Delhi Election 2020 : दिल्ली में क्यों टूटा भाजपा-अकाली दल का गठबंधन, पढ़ें Inside Story
दिल्ली में दोनों पार्टियों के बीच मतभेद की शुरुआत लगभग ढाई वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित राष्ट्रीय सिख संगत के कार्यक्रम को लेकर शुरू हुआ था।
नई दिल्ली, संतोष कुमार सिंह। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा का शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) के साथ गठबंधन को लेकर पिछले काफी समय से असमंजस की स्थिति बनी हुई थी। दोनों दलों के नेता कई मुद्दों पर एक-दूसरे के खिलाफ खुलकर बोलते रहे हैं। दिल्ली भाजपा के कई नेता गठबंधन का विरोध करते रहे हैं। उनका तर्क है कि अंतर्कलह की वजह से अकाली दल अब पहले जैसा मजबूत नहीं रहा है।
इस स्थिति में उन्हें चार सीटें देने के बजाय अपने सिख नेताओं को चुनाव मैदान में उतारना चाहिए। बावजूद इसके गठबंधन की कवायद चलती रही, लेकिन सफल नहीं हुई। शिअद बादल के नेताओं का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून(सीएए) को लेकर मतभेद की वजह से उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है, लेकिन इसके पीछे की असल कहानी सीटों को लेकर सहमति नहीं बनना है।
दिल्ली में दोनों पार्टियों के बीच मतभेद की शुरुआत लगभग ढाई वर्ष पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंधित राष्ट्रीय सिख संगत के कार्यक्रम को लेकर शुरू हुआ था। शिअद बादल के नेता खुलकर कार्यक्रम का विरोध कर रहे थे। इसे लेकर डीएसजीपीसी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा और भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री आरपी सिंह के बीच जुबानी लड़ाई भी चर्चा में रही थी।
सिख प्रकोष्ठ के जरिये भाजपा बढ़ा रहा है जनाधार
भाजपा नेताओं से मतभेद के साथ ही शिअद बादल का कुनबा भी बिखर गया है। पार्टी का दिल्ली में चेहरा समझे जाने वाले डीएसजीपीसी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके अलग पार्टी बनाकर शिअद बादल को चुनौती दे रहे हैं। उनके साथ कई अन्य पुराने अकाली नेताओं ने भी पार्टी को छोड़ दिया है। इस स्थिति को देखते हुए पिछले काफी समय से भाजपा सिख मतों के लिए अकालियों पर आश्रित रहने के बजाय सिख प्रकोष्ठ के जरिये अपना जनाधार मजबूत करने में जुट गई थी।
वर्ष 1998 से दिल्ली में दोनों साथ लड़ते रहे हैं चुनाव
शिअद बादल के साथ दिल्ली में भाजपा का चुनावी गठबंधन 1998 से था। गठबंधन के तहत राजौरी गार्डन, हरिनगर, कालकाजी और शाहदरा सीट से अकाली उम्मीदवार विधानसभा चुनाव लड़ते रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में हरिनगर छोड़कर अन्य तीनों सीटों पर अकाली प्रत्याशी भाजपा के चुनाव चिह्न पर चुनाव लड़े थे। 2013 में इन तीनों सीटों पर अकाली चुनाव जीते थे। 2017 में राजौरी गार्डन विधानसभा उपचुनाव में भी सिरसा चुनाव जीते थे।
पुराने सिख कार्यकर्ताओं को टिकट देने की मांग
सिख प्रकोष्ठ अकालियों के साथ समझौता करने के बजाय आठ से दस सीटों पर अपने पुराने कार्यकर्ताओं को टिकट देने की मांग कर चुका है। दिल्ली चुनाव समिति की बैठक में भी कई नेताओं ने गठबंधन का विरोध किया था। उनकी राय थी कि यदि गठबंधन हो तो चार के बजाय दो सीटों पर। दूसरी ओर अकाली नेता दो अतिरिक्त सीटें मांग रहे थे। बताते हैं कि भाजपा इस बार कमल चुनाव चिह्न पर प्रत्याशी उतारने की शर्त के साथ तीन सीट देने को तैयार थी।
इसे लेकर दोनों दलों के नेताओं के बीच तीन बार बैठक भी हुई, लेकिन अकाली नेता इसके लिए तैयार नहीं हुए। हालांकि, सिरसा का कहना है कि सीट व चुनाव चिन्ह को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई है। सिर्फ सीएए को लेकर हमने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है।
बादल विरोधी नेताओं का समर्थन मिलने की है उम्मीद
भाजपा को उम्मीद है कि बादल विरोधी नेताओं का समर्थन उसे मिलेगा। पिछले दिनों राज्यसभा सदस्य सुखदेर्व ंसह ढींढसा के नेतृत्व में पंजाब के साथ ही दिल्ली के भी बादल विरोधी नेता एक मंच पर इकट्ठे हुए थे।