11 दिसंबर से शुरू संसद का शीतकालीन सत्र मोदी सरकार का आखिरी पूर्णकालिक सत्र होगा

संसद के आगामी सत्र में राजनीतिक दल दलगत हितों से ऊपर उठें। उनका और देश का हित इसी में है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 14 Nov 2018 11:02 PM (IST) Updated:Thu, 15 Nov 2018 05:00 AM (IST)
11 दिसंबर से शुरू संसद का शीतकालीन सत्र मोदी सरकार का आखिरी पूर्णकालिक सत्र होगा
11 दिसंबर से शुरू संसद का शीतकालीन सत्र मोदी सरकार का आखिरी पूर्णकालिक सत्र होगा

संसद का आगामी सत्र किस माहौल में शुरू होगा, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यह उस दिन प्रारंभ होगा जिस दिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आ रहे होंगे। स्पष्ट है कि पक्ष-विपक्ष का रुख-रवैया बहुत कुछ इन नतीजों पर निर्भर करेगा। यदि भाजपा अपनी सत्ता वाले राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करती है तो वह विपक्ष के प्रति आक्रामक होगी और यदि ऐसा नहीं होता तो स्वाभाविक तौर पर विपक्षी दल हर मसले पर सरकार को घेरने की अतिरिक्त कोशिश करेंगे।

एक अंदेशा यह भी है कि विपक्षी दल अपने पक्ष में बेहतर या खराब नतीजों के बावजूद यानी दोनों ही स्थितियों में सरकार का सहयोग करने से इन्कार कर सकते हैैं, क्योंकि वे उसके प्रति पहले से ही हमलावर हैैं। इस अंदेशे के कारण इसमें संदेह है कि इस सत्र में वे विधेयक पारित हो सकेंगे जिन्हें सरकार अपनी प्राथमिकता वाला बता रही है। बेहतर हो कि पक्ष-विपक्ष कम से कम इस पर तो सहमत हो ही जाएं कि इस सत्र में कौन से विधेयक पारित किए जाने चाहिए?

सरकार की कोशिश है कि तीन तलाक संबंधी विधेयक के साथ ही इंडियन मेडिकल काउंसिल संशोधन अध्यादेश और कंपनियों के संशोधन अध्यादेश पर भी संसद की मुहर लगे। कहना कठिन है कि विपक्ष की प्राथमिकता में ऐसा कोई विधेयक है या नहीं? यदि पक्ष-विपक्ष की तकरार में राष्ट्रीय महत्व के किसी भी विधेयक का बेड़ा पार नहीं होता तो फिर संसद के इस सत्र का कोई मूल्य-महत्व नहीं रह जाएगा। ऐसी सूरत में वह केवल राजनीतिक दलों की उसी तू तू-मैं मैैं का गवाह बनेगा जो संसद के बाहर आज भी देखने को मिल रही है। इससे खराब बात और कोई नहीं हो सकती कि संसद के भीतर उसी आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला देखने को मिले जो बाहर देखने को मिलता रहता है।

दुर्भाग्य से एक अर्से से संसद में काम कम और हंगामा अधिक देखने को मिल रहा है। इस मामले में लोकसभा का वर्तमान कार्यकाल बेहद निराशाजनक कहा जाएगा। इस दौरान केवल संसद का महत्वपूर्ण वक्त ही जाया नहीं हुआ, बल्कि यह भी देखने को मिला कि वरिष्ठों की सभा कही जाने वाली राज्यसभा में कहीं अधिक हल्ला-हंगामा हुआ।

अगले माह 11 दिसंबर से शुरू और अगले साल आठ जनवरी तक चलने वाला संसद का शीतकालीन सत्र केवल बीस कामकाजी दिनों वाला होगा। माना जा रहा कि यह मोदी सरकार का आखिरी पूर्णकालिक सत्र होगा। वर्तमान लोकसभा के कामकाज की व्यापक समीक्षा तो उसका कार्यकाल विधिवत पूरा होने के बाद ही होगी, लेकिन अभी तक जो कुछ हुआ है उसके आधार पर इस नतीजे पर पहुंचने में कोई कठिनाई नहीं कि संसद अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतर पा रही है और इसके लिए सभी राजनीतिक दल जिम्मेदार हैैं। जो दल सत्ता में रहते समय विपक्ष के रवैये की आलोचना करते हैैं वे सत्ता में आने पर वैसे ही रवैये का परिचय देते हैैं। यही नहीं, वे दूसरे के खराब आचरण को अपने लिए एक उदाहरण की तरह इस्तेमाल करते हैैं। बेहतर हो कि संसद के आगामी सत्र में राजनीतिक दल दलगत हितों से ऊपर उठें। उनका और देश का हित इसी में है।

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