Bihar Election: इस महासमर में मोर्चे ही मोर्चे, नए गठबंधनों से चुनाव लड़ने वाले प्रत्‍याशियों को बंधी उम्मीद

Bihar Assembly Election 2020 बिहार चुनाव को लेकर नए गठबंधन बन रहे हैं। पप्‍पू यादव ने नया गठबंधन बनाया है तो उपेंद्र कुशवाहा भी बसपा के साथ गठबंधन की घोषणा कर चुके हैं। इन नए गठबंधनों से चुनाव लड़ने वाले प्रत्‍याशियों को टिकट की उम्मीद बंधी है।

By Amit AlokEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2020 05:11 PM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2020 05:52 PM (IST)
Bihar Election: इस महासमर में मोर्चे ही मोर्चे, नए गठबंधनों से चुनाव लड़ने वाले प्रत्‍याशियों को बंधी उम्मीद
जन अधिकार पार्टी के अध्‍यक्ष पप्‍पू यादव एवं राष्‍ट्रीय लोक समता पार्टी सुप्रीमो उपेंद्र कुशवाहा।

पटना, अरुण अशेष। Bihar Assembly Election 2020: साल 2015 के चुनाव में राजनीति दो हिस्से में बंट गई थी। दोनों गठबंधनों को मिलाकर सात दल मुख्य लड़ाई में थे। लिहाजा, सभी गंभीर उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिल पाया था। केवल चार निर्दलीय (Independent) उम्मीदवार ही जीत पाए थे। तीन सीटों पर भाकपा माले की जीत हुई थी। बाकी विधायक महागठबंधन (Grand Alliance) या एनडीए (NDA) के घटक दलों के उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव जीत कर आए थे। इस बार दो पुराने गठबंधनों के अलावा दो नए मोर्चे भी तैयार हो गए हैं। सो, अधिक से अधिक लोगों के दल के टिकट पर चुनाव लड़ने की उम्मीद बंध रही है।

किसी तरह किसी दल से टिकट हासिल करने की कोशिश

उम्मीदवारों का सबसे बड़ा गुण यह उभर कर सामने आ रहा है कि वे नीति, सिद्धांत, दलीय प्रतिबद्धता आदि की जुगाली नहीं करते हैं। एक ही सिद्धांत पर अमल करते हैं- किसी भी तरह और किसी भी दल से टिकट हासिल कर लेना है। वैसे भी राज्य में राजनीतिक दलों ने जितने प्रयोग किए हैं, उसमें कोई दल किसी के लिए अछूत नहीं रह गया है। समाजवाद, साम्यवाद और धर्मनिरपेक्षता सब पर एक अदद टिकट भारी है। सिर्फ राजद और भाजपा का चुनावी गठबंधन नहीं हुआ है। बाकी दल कभी-न कभी एक साथ चुनाव लड़ चुके हैं।

200 सीटों पर अकेले लड़ने वाली बसपा भी अब गठबंधन में

फिलहाल तीसरा के अलावा चौथा मोर्चा भी वजूद में आ गया है। रालोसपा-बसपा गठबंधन सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का इरादा रखता है। एकीकृत बिहार में हुए 2000 के अंतिम विधानसभा चुनाव में बसपा के 249 उम्मीदवार थे। तब विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या 324 होती थी। एक सदस्य मनोनीत होते थे। 2005 और उसके बाद के विधानसभा चुनावों में बसपा दो सौ से अधिक सीटों पर लड़ती रही है। मगर, अच्छी उपलब्धि हासिल नहीं होने के चलते अधिक सीटों पर चुनाव लडऩे की औपचारिकता ही निभाती रही। रालोसपा एक बार सिर्फ 2015 के चुनाव में 23 सीटों पर लड़ी। यह गठबंधन भी उम्मीदवारों के सामने विकल्प है।

मोर्चे और भी हैं...

एक मोर्चा पूर्व सांसद पप्पू यादव की अगुआई में भी गठित है। एक अन्य मोर्चे की अगुआई पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव कर रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने भी कुछ छोटे दलों को मिलाकर मोर्चा की संरचना की है। अधिक उम्मीद इस बात की है। ये सब एक जगह जुट कर तीसरे मोर्चा का निर्माण कर लेंगे। तीसरा मोर्चा बने उस हालत में भी 243 नए उम्मीदवारों की गुंजाइश बन रही है।

टिकट कटे लोगों को भी आसरा

संभावना जाहिर की जा रही है कि बड़े दल अपने कुछ सिटिंग विधायकों को बेटिकट करेंगे। ऐसे विधायकों का आसरा यही मोर्चा बनेगा। 2005 के विधानसभा चुनाव में टिकट कटे विधायकों ने लोजपा को खूब फायदा पहुंचाया था। पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ी लोजपा के पास 29 विधायक आ गए थे। जल्द ही उनका बड़ा हिस्सा पाला बदल कर दूसरे दल में चला गया। उसके बाद लोजपा को कभी अधिक विधायक नहीं मिले। उसी साल अक्टूबर में हुए चुनाव में 10 और पांच साल बाद 2010 के विधानसभा चुनाव में तीन उम्मीदवार जीत कर आए। 2015 में यह संख्या दो पर आ गई।

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