora Ground Report
Jharkhand Assembly Election 2019 करोड़ों रुपये खर्च कर बनी स्वर्णरेखा नहर नहीं आ रही किसानों के काम महुलडांगरी में स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए बंगाल व ओडिशा पर निर्भरता। यहां पढ़ें.
बहरागोड़ा से शशि शेखर। झारखंडी, बांग्ला और ओडिया संस्कृति की त्रिवेणी बहरागोड़ा। पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय से 90 किलोमीटर दूर है बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र का महुलडांगरी गांव। ओडिशा सीमा से बिल्कुल सटा। कलकल बहती स्वर्णरेखा नदी झारखंड और ओडिशा को विभाजित कर रही है। नदी के उस पार ओडिशा जिले के सारसकोना प्रखंड का नेदा गांव है। ओडिशा से जैसे ही झारखंड की सीमा में प्रवेश करते हैं, झारखंड और ओडिशा में फर्क साफ महसूस होता है।
हम स्वर्णरेखा नदी के किनारे स्थित झारखंड के पहले गांव महुलडांगरी की ओर बढ़ते हैं। हमारा सामना अपनी वजूद तलाशती सड़क से होता है। इसके कुछ दूर बाद इकलौता स्वास्थ्य उपकेंद्र नजर आया, जो डॉक्टर और मरीज दोनों की तलाश में है। यहां न कोई डॉक्टर नजर आया और न ही मरीज। औपचारिकता पूरी करने के लिए एक स्वास्थ्य कर्मी ताला खोल कर बैठा जरूर था।
महुलडांगरी के आसपास के आधा दर्जन गांवों की लगभग 200 एकड़ जमीन स्वर्णरेखा नदी के लगभग तीन किमी झारखंड की ओर खिसकने से यानी हर साल कटाव होने से ओडिशा की ओर चली गई है। यहां नदी पर एक पुल बन जाए तो लोग बड़ी आसानी से उस पार जाकर अपने खेतों पर हल चला सकते हैं। सोमवार की सुबह करीब साढ़े दस बजे नदी के तट पर गांव के लोग स्नान करने आए हैं। इन लोगों की नजरों में अपनी जमीन पर हल न चला पाने की बेबसी साफ झलकती है। बावजूद इसके, गांव के लोग लोकतंत्र के इस महापर्व को लेकर खासे उत्साहित हैं। यहां के लोगों की जुबान में ओडिया, बांग्ला और हिंदी रची बसी है।
'दैनिक जागरण' के अभियान 'इस बार वोट झारखंड के लिए' की सराहना करते हुए स्थानीय लोग कहते हैं कि इस बार हम झारखंडी बनकर झारखंड के विकास के लिए मतदान करेंगे। विकास अभी सुदूर गांवों तक नहीं पहुंचा है। स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए भी बंगाल व ओडिशा पर निर्भरता है। ऐसे में कोई विकास पुरुष ही इन आधारभूत संरचनाओं को धरातल पर उतार सकता है।
1962 से वजूद में आई बहरागोड़ा विधानसभा सीट इस बार कई मायनों में खास है। 2014 के विधानसभा चुनाव के चंद दिनों पहले झामुमो में शामिल हुए कुणाल षाडंगी टिकट पाकर विधायक बन गए और इस बार भी चंद दिनों पहले ही भाजपा में शामिल होकर पार्टी का टिकट लेकर वे फिर से मैदान में हैं। कुणाल के सामने हैं भाजपा छोड़कर झामुमो में शामिल हुए समीर महंती। दलबदल की यह अनूठी नजीर है। नेताओं के इस उलटफेर से क्षेत्र के कार्यकर्ता परेशान और मतदाता हैरान हैं।
दूसरी ओर, भाजपा के अंदर ही अपना-अपना खेमा बनाए सांसद विद्युत वरण महतो और टिकट के प्रबल दावेदार रहे भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. दिनेशानंद गोस्वामी अगर दिल से कुणाल के साथ हुए, तो उनकी राह आसान हो जाएगी। वहीं, पूर्व में भाजपा के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य रहे एवं इस क्षेत्र में पिछले ढाई दशक से राजनीति में सक्रिय समीर महंती की भी जनता में अच्छी पैठ है। इसलिए यहां का चुनाव कांटे की टक्कर का होगा।
धान का कटोरा है बहरागोड़ा
बहरागोड़ा विधानसभा क्षेत्र में रोजगार का मुख्य साधन खेती किसानी ही है। यह इलाका धान का कटोरा कहा जाता है। करोड़ों रुपये खर्च कर स्वर्णरेखा नहर बनाई तो गई, लेकिन किसानों के किसी काम नहीं आ रही है। कभी इस विधानसभा क्षेत्र के चाकुलिया में 32 चावल मिल दिन-रात धान कूट कर चावल बनाते थे। लेकिन, आधारभूत संरचना की कमी के कारण 18 चावल मिल बंद हो चुके हैं।
सड़क व बिजली की कमी और साल में मात्र तीन महीने ही सरकारी धान से चावल बनाने का काम मिलने के कारण बचे 14 चावल मिल भी अब बंद होने वाली स्थिति में आ गए हैं। चावल मिल संचालक दीपक झुनझुनवाला कहते हैं कि कुछ ही किलोमीटर के फासले पर ओडिशा और बंगाल की सरकारें जब अपने चावल मिलों को आठ से नौ महीने सरकारी धान से चावल बनाने का काम दे सकती हैं, तो झारखंड सरकार क्यों नहीं। अब तक इस इलाके का प्रतिनिधित्व करने वाले किसी भी जनप्रतिनिधि ने इसकी सुधि नहीं ली।
खैर, एक उम्मीदवार और एक संभावित उम्मीदवार की खामियों और खूबियों के बीच आम मतदाता भी असमंजस में है। बहरागोड़ा बाजार में मिले मृगांक शेखर बेरा कहते हैं, महसूस होता है कि यहां विकास को देखने में हमें अभी बहुत समय लगेगा। इसीलिए इस बार किसी पार्टी को नहीं, व्यक्ति विशेष को नहीं, जो विकास का ब्लू प्रिंट लेकर आएगा, लोग उसी के साथ खड़े होंगे।