INX Media Case: CBI से लुका-छिपी का खेल खेलकर चिदंबरम को क्या हासिल हुआ ?

सीबीआइ के बाद प्रवर्तन निदेशालय को भी चिदंबरम से पूछताछ करनी है इसलिए उन्हें लंबे समय तक जांच एजेंसियों से दो-चार होना पड़ सकता है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Fri, 23 Aug 2019 01:36 AM (IST) Updated:Fri, 23 Aug 2019 01:36 AM (IST)
INX Media Case: CBI से लुका-छिपी का खेल खेलकर चिदंबरम को क्या हासिल हुआ ?
INX Media Case: CBI से लुका-छिपी का खेल खेलकर चिदंबरम को क्या हासिल हुआ ?

आखिरकार पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम को सीबीआइ की गिरफ्त में जाना ही पड़ा। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि न तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली और न ही सीबीआइ की विशेष अदालत से। अच्छा यह होता कि दिल्ली उच्च न्यायालय से जमानत याचिका खारिज होने के बाद वह खुद को सीबीआइ के हवाले कर देते, लेकिन उन्होंने उसे चकमा देकर छिपना जरूरी समझा।

24 घंटे से अधिक समय तक लापता रहने के बाद उन्होंने कांग्रेस के मुख्यालय में उपस्थित होकर जिस तरह अपनी सफाई पेश की उससे यही जाहिर हुआ कि वह केवल खुद को निर्दोष ही नहीं बताना चाहते थे, बल्कि यह भी प्रकट करना चाहते थे कि कांग्रेस उनके साथ खड़ी है।

पार्टी दफ्तर में उनकी प्रेस कांफ्रेंस से यह भी साफ हुआ कि खुद कांग्रेस यह संदेश देना चाह रही थी कि वह घपले-घोटाले के गंभीर आरोपों से घिरे पूर्व केंद्रीय मंत्री के साथ है। समस्या केवल यह नहीं कि कांग्रेस के छोटे-बड़े नेता चिदंबरम का बचाव कर रहे हैं, बल्कि यह है कि वे उन्हें क्लीनचिट भी दे रहे हैं।

आखिर जो काम अदालत का है वह कांग्रेसी नेता क्यों कर रहे हैं? आखिर उनके मामले में अदालत के फैसले मान्य होंगे या फिर कांग्रेसी नेताओं के वक्तव्य? एक सवाल यह भी है कि सीबीआइ से लुका-छिपी का खेल खेलकर चिदंबरम को क्या हासिल हुआ?

आखिर उन्होंने पार्टी दफ्तर में प्रेस कांफ्रेंस करने के बाद अपने घर जाकर दरवाजा बंद कर लेना जरूरी क्यों समझा? क्या यह अच्छी बात है कि देश के पूर्व गृह मंत्री, राज्यसभा सदस्य और सुप्रीम कोर्ट के वकील को हिरासत में लेने के लिए सीबीआइ अफसरों को उनके घर की दीवार फांदनी पड़ी?

चूंकि सीबीआइ के बाद प्रवर्तन निदेशालय को भी चिदंबरम से पूछताछ करनी है इसलिए उन्हें लंबे समय तक जांच एजेंसियों से दो-चार होना पड़ सकता है। पता नहीं आइएनएक्स मीडिया घोटाले में चिदंबरम की क्या और कैसी भूमिका है, लेकिन यह उनके अपने हित में है कि इस मामले का निस्तारण जल्द हो। यह तभी होगा जब वह जांच में सहयोग करेंगे।

मामले का जल्द निस्तारण जांच एजेंसियों के साथ ही अदालतों को भी सुनिश्चित करना चाहिए। यह इसलिए जरूरी है, क्योंकि आम तौर पर नेताओं के मामलों में जांच के साथ ही अदालती कार्यवाही भी लंबी खिंचती है। नि:संदेह ऐसा इसलिए भी होता है, क्योंकि घपले- घोटाले से घिरे नेता बड़ी आसानी से अदालत-अदालत खेलते रहते हैं।

 क्या यह सहज-सामान्य है कि चिदंबरम को बार-बार अग्रिम जमानत मिलती रही? क्या ऐसी ही सुविधा आम लोगों को भी मिलती है? बेहतर हो कोई यह सुनिश्चित करे कि रसूख वालों के मामलों का निस्तारण एक तय समय में हो।

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