CG Chunav 2018: दूसरे चरण में प्रभावी रहेगा धान, विस्थापन और पुनर्वास का मुद्दा

CG Chunav 2018 छत्‍तीसगढ़ में दूसरे चरण में 72 सीटों पर चुनाव होना है। किसानों का मुद्दा तो पहले चरण में भी हावी रहा है।

By Hemant UpadhyayEdited By: Publish:Wed, 14 Nov 2018 08:06 PM (IST) Updated:Wed, 14 Nov 2018 08:06 PM (IST)
CG Chunav 2018: दूसरे चरण में प्रभावी रहेगा धान, विस्थापन और पुनर्वास का मुद्दा
CG Chunav 2018: दूसरे चरण में प्रभावी रहेगा धान, विस्थापन और पुनर्वास का मुद्दा

रायपुर। छत्तीसगढ़ के दूसरे चरण के चुनाव में धान, विस्थापन और पुनर्वास बड़ा मुद्दा बन रहा है। दूसरे चरण में 72 सीटों पर चुनाव होना है। इस चरण का बड़ा इलाका कोयला खदानों से विस्थापन की वजह से आंदोलित रहा है। नाराजगी सिर्फ सरकार से नहीं है, इसके दायरे में विपक्षी विधायक भी रहे हैं।

वनाधिकार पट्टों के निरस्तीकरण, पुनर्वास के वादों को पूरा न करने, आदिवासी इलाकों में चले पत्थलगड़ी जैसे आंदोलनों से उपजी लहर का इस चरण में प्रभाव दिखेगा। किसानों का मुद्दा तो पहले चरण में भी हावी रहा है। किसान अपना धान इसलिए नहीं बेच रहे हैं कि अगली सरकार आएगी तो कर्जमाफ हो जाएगा जबकि अभी बेचा तो धान का पैसा पिछले कर्ज में कट जाएगा और हाथ में कुछ नहीं आएगा।

कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इन्हीं मुद्दों पर भाजपा को घेरने में जुटे हैं जबकि भाजपा माइनिंग फंड से हुए विकास गिना रही है। भाजपा कह रही है कि सड़कों, नई रेललाइनों का जाल बिछ रहा है। कोयला खदानों से भी स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है और इलाकों की तस्वीर बदली है। अब देखना यह है कि दूसरे चरण में भाजपा या विपक्षी कांग्रेस, किसकी बात पर जनता यकीन करती है।

दूसरे चरण के चुनाव में छत्तीसगढ़ के 19 जिले शामिल हैं। जशपुर, रायगढ़, सरगुजा समेत कई जिले आदिवासी बहुल हैं। इन इलाकों में आदिवासी स्वशासन की प्रवृत्ति रही है। ग्राम सभाओं को मिले संवैधानिक अधिकार को लेकर यहां लोग ज्यादा मुखर रहे हैं। दक्षिणी छत्तीसगढ़ से इतर इस इलाके में शिक्षा का प्रचार प्रसार भी ज्यादा हुआ है। माइनिंग कंपनियों के लिए गांवों के विस्थापन को लेकर इस तरफ के कई जिले संघर्षरत रहे हैं।

रायगढ़ के घरघोड़ा और तमनार तहसीलों में लगातार लोग धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। कोरबा के पोड़ी उपरोड़ा से लेकर कांग्रेस के टीएस सिंहदेव के इलाके उदयपुर में कोल ब्लॉक तक हर जगह विस्थापन और पुनर्वास बड़ा मुद्दा है। सरगुजा में कोयला खदानों के लिए गांवों का वनाधिकार पट्टा निरस्त करना तो नाराजगी की वजह रहा ही है इसी इलाके में 11 हजार निजी वनाधिकार पट्टों को निरस्त करने से भी लोग आक्रोशित हैं।

यह आक्रोश जितना सरकार के खिलाफ है उतना ही स्थानीय विधायक और दूसरे जनप्रतिनिधियों के भी खिलाफ है। भू अधिग्रहण को लेकर विपक्ष यह अभियान चला रहा है कि केंद्र में कानून तो भूमि का चार गुना मुआवजा देने का बना था पर सरकार दोगुना ही देती रही है। इन चुनौतियों से निपटना नेताओं के लिए आसान नहीं है।

प्रदूषण भी बड़ा मुद्दा

कोयला खदानों वाले इलाकों में प्रदूषण बड़ा मुद्दा है। कोयला खदानों से उड़ती डस्ट से बर्बाद हो रहे खेत खलिहान, बीमार होते लोग और स्वास्थ्य व्यवस्था की बदहाली विपक्ष का बड़ा मुद्दा है। कोरबा को देश का पांचवां सबसे प्रदूषित शहर माना जाता है। जांजगीर-चांपा, कोरबा, रायगढ़ में बिजली संयंत्रों से उड़ती राख इस बार बड़ा मुद्दा बन रही है।

ग्रामसभाओं का अधिकार कितना प्रभावी

उत्तरी छत्तीसगढ़ में पांचवीं अनुसूची के तहत ग्रामसभाओं को मिले अधिकार का पालन कितना हुआ यह चर्चा है। इस आदिवासी इलाकों में औद्योगिकरण और खनन परियोजनाओं के लिए भू अधिग्रहण में ग्रामसभाओं की सिमटती भूमिका को बहस के केंद्र में है। कांग्रेस इसे हवा भी दे रही है। कह रही है कि हम आए तो पांचवीं अनुसूची और पेसा कानून का पालन होगा। इधर भाजपा भी जानती है कि इन मुद्दों का विपक्षी दुरूपयोग कर सकते हैं। पार्टी औद्योगिक विकास से प्रदेश की खुशहाली गिना रही है।  

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