छत्तीसगढ़ में कांटे के मुकाबले की जमीन पर हकीकत परखने उतरे भाजपा नेता
11 आदिवासी सीटों वाले बस्तर संभाग में पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह ने मोर्चा संभाल रखा है।
रायपुर, नईदुनिया, संजीत कुमार। छत्तीसगढ़ के पहले दो चुनावों में आदिवासियों ने भाजपा को सत्ता में पहुंचाया था। पिछले चुनाव में जंगल ने जब भगवा का साथ छोड़ा तो मैदानी सीटों ने भगवा ध्वज थाम लिया था। इसी वजह से इस बार पार्टी जंगल से लेकर मैदान तक को साधने में लगी है। 11 आदिवासी सीटों वाले बस्तर संभाग में पार्टी के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री सौदान सिंह ने मोर्चा संभाल रखा है। सौदान सोमवार से बस्तर में डेरा डाले हुए हैं और तीन दिन रहेंगे। इधर, सीटों के लिहाज से सबसे बड़े संभाग बिलासपुर में मंगलवार को उत्तराखंड के शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत पहुंचे। दोनों नेता कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोलते हुए टिकट वितरण से पहले जिताऊ प्रत्याशी की तलाश कर रहे हैं।
हावी है एंटी इन्कम्बेंसी का डर
सरकार ही नहीं भाजपा संगठन को भी इसका भान है कि 15 साल की सत्ता है, इसलिए चुनाव में एंटी इन्कम्बेंसी असर डाल सकती है। यही वजह है कि पिछले छह महीने से मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ताबतोड़ दौरा कर रहे हैं। पहले लोक सुराज, फिर विकास यात्रा और अब अटल विकास यात्रा के नाम पर जनता दरबार में हाजरी लगा रहे हैं। इस बीच वह किसान-गरीब ही नहीं सरकारी कर्मचारियों तक को संतुष्ट करने की कोशिश कर चुके हैं।
इस वजह से महत्वपूर्ण हैं दोनों संभाग
दोनों संभाग मिलाकर 36 सीटें हैं, जो राज्य में सरकार बनाने के लिए बहुमत के आंकड़े से महज 10 कम है। इसी वजह से भाजपा ही नहीं कांग्रेस भी इन दोनों संभागों में पूरी ताकत लगा रही है।
भाजपा की इसलिए बढ़ी चिंता
बस्तर: पिछले चुनाव में भाजपा को 12 में से केवल चार सीट मिली, जबकि पहले दोनों चुनाव में क्रमश: नौ और दस सीट मिली थी। यानी भाजपा को सत्ता की चाबी बस्तर से ही मिली थी। संभाग की 12 में से 11 सीट एससी वर्ग के लिए आरक्षित है, जबकि एक सीट सामान्य है।
बिलासपुर: इस संभाग में भाजपा का ग्राफ बढ़ रहा है। तीन चुनावों में पार्टी को क्रमश: आठ, 10 और 12 सीट मिले हैं। संभाग की चार सीट एससी व पांच एसटी वर्ग के लिए आरक्षित है। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, बसपा और गोगंपा की पकड़ अच्छी है। बसपा और जोगी साथ आ गए हैं, ऐसे में भाजपा के लिए खतरा बढ़ गया है।
दोनों संभागों में नजर आ रही संभावना
भाजपा को बस्तर और बिलासपुर दोनों संभागों में संभावना नजर आ रही है। आदिवासी बाहुल बस्तर संभाग के पहले दो चुनाव में पार्टी का ट्रैक रिकार्ड ठीक रहा है। वहीं, बिलासपुर संभाग में हर चुनाव में पार्टी का ग्राफ बढ़ रहा है। ऐसे में पार्टी संगठन को लग रहा है कि इन दोनों संभागों में थोड़ा जोर दिया जाए तो वोटरों को साधा जा सकता है।
बिलासपुर में बदलते रहने का ट्रेंड
संभाग की 24 में से पांच सीट भाजपा लगातार जीत रही है। दो सीट जांजगीर और बिल्हा में अब तक के ट्रेंड के हिसाब से एक बार भाजपा दूसरी बार कांग्रेस जीतती है। अगर यह ट्रेंड इस बार भी कायम रहा तो यह दोनों सीट भी भाजपा के खाते में रहेगी। भाजपा ने 2013 में अपने सभी 10 मौजूदा विधायकों को टिकट दिया। 13 नए प्रत्याशी व एक हारे को टिकट दिया। 10 विधायकों में से पांच हार गए, सात नए व पांच पुराने जीते।
बस्तर में चेहरे बदले की तैयारी
पार्टी पदाधिकारियों के अनुसार पिछले चुनाव में बस्तर में भाजपा से वोटरों को कोई नाराजगी नहीं है। सूत्रों के अनुसार कुछ विधायकों के खिलाफ जनता में आक्रोश था, पार्टी ने इसे नजरअंदाज कर उन्हें फिर से टिकट दे दिया। इसी वजह से पार्टी को बस्तर में झटका लगा। झीरमकांड के कारण संभाग में कांग्रेस को सहानुभूति वोट मिले। पिछली बार विधानसभा चुनाव के ठीक छह महीने पहले 25 मई को बस्तर की झीरमघाटी में नक्सलियों ने कांग्रेस के काफिले पर हमला किया। इस हमले में तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नंदकुमार पटेल और बस्तर टाइगर के नाम से प्रसिद्ध महेन्द्र कर्मा समेत कई कांग्रेसी नेता मारे गए। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार वोटरों पर इसका असर पड़ा, इसी वजह से वहां कांग्रेस को बड़ी जीत मिली।
फैक्ट फाइल
36 सीट है दोनों संभाग में
16 सीट है भाजपा के खाते में
19 सीटों पर है कांग्रेस का कब्जा
01 सीट पर बसपा काबिज
बिलासपुर संभाग
24 कुल सीट
12 भाजपा
11 कांग्रेस
01 बसपा
बस्तर संभाग
12 कुल सीट
04 भाजपा
08 कांग्रेस