परीक्षा की घड़ी: कोरोना के चलते सीबीएसई की परीक्षाओं पर राजनीति की छाया, शिक्षा मंत्रालय पर बढ़ा दबाव

परीक्षाओं की अपनी एक महत्ता होती है और उसे बरकरार रखा जाना चाहिए। कोरोना संक्रमण की लहर बहुत तेज है और शायद अगले माह के पहले हफ्ते से परीक्षा कराना संभव न हो लेकिन जून के प्रथम सप्ताह तक ऐसी स्थिति बन सकती है कि परीक्षाएं कराई जा सकें।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Wed, 14 Apr 2021 01:19 AM (IST) Updated:Wed, 14 Apr 2021 01:19 AM (IST)
परीक्षा की घड़ी: कोरोना के चलते सीबीएसई की परीक्षाओं पर राजनीति की छाया, शिक्षा मंत्रालय पर बढ़ा दबाव
कोरोना संक्रमण की लहर बहुत तेज है और शायद अगले माह से परीक्षा कराना संभव न हो।

यह निराशाजनक है कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी सीबीएसई की परीक्षाओं को लेकर भी राजनीति शुरू होती दिख रही है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि ऐसा इसीलिए किया जा रहा है ताकि खुद को छात्रों के हितैषी के रूप मे पेश किया जा सके। यह रवैया ठीक नहीं, लेकिन बोर्ड परीक्षाओं को लेकर हो रही राजनीति पर लगाम भी तभी लग सकती है जब शिक्षा मंत्रालय की ओर से कोई स्पष्ट घोषणा कर दी जाए। चूंकि कई राज्यों ने अपने यहां की बोर्ड परीक्षाओं को स्थगित कर दिया है या उन्हें आगे बढ़ाकर नई तिथियां घोषित कर दी हैं, इसलिए शिक्षा मंत्रालय पर भी सीबीएसई परीक्षाओं के संदर्भ में ऐसा ही कुछ करने का दबाव है। उसे इस दबाव में आए बगैर जो छात्रों के हित में हो, वही फैसला करना चाहिए। जैसे परीक्षा न कराना छात्रों के लिए हितकारी नहीं हो सकता, वैसे ही परीक्षाओं को लेकर असमंजस कायम रहना भी। असमंजस की स्थिति छात्रों को और अधिक तनावग्रस्त ही करेगी। यह ध्यान रहे कि बोर्ड परीक्षा को लेकर छात्र पहले से ही तनाव के शिकार रहते हैं। चूंकि महामारी ने उनकी पढ़ाई में खलल डाला है, इसलिए उनका तनाव और बढ़ गया है। इन स्थितियों में उचित यही होगा कि परीक्षा पर जल्द फैसला लिया जाए। 

फिलहाल कोरोना संक्रमण की लहर बहुत तेज है और शायद अगले माह के पहले हफ्ते से परीक्षा कराना संभव न हो, लेकिन जून के प्रथम सप्ताह तक ऐसी स्थिति बन सकती है कि परीक्षाएं कराई जा सकें। तब तक कोरोना संक्रमण खत्म होने के आसार तो नहीं, लेकिन उस समय उसकी लहर कमजोर होने की संभावना है। ऐसी स्थितियों में सावधानी के साथ परीक्षाएं कराई जा सकती हैं-ठीक वैसे ही जैसे कुछ समय पहले विश्वविद्यालयों के साथ कई प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित की गई थीं। हालांकि तब भी कई दलों ने खूब हल्लागुल्ला मचाया था, लेकिन वह व्यर्थ ही साबित हुआ था। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षाओं को लेकर जो भी फैसला लिया जाए, इस तरह के सुझावों पर गौर करने से इन्कार किया जाना चाहिए कि आंतरिक आकलन के आधार पर परीक्षा परिणाम घोषित कर दिए जाएं। परीक्षाओं की अपनी एक महत्ता होती है और उसे बरकरार रखा जाना चाहिए। इसी के साथ हर तरह की स्थितियों के लिए तैयार रहने की भी जरूरत है। यदि जून में परीक्षा कराकर जुलाई के अंत तक परिणाम घोषित किए जा सकें तो बात बन सकती है। चूंकि जब तक कोरोना से मुक्ति नहीं मिलती, तब तक इसका कोई ठिकाना नहीं कि भविष्य में क्या स्थिति बनती है, इसलिए हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार रहने में ही समझदारी है।

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