Delhi Election 2020: बादल विरोधी मोर्चे ने बढ़ाई भाजपा की चिंता, शनिवार का दिन होगा अहम

Delhi Election 2020 शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) के बागी नेताओं की मोर्चाबंदी से भाजपा की चिंता भी बढ़ गई है।

By JP YadavEdited By: Publish:Fri, 17 Jan 2020 11:27 AM (IST) Updated:Fri, 17 Jan 2020 11:27 AM (IST)
Delhi Election 2020: बादल विरोधी मोर्चे ने बढ़ाई भाजपा की चिंता, शनिवार का दिन होगा अहम
Delhi Election 2020: बादल विरोधी मोर्चे ने बढ़ाई भाजपा की चिंता, शनिवार का दिन होगा अहम

नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। Delhi Election 2020 : शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) के बागी नेताओं की मोर्चाबंदी से भाजपा की चिंता भी बढ़ गई है। दिल्ली में भाजपा सिख मतों के लिए शिअद बादल पर निर्भर रहती है। दोनों पार्टियां पंजाब के साथ ही दिल्ली में भी मिलकर चुनाव लड़ती रही हैं। इस चुनाव में अब तक दोनों दलों के बीच समझौते को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी है। इसी बीच 18 जनवरी को अकाली दल की स्थापना दिवस पर बादल विरोधी नेताओं के एक मंच पर आने के एलान से पार्टी चिंतित है। इससे उसे सिख मतों के बिखराव का डर सता रहा है।

पिछले दिनों राज्यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींढसा और उनके पुत्र को शिअद बादल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। इसके बाद से दिल्ली के अकाली नेता उनके साथ खड़े होने लगे हैं। उनके नेतृत्व में बागी नेता नया मोर्चा बना सकते हैं। इसकी बुनियाद अकाली दल के स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम सफर-ए-अकाली लहर में रखी जा सकती है। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में शिअद बादल छोड़कर जागो पार्टी बनाने वाले दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके और शिअद दिल्ली (सरना) के अध्यक्ष परमजीत सिंह सरना भी जुटे हुए हैं। दिल्ली के इन दोनों सिख नेताओं की कोशिश विभिन्न सिख संगठनों के प्रतिनिधियों को एकजुट करके शिअद बादल को चुनौती देने की है।

दिल्ली में भाजपा से गठबंधन के तहत अकाली राजौरी गार्डन, हरि नगर, कालकाजी और शाहदरा विधानसभा सीट पर अपना उम्मीदवार उतारती रही है। इस बार वह ज्यादा सीटों की मांग कर रही है, लेकिन पार्टी में अंतर्कलह की वजह से कई भाजपा नेता गठबंधन का विरोध कर रहे हैं। 21 जनवरी को नामांकन पत्र भरने का अंतिम दिन है। ऐसे में 18 जनवरी को यदि बागी अकाली नेताओं का कार्यक्रम सफल होता है तो शिअद के साथ ही भाजपा की भी मुश्किल बढ़ सकती है। अकाली कोटे की इन सीटों के साथ ही तिलक नगर, जंगपुरा, तिमारपुर सहित एक दर्जन सीटों पर सिखों की अच्छी तादाद है। यदि शिअद बादल की इनपर पकड़ कमजोर होती है तो इसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। इसे ध्यान में रखकर पार्टी के कई नेता बागी अकालियों से भी संपर्क साधने में लगे हुए हैं ताकि सियासी नुकसान को कम किया जा सके। इसके साथ ही सिख मतों के बिखराव को रोककर भाजपा की स्थिति को मजबूत कर सकें।

मनजीत सिंह जीके (जागो के अध्यक्ष) का कहना है कि अकाली दल का इतिहास शहादत से भरा हुआ है। इस समय अकाली दल पंथक मसलों से किनारा करके सियासी हितपूर्ति में लगा हुआ है, इसके कारण सिखों को हो रही परेशानी की जानकारी संगत को दी जाएगी। 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों की लड़ाई को कमजोर किया गया। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पंथ की बजाय एक सियासी परिवार के दिशा-निर्देश पर चल रहा है, इसलिए बदलाव जरूरी है।

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