टीके पर सियासत होनी चाहिए बंद, जून में 12 करोड़ टीके होंगे उपलब्ध, छह करोड़ टीके राज्यों को मिलेंगे मुफ्त

हर गुजरते दिन के साथ टीकों की कमी दूर होगी और केंद्र सरकार इस वर्ष के अंत तक सभी पात्र लोगों के टीकाकरण के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त कर रही है तब फिर विपक्ष को टीके पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी बंद करना चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sun, 30 May 2021 09:43 PM (IST) Updated:Mon, 31 May 2021 01:41 AM (IST)
टीके पर सियासत होनी चाहिए बंद, जून में 12 करोड़ टीके होंगे उपलब्ध, छह करोड़ टीके राज्यों को मिलेंगे मुफ्त
अब यह शोर बंद कर दिया जाना चाहिए कि टीके मिल नहीं रहे।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की इस घोषणा के बाद टीके को लेकर की जा रही राजनीति पर विराम लग जाए तो बेहतर कि जून में करीब 12 करोड़ टीके उपलब्ध होंगे। इसका मतलब है कि इस माह की तुलना में अगले माह लगभग चार करोड़ अधिक टीके उपलब्ध होंगे। इन 12 करोड़ में से करीब छह करोड़ टीके राज्यों को मुफ्त दिए जाएंगे और लगभग इतने ही राज्य सरकारें एवं निजी अस्पताल सीधी खरीद के जरिये हासिल कर सकेंगे। चूंकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को यह विवरण भेज दिया है कि कब कितने टीके उपलब्ध कराए जाएंगे, इसलिए अब यह शोर बंद कर दिया जाना चाहिए कि टीके मिल नहीं रहे। यह अपेक्षा इसलिए, क्योंकि कुछ राजनीतिक दल इस एकसूत्रीय कार्यक्रम को संचालित करते दिख रहे हैं कि किसी न किसी बहाने टीके की कमी का शोर मचाना है। हालांकि इस माह कुछ समय तक पर्याप्त संख्या में टीकों की आपूर्ति नहीं हो सकी, लेकिन अब जब यह सुनिश्चित हो गया है कि अगले माह अधिक संख्या में टीके उपलब्ध कराए जाएंगे, तब फिर टीकों की कमी का हल्ला मचाकर केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा करना बंद करके इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि टीकाकरण का काम सही ढंग से आगे कैसे बढ़े?

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि कई राज्य सरकारें टीकाकरण को लेकर पर्याप्त गंभीर नहीं हैं। इसका पता इससे चलता है कि उनके यहां टीके जाया होने की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। आखिर इसका क्या मतलब कि एक ओर टीकों की कमी का रोना रोया जाए और दूसरी ओर इसकी परवाह न की जाए कि वे राष्ट्रीय औसत से कहीं अधिक जाया हो रहे हैं? क्या यह महज एक दुर्योग है कि जो कांग्रेस टीकों की कमी के सवाल को जोर-शोर से उठा रही है, उसके ही शासित राज्यों में टीके अधिक जाया हो रहे हैं? कांग्रेस के रवैये से तो यह लगता है कि उसने ठान लिया है कि उसे हर दिन टीकाकरण कार्यक्रम में कुछ न कुछ कमी निकालकर केंद्र सरकार को घेरना है। हालांकि अभी कहीं चुनाव नहीं हो रहे हैं, लेकिन कांग्रेस टीकाकरण को चुनावी मुद्दे की शक्ल देने में लगी हुई है। पता नहीं इससे उसे क्या हासिल होगा? उसके रवैये से तो यही संदेह होता है कि हो न हो, टूलकिट के पीछे उसका ही हाथ है। अब जब यह स्पष्ट हो रहा है कि हर गुजरते दिन के साथ टीकों की कमी दूर होगी और केंद्र सरकार इस वर्ष के अंत तक सभी पात्र लोगों के टीकाकरण के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त कर रही है, तब फिर विपक्ष को टीके पर अनावश्यक टीका-टिप्पणी बंद करना चाहिए।

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