नेताओं को कसौटी पर परखें... किसी को कोसने से अच्छा हम बेहतर प्रतिनिधि चुनें

ऐसे प्रतिनिधि चुनकर भेजे जाएं जो विकास की बात करते हों जिनके लिए राष्ट्र प्रदेश व समाज हित सर्वोपरि हो जो लोकतांत्रिक प्रणाली में भरोसा करते हुए लोगों के हितों के लिए काम करें।

By Kamlesh BhattEdited By: Publish:Sun, 22 Sep 2019 10:06 AM (IST) Updated:Mon, 23 Sep 2019 08:33 AM (IST)
नेताओं को कसौटी पर परखें... किसी को कोसने से अच्छा हम बेहतर प्रतिनिधि चुनें
नेताओं को कसौटी पर परखें... किसी को कोसने से अच्छा हम बेहतर प्रतिनिधि चुनें

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। आखिर वह घड़ी आ गई, जिसका सबको इंतजार था। लोकतंत्र के महापर्व की घड़ी। ढ़ाई करोड़ की आबादी वाले हरियाणा में एक करोड़ 83 लाख मतदाता दीपावली से पहले 21 अक्टूबर को अपनी पसंद की सरकार चुनेंगे। यही वो वक्त होगा, जब पिछली सरकारों के कामकाज और अब तक चुने प्रतिनिधियों को अलग-अलग कसौटी पर तौला जा सकेगा। फिर बनेगी नई सोच। ऐसी सोच, जिसमें 14वीं विधानसभा के लिए चुने जाने वाले पढ़े लिखे, साफ छवि के जुझारू तथा विकास के पक्षधर विधायकों को चुनने के विकल्प होंगे।

संयुक्त पंजाब से अलग होकर एक नवंबर 1966 को अस्तित्व में आए हरियाणा में अब तक 12 चुनाव हुए हैं। यह 13वां चुनाव होगा। विधानसभा 14वीं है, क्योंकि हरियाणा जब संयुक्त पंजाब का हिस्सा था, तब पहली विधानसभा में हरियाणा क्षेत्र से चुने गए विधायक ही बैठे थे।

हरियाणा के लोगों ने अब तक हर क्षेत्रीय दल से लेकर राष्ट्रीय दल तक की सरकारें बेहद करीब से देखी हैं। पंडित भगवत दयाल शर्मा, बनारसी दास गुप्ता, राव बिरेंद्र, ताऊ देवीलाल, चौ. बंसीलाल, स्व. भजनलाल, मा. हुकुम सिंह, ओमप्रकाश चौटाला, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और अब मनोहर लाल के कार्यकाल प्रदेश की जनता के सामने हैं।

आया राम गया राम की राजनीति के नाम से मशहूर हरियाणा में राजनीतिक अस्थिरता के कारण तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लगा। शुरू के चुनावों पर नजर दौड़ाएं तो सामने आएगा कि बूथ कैप्चरिंग, वोट के लिए नोट की राजनीति, आपराधिक प्रवृत्ति के नेताओं का चयन, महिला जनप्रतिनिधियों की अनदेखी और कम पढ़े लिखे व निरक्षर उम्मीदवारों का चयन आम बात थी।

पिछले कुछ सालों से इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगा है। ऐसा इसलिए भी हो रहा कि लोकतंत्र के महापर्व में लोगों की कम भागीदारी धीरे-धीरे बढ़ रही है, हालांकि यह उम्मीद के मुताबिक नहीं है। शुरू के चुनावों में मतदान का प्रतिशत 60 तक रहा। अब यह 70 से 75 के बीच रहने लगा, लेकिन 25 फीसदी मतदाताओं का लोकतंत्र के महायज्ञ में आहुति न डालना स्वस्थ लोकतंत्र के लिए कतई उचित नहीं है।

सामाजिक सरोकारों के पक्षधर दैनिक जागरण ने भी अधिक से अधिक मतदान तथा सही चुने-सभी चुनें अभियान के तौर पर बड़ी मुहिम चलाई है, जिसका उद्देश्य साफ है कि ऐसी सरकार चुनी जाए, ऐसे प्रतिनिधि चुनकर विधानसभा में भेजे जाएं, जो विकास की बात करते हों, जिनके लिए राष्ट्र, प्रदेश और समाज हित सर्वोपरि हो, जो लोकतांत्रिक प्रणाली में भरोसा करते हुए लोगों के हितों को अहमियत दें, उन्हें सर्व सुलभ रहें, उनकी बात को सुनें... समझें।

अमूमन ऐसा होता आया कि चुनाव के बाद सरकार और अपने जनप्रतिनिधि को कोसना अपना अधिकार समझते हैं। बेहतर यही होगा कि पिछली तमाम सरकारों के कामकाज, उनके मुखिया, सरकार की सोच तथा मौजूदा विधायकों के कार्य का आकलन करने के बाद हम ऐसे विधायक चुनकर भेजें, जो कसौटी पर खरे उतर सकें। कम मतदान स्वस्थ लोकतंत्र के लिए नहीं अच्छा, घर से बाहर निकलें और वोट डालें, आपके वोट से तय होगी आपके प्रदेश की दशा और दिशा तय होगी।

जागरण मत

हमारा किसी भी सरकार को कोसने से अच्छा है कि हम बेहतर प्रतिनिधि चुनें। इन्हीं सद्भावनाओं के लिए दैनिक जागरण हरियाणा की जनता से अपेक्षा करता है कि वह मतदान के दिन घर से बाहर अवश्य निकले, मतदान केंद्र तक पहुंचे, उम्मीदवारों के बारे में चिंतन-करे, फिर अपनी अंतरआत्मा की आवाज पर प्रदेश, जिला, हलका, शहर और गांव की चिंता करने वाले जनप्रतिनिधि को वोट दें।

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