राफेल पर रार: क्या राहुल गांधी के पास है इन प्रश्नों का जवाब

नेताओं का एक बड़ा आरोप यह है कि मोदी सरकार ने एचएएल की अनदेखी करके रिलायंस डिफेंस को प्राथमिकता दी।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 22 Sep 2018 10:05 PM (IST) Updated:Sun, 23 Sep 2018 11:28 AM (IST)
राफेल पर रार: क्या राहुल गांधी के पास है इन प्रश्नों का जवाब
राफेल पर रार: क्या राहुल गांधी के पास है इन प्रश्नों का जवाब

राफेल सौदे को लेकर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के जिस बयान ने सनसनी मचाई उसमें खुद उन्होंने जिस तरह संशोधन किया उससे तो यही लगता है कि या तो पहले उनकी बात को सही तरह पेश नहीं किया गया या फिर उन्होंने अपने कदम पीछे खींचना बेहतर समझा। पहले वह यह कह रहे थे कि भारत सरकार ने ही अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस का नाम बतौर साझीदार प्रस्तावित किया था, लेकिन जब उनसे पूछा गया कि क्या इसके लिए दबाव डाला गया तो उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें कुछ पता नहीं और इस बारे में तो राफेल निर्माता दासौ ही कुछ बता सकती है।

ओलांद के ऐसा कहने के पहले फ्रांस सरकार ने भी कहा कि दासौ के भागीदार चयन में हमारी कोई भूमिका नहीं थी। खुद दासौ ने भी यह साफ किया कि हमने बेहतर भागीदार का चुनाव किया। इसके बावजूद यह तय है कि राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेता इस सबकी अनदेखी करना पसंद करेंगे, क्योंकि उनका एक मात्र उद्देश्य राफेल सौदे को एक घोटाला साबित करना और उसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को शामिल बताना है। अच्छा यह होगा कि राहुल गांधी की ओर से यह साफ कर दिया जाए कि वह किस आधार पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति के अपुष्ट बयान को तो सच मान रहे हैं, लेकिन वहां की मौजूदा सरकार के बयान की अनदेखी कर रहे हैं?

विपक्षी नेताओं और खासकर राहुल गांधी को यह भी बताना चाहिए कि कथित घोटाला राफेल को ज्यादा कीमत पर खरीदने से हुआ या फिर दासौ की ओर से रिलायंस डिफेंस को अपना भागीदार बनाने से? इसी क्रम में इस सवाल का जवाब भी चाहिए कि उन्हें तब कोई परेशानी क्यों नहीं थी जब संप्रग शासन के दौरान दासौ रिलायंस डिफेंस को अपना भागीदार बनाने पर सहमत थी?

ऐसा लगता है कि राहुल गांधी को इससे ज्यादा समस्या है कि रिलायंस डिफेंस दासौ की भागीदार कैसे बन गई? क्या राहुल यह कहना चाहते हैं कि संप्रग शासन में दासौ ने रिलायंस डिफेंस को साझीदार बनाने पर सहमत होकर तो अच्छा किया, लेकिन राजग शासन में ऐसा करके बहुत खराब किया? यह संभव है कि किसी कारण अब उन्हें रिलायंस डिफेंस रास न आ रही हो, लेकिन आखिर उसका दासौ का साझीदार बनना घोटाला कैसे हो गया? दासौ को तो किसी न किसी भारतीय कंपनी को अपना साझीदार बनाना ही था।

क्या जब मनमोहन सरकार के समय दासौै रिलायंस डिफेंस को साझीदार बनाने को तैयार थी तब सरकारी कंपनी एचएएल अस्तित्व में नहीं थी? यह सवाल इसलिए, क्योंकि राहुल के साथ राफेल सौदे में घोटाला देख रहे अन्य नेताओं का एक बड़ा आरोप यह है कि मोदी सरकार ने एचएएल की अनदेखी करके रिलायंस डिफेंस को प्राथमिकता दी। इसमें संदेह है कि राफेल सौदे में घोटाले का शोर मचा रहे लोग यह समझेंगे कि वे फ्रांस्वा ओलांद के जिस बयान के आधार पर अपना किला बना रहे थे उसे खुद उन्होंने ढहा दिया। चूंकि इसके आसार अधिक हैं कि राफेल सौदे को राजनीतिक मसला बनाया जाता रहेगा इसलिए बेहतर यह होगा कि सरकार विपक्ष के आरोपों का जवाब देती भर न दिखे।

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