भारत बन सकता है खेल जगत की एक बड़ी ताकत, नई खेल संस्कृति का नतीजा

उत्साहजनक और संतोषजनक केवल यह नहीं है कि टोक्यो गए हमारे अनेक खिलाड़ी उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं बल्कि यह भी है कि वे देश में एक नई खेल संस्कृति विकसित हो जाने की गवाही भी दे रहे हैं।

By TilakrajEdited By: Publish:Fri, 06 Aug 2021 09:14 AM (IST) Updated:Fri, 06 Aug 2021 10:49 AM (IST)
भारत बन सकता है खेल जगत की एक बड़ी ताकत, नई खेल संस्कृति का नतीजा
टोक्यो गए हमारे अनेक खिलाड़ी उम्मीदों पर खरे उतर रहे

टोक्यो ओलिंपिक अभी जारी है और भारत ने दो रजत पदक समेत कुल पांच पदक अपनी झोली में कर लिए हैं। यदि कुछ और पदक मिल जाते हैं, जिनकी उम्मीद भी है, तो भारत के लिए टोक्यो ओलिंपिक सर्वश्रेष्ठ साबित हो सकते हैं। आशा की जानी चाहिए ऐसा ही होगा। अभी तक जिन भी खिलाड़ियों ने पदक हासिल किए हैं, वे बधाई और प्रशंसा के हकदार हैं। उन्होंने अपने साथ देश का नाम भी ऊंचा किया है और यह उम्मीद जगाई है कि आने वाले समय में भारत खेल जगत की एक बड़ी ताकत बन सकता है।

अब तो यह भी लग रहा है कि उन खेलों में भी हमारे खिलाड़ी कामयाबी हासिल कर सकते हैं, जिनमें कुछ समय पहले तक कोई खास उम्मीद नहीं नजर आती थी, जैसे कि एथलेटिक्स। इसी तरह आखिर किसने कल्पना की थी कि हाकी की पुरुष और महिला, दोनों ही टीमें सेमीफाइनल में पहुंचेंगी? आखिरकार ऐसा ही हुआ और पुरुष हाकी टीम ने तो 41 साल बाद ओलिंपिक में कांस्य पदक अपने नाम किया। यह स्वर्णिम आभा वाला कांस्य पदक है, क्योंकि हर देशवासी भारतीय हाकी के उत्थान के सपने संग जी रहा था। हाकी में मिला कांस्य पदक देश में इस खेल का कायाकल्प करे, इस उम्मीद के साथ यह भी कामना करनी चाहिए कि महिला हाकी टीम भी एक नया इतिहास लिखे।

उत्साहजनक और संतोषजनक केवल यह नहीं है कि टोक्यो गए हमारे अनेक खिलाड़ी उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं, बल्कि यह भी है कि वे देश में एक नई खेल संस्कृति विकसित हो जाने की गवाही भी दे रहे हैं। भले ही अपने प्रदर्शन से देश-दुनिया का ध्यान खींचने वाले कुछ खिलाड़ी पदक तालिका में अपना नाम अंकित न कर सके हों, लेकिन वे अपनी हिम्मत और कौशल से बेहतर भविष्य की मुनादी कर रहे हैं। यह नतीजा है उस नई खेल संस्कृति का, जो हाल के वर्षों में विकसित की गई और जिसके तहत खिलाड़ियों को कहीं बेहतर सुविधाओं के साथ समुचित प्रशिक्षण दिया गया। जहां कुछ खिलाड़ियों को विदेशी प्रशिक्षक उपलब्ध कराए गए, वहीं कुछ को विशेष प्रशिक्षण के लिए विदेश भी भेजा गया।

यह सब इसीलिए हो पाया, क्योंकि खेल संघों पर काबिज तमाम ऐसे लोगों को किनारे कर पेशेवर व्यक्तियों को लाया गया, जो उन्हें अपनी जागीर की तरह इस्तेमाल कर रहे थे। इसके चलते खेल और खिलाड़ियों को वह प्राथमिकता नहीं मिल पाती थी, जो जरूरी थी। टोक्यो ओलिंपिक के समापन के वक्त भारत की झोली में चाहे जितने ज्यादा पदक हों, यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि खेल एवं खिलाड़ियों को और अच्छे से विकसित करने के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है।

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