अफगान में बिगड़ते हालात के समय हो रही अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन की भारत यात्रा, अफगान संकट पर होगी वार्ता

अमेरिका की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह अफगानिस्तान को तालिबान के हाथों में जाने से रोके। यदि वह ऐसा नहीं करता तो यह देश आतंकी संगठनों और जिहादियों का गढ़ बन जाएगा। इन सब खतरनाक तत्वों पर पाकिस्तान का असर होगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 10:22 PM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 12:02 AM (IST)
अफगान में बिगड़ते हालात के समय हो रही अमेरिकी विदेश मंत्री ब्लिंकन की भारत यात्रा, अफगान संकट पर होगी वार्ता
अमेरिका की सेनाओं ने जल्दबाजी में अफगानिस्तान को तालिबान के हवाले करने का काम किया है

अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन की भारत यात्रा एक ऐसे समय हो रही है, जब अफगानिस्तान में हालात तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं। यह अच्छा है कि अमेरिकी विदेश मंत्री की भारतीय नेताओं के साथ विभिन्न मुद्दों के अलावा अफगानिस्तान संकट पर भी बातचीत होगी, लेकिन यह बातचीत इस तरह होनी चाहिए कि इस संकट का कोई समाधान भी निकलता हुआ दिखे। ऐसा तभी संभव होगा जब अमेरिका यह महसूस करेगा कि उसकी सेनाओं ने जल्दबाजी में अफगानिस्तान छोड़कर इस देश को तालिबान के हवाले करने का काम किया है। आज अफगानिस्तान जिन खतरनाक स्थितियों से दो-चार है, उनके लिए एक बड़ी हद तक अमेरिका ही जिम्मेदार है। अमेरिका ने यह जानते हुए भी तालिबान के साथ एक ढीला-ढाला समझौता किया कि वे अपने वादे पर खरे नहीं उतरेंगे। अंतत: ऐसा ही हुआ। तालिबान अफगानिस्तान पर कब्जा करने की कोशिश में हैं। इस कोशिश के तहत वे दिल दहलाने वाली बर्बरता का परिचय देने में लगे हुए हैं। वे जैसी मार-काट मचाए हुए हैं, उससे यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि यदि वे अफगानिस्तान पर काबिज हो गए तो उसका भविष्य कितना अधिक अंधकार भरा होगा। यदि अफगानिस्तान तबाही की ओर जाता है जिसके कि आसार भी दिख रहे हैं तो इसके लिए अमेरिका ही जिम्मेदार होगा।

अमेरिका की यह नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि वह अफगानिस्तान को तालिबान के हाथों में जाने से रोके। यदि वह ऐसा नहीं करता तो यह देश किस्म-किस्म के आतंकी संगठनों और जिहादियों का गढ़ बन जाएगा। इससे भी खतरनाक बात यह होगी कि इन सब खतरनाक तत्वों पर पाकिस्तान का असर होगा। यदि अमेरिका ने समय रहते यह समझा होता कि तालिबान को ताकत देने वाला पाकिस्तान है तो शायद उसे पराजय के बोध के साथ अफगानिस्तान नहीं छोड़ना पड़ता। उसने जिन हालात में अफगानिस्तान छोड़ा, उससे दुनिया को यही संदेश गया है कि उसने तालिबान के समक्ष समर्पण कर दिया। भारत को अमेरिकी विदेश मंत्री से दो टूक शब्दों में यह कहना चाहिए कि अमेरिकी प्रशासन ने न केवल अफगानिस्तान, बल्कि इस पूरे क्षेत्र की शांति एवं स्थिरता के लिए खतरा पैदा करने का काम किया है। हालांकि अमेरिका इससे परिचित होगा कि तालिबान पाकिस्तान और पाकिस्तान चीन के इशारों पर चल रहा है, फिर भी भारत को उसके समक्ष यह रेखांकित करना चाहिए कि इन दोनों देशों की साठगांठ पूरे दक्षिण एशिया को अस्थिर करने वाली साबित हो सकती है। भारत को अमेरिका को यह भी समझाना होगा कि पाकिस्तान की तरह चीन पर भी लगाम लगाने की जरूरत है और इसमें सफलता तब मिलेगी, जब क्वाड को और अधिक मजबूत करने के साथ सक्रिय भी किया जाएगा।

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