बंगाल को बचाओ: शर्मिंदा करने वाली बंगाल की बेलगाम राजनीतिक हिंसा, तृणमूल राजनीतिक विरोधियों के दमन पर आमादा

लोग मारे जा रहे पीटे जा रहे घर और दुकानें जलाई जा रही हैं लेकिन तृणमूल कांग्रेस ऐसे व्यवहार कर रही है जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो। यह तो वह रवैया है जो बंगाल को बर्बादी की ओर ही ले जाएगा।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 04 May 2021 08:53 PM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 12:53 AM (IST)
बंगाल को बचाओ: शर्मिंदा करने वाली बंगाल की बेलगाम राजनीतिक हिंसा, तृणमूल राजनीतिक विरोधियों के दमन पर आमादा
बंगाल में हालात से चिंतित लोगों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

यह देखना बेहद शर्मनाक भी है और चिंताजनक भी कि पश्चिम बंगाल में लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने के बाद जब तृणमूल कांग्रेस को शासन संचालन के मामले में एक नई इबारत लिखने का काम करना चाहिए था, तब वह राजनीतिक विरोधियों के दमन पर आमादा है। बंगाल की बेलगाम राजनीतिक हिंसा राज्य के साथ राष्ट्र को भी शर्मिंदा करने वाली है। यह हिंसा कितनी भीषण है, इसका पता इससे चलता है कि जहां प्रधानमंत्री को राज्यपाल से बात करनी पड़ी और भाजपा अध्यक्ष को आनन-फानन कोलकाता रवाना होना पड़ा, वहीं राज्य के हालात से चिंतित कुछ लोगों को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। बंगाल की राजनीतिक हिंसा से चुनाव आयोग का वह फैसला सही साबित हुआ, जिसके तहत उसने राज्य में आठ चरणों में मतदान कराया। चुनाव बाद बंगाल में जो कुछ हो रहा है, वह घोर अलोकतांत्रिक और सभ्य समाज को लज्जित करने वाला है, लेकिन शायद ममता बनर्जी के नेतृत्व में बंगाल अपनी पुरानी राजनीतिक कुसंस्कृति का परित्याग करने को तैयार नहीं। अपने राजनीतिक विरोधियों को डराने-धमकाने और खत्म करने का जो काम एक समय वामदल किया करते थे, वही, बल्कि उससे भी ज्यादा घृणित तरीके से तृणमूल कांग्रेस कर रही है।

इससे बडी विडंबना और कोई नहीं कि ममता बनर्जी राजनीतिक हिंसा की जिस कुसंस्कृति के खिलाफ आवाज बुलंद कर सत्ता में आई थीं, उसे अब वही पोषित करती दिख रही हैं। इस बार की हिंसा तो सारे रिकॉर्ड ध्वस्त करती दिख रही है। चुनाव नतीजे आने के बाद से ही तृणमूल कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता जिस तरह भाजपा के साथ-साथ वामदलों और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर हमले करने में लगे हुए हैं, उससे ममता बनर्जी की चौतरफा बदनामी ही हो रही है, लेकिन ऐसा लगता है कि उन्हें अपने राज्य की खूनी राजनीतिक हिंसा की कोई परवाह ही नहीं। क्या जो लोग मारे जा रहे हैं, वे बंगाल की माटी के मानुष नहीं? बंगाल पुलिस और प्रशासन जिस प्रकार हाथ पर हाथ धरे बैठा है, उससे तो यही प्रतीति होती है कि उसे तृणमूल कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं की गुंडागर्दी के खिलाफ कुछ न करने को कहा गया है। इसका संकेत इससे भी मिलता है कि ममता और उनके साथी हिंसा की घटनाओं को खारिज करने और उसे विपक्ष का दुष्प्रचार बताने में लगे हुए हैं। यह और कुछ नहीं, सच से जानबूझकर मुंह मोड़ने की भोंडी कोशिश है। लोग मारे जा रहे, पीटे जा रहे, घर और दुकानें जलाई जा रही हैं, लेकिन तृणमूल कांग्रेस ऐसे व्यवहार कर रही है, जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो। यह तो वह रवैया है, जो बंगाल को बर्बादी की ओर ही ले जाएगा।

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