भरोसे लायक नहीं तालिबान: वह आतंक और बंदूक के बल पर अफगानिस्तान पर करना चाहता है शासन

तालिबान जिस तरह खुद को उदार रूप में दिखाने की कोशिश कर रहा है उसी तरह यह भी प्रकट कर रहा है कि उसका अलकायदा जैश और लश्कर सरीखे आतंकी संगठनों से कोई लेना-देना नहीं। इस पर विश्व समुदाय और खासतौर से भारत भरोसा नहीं कर सकता।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 31 Aug 2021 03:32 AM (IST) Updated:Tue, 31 Aug 2021 03:32 AM (IST)
भरोसे लायक नहीं तालिबान: वह आतंक और बंदूक के बल पर अफगानिस्तान पर करना चाहता है शासन
तालीबान आतंक और बंदूक के बल पर अफगानिस्तान पर शासन करना चाहता है

अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं और नागरिकों की वापसी की समय सीमा खत्म हो रही है, लेकिन इस सीमा को बढ़ाना भी पड़ सकता है। भले ही अमेरिका अपने लोगों को तय समय सीमा में अफगानिस्तान से निकाल ले, लेकिन यही बात अन्य देशों के लोगों के बारे में नहीं कही जा सकती और उन अफगान नागरिकों के बारे में तो बिल्कुल भी नहीं कही जा सकती, जो तालिबान के भय के कारण देश से बाहर निकल जाना चाहते हैं। यह ठीक है कि तालिबान ऐसे संकेत दे रहा है कि वह 31 अगस्त की समय सीमा में ढील देने को तैयार हो जाएगा, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह देश छोड़ने के इच्छुक अफगान नागरिकों को भी बाहर जाने की इजाजत देगा? तालिबान यह दावा कर सकता है कि वह बदल गया है, लेकिन उसकी कथनी और करनी में अंतर साफ दिख रहा है। तालिबान अपनी अलग छवि पेश करने और विश्व समुदाय से सहयोग-समन्वय रखने की चाहे जितनी कोशिश करे, वह एक आक्रांता की छवि से लैस है। दुनिया उसे इसी रूप में देखती है कि वह आतंक और बंदूक के बल पर अफगानिस्तान पर शासन करना चाहता है। उसकी इसी छवि के कारण तमाम अफगान नागरिक उसके चंगुल से निकल जाना चाहते हैं। यदि ये अफगान नागरिक तालिबान नेताओं की चिकनी-चुपड़ी बातों से प्रभावित नहीं हो पा रहे हैं तो उनकी हरकतों के कारण। वे न केवल पुराने तौर-तरीकों पर अमल कर रहे हैं, बल्कि ऐसे फरमान भी जारी कर रहे हैं, जिनसे यही लगता है कि उनका तंग नजरिया जस का तस है।

तालिबान नेता एक ओर कामकाजी महिलाओं को घर पर बंद रहने के आदेश दे रहे हैं और दूसरी ओर कालेजों एवं विश्वविद्यालयों में लड़कों और लड़कियों के साथ-साथ पढ़ने पर पाबंदी भी लगा रहे हैं। ऐसा करके वे अफगानिस्तान को पीछे ले जाने का ही काम कर रहे हैं। इससे भी खराब और डरावनी बात यह है कि वे सदियों पुरानी शरिया वाली व्यवस्था लागू करने को बेकरार दिख रहे हैं। आधुनिक जीवनशैली अपना रहे अथवा उससे परिचित हो रहे लोगों को सदियों पुरानी और सड़ी-गली व्यवस्था में जकड़ना एक तरह से उन्हें बंधक बनाना है। इससे अफगान नागरिकों का जीवन नरक में ही तब्दील होगा। वास्तव में इसी भय के कारण बड़ी संख्या में अफगानिस्तान के लोग किसी भी तरह देश से निकल जाना चाहते हैं। तालिबान जिस तरह खुद को उदार रूप में दिखाने की कोशिश कर रहा है, उसी तरह यह भी प्रकट कर रहा है कि उसका अलकायदा, जैश और लश्कर सरीखे आतंकी संगठनों से कोई लेना-देना नहीं। इस पर विश्व समुदाय और खासतौर से भारत भरोसा नहीं कर सकता।

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