UP Politics: राजनीतिक दल राजनीति के अपराधीकरण को रोकने में ईमानदार नहीं

लोकसभा से लेकर विधानसभाओं में दागी छवि वाले तमाम जनप्रतिनिधि नजर आते हैं। उनकी संख्या में कोई कमी इसलिए नहीं आ रही है क्योंकि राजनीतिक दल उनका यह कहकर बचाव करते हैं कि दोष सिद्ध न होने तक हर किसी को निदरेष माना जाना चाहिए।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 11 Sep 2021 09:02 AM (IST) Updated:Sat, 11 Sep 2021 09:06 AM (IST)
UP Politics: राजनीतिक दल राजनीति के अपराधीकरण को रोकने में ईमानदार नहीं
राजनीतिक दल राजनीति के अपराधीकरण को रोकने में ईमानदार नहीं

बसपा प्रमुख मायावती की इस घोषणा से बहुत उत्साहित नहीं हुआ जा सकता कि इस बार वह आजमगढ़ मंडल की मऊ विधानसभा सीट से माफिया छवि वाले बाहुबली मुख्तार अंसारी को टिकट नहीं देंगी। यह स्थानीय राजनीतिक समीकरणों में बदलाव के चलते मजबूरी में की गई घोषणा है। यदि बसपा राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ होती तो मुख्तार अंसारी आज बसपा के विधायक नहीं होते।

पिछले चुनाव में जब वह बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे, तब भी माफिया की छवि से लैस थे। इसके पहले वह सपा में थे और तब भी अच्छा-खासा आपराधिक इतिहास रखते थे। राजनीतिक दल किस तरह आपराधिक इतिहास वाले तत्वों को सहारा देने का काम करते हैं, इसका प्रमाण यह है कि बसपा ने जैसे ही मुख्तार अंसारी का टिकट काटने की घोषणा की, वैसे ही एआइएमआइएम ने यह एलान कर दिया कि वह जहां से चाहें, वहां से पार्टी का टिकट ले सकते हैं।

समस्या केवल यह नहीं है कि आपराधिक अतीत और छवि वालों को राजनीतिक दल गले लगाते हैं। समस्या यह भी है कि ऐसे तत्व खुद भी राजनीतिक दल का गठन कर चुनाव मैदान में उतरने में सफल रहते हैं। खुद मुख्तार अंसारी कौमी एकता दल नामक पार्टी बना चुके हैं। पता नहीं अब वह क्या करेंगे, लेकिन मायावती की घोषणा के बाद भी इसके कहीं कोई आसार नहीं कि राजनीति के अपराधीकरण पर कोई लगाम लगेगी।

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और मणिपुर के आगामी विधानसभा चुनावों में एक बड़ी संख्या में ऐसे उम्मीदवार नजर आ सकते हैं, जिन्हें दागी या आपराधिक प्रवृत्ति वाला कहा जा सकता है। यह ठीक है कि सभी उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतरते समय अपने खिलाफ चल रहे मामलों का विवरण देना पड़ता है, लेकिन जाति, मजहब, क्षेत्र से प्रभावित मतदाता मुश्किल से ही इसका संज्ञान लेते हैं। परिणाम यह है कि लोकसभा से लेकर विधानसभाओं में दागी छवि वाले तमाम जनप्रतिनिधि नजर आते हैं। उनकी संख्या में कोई कमी इसलिए नहीं आ रही है, क्योंकि राजनीतिक दल उनका यह कहकर बचाव करते हैं कि दोष सिद्ध न होने तक हर किसी को निदरेष माना जाना चाहिए।

यह लचर दलील राजनीति के अपराधीकरण को बढ़ावा देने का ही काम कर रही है। राजनीतिक दल राजनीति के अपराधीकरण को रोकने में ईमानदार नहीं, इसका प्रमाण निर्वाचन आयोग के उस प्रस्ताव की अनदेखी है कि गंभीर आरोपों से घिरे उन लोगों के चुनाव लड़ने पर रोक लगे, जिनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया हो। चूंकि राजनीतिक दलों को यह प्रस्ताव रास नहीं आ रहा है, इसलिए उचित यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट दखल दे और इस प्रस्ताव के अनुरूप कानून का निर्माण करने को कहे।

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