सियासी नेताओं को उन कारणों का निवारण के लिए आगे आना होगा, जो आतंक की जमीन तैयार कर रहे हैं

आतंकी संगठनों के प्रति मुस्लिम युवाओं के झुकाव की या तो अनदेखी कर दी जाती है या फिर उन्हें बेगुनाह बताने का अभियान छेड़ दिया जाता है।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Sat, 19 Sep 2020 08:14 PM (IST) Updated:Sun, 20 Sep 2020 12:29 AM (IST)
सियासी नेताओं को उन कारणों का निवारण के लिए आगे आना होगा, जो आतंक की जमीन तैयार कर रहे हैं
सियासी नेताओं को उन कारणों का निवारण के लिए आगे आना होगा, जो आतंक की जमीन तैयार कर रहे हैं

बहुत दिन नहीं हुए जब भारत की एक पहचान यह भी थी कि दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश होने के बावजूद एक भी मुस्लिम अल कायदा का सदस्य नहीं है, लेकिन स्थिति किस तरह बदल गई, इसका ताजा प्रमाण है राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआइए की ओर से केरल और बंगाल में इस आतंकी संगठन के नौ सदस्यों की गिरफ्तारी। ऐसे तत्वों की गिरफ्तारी का यह पहला मामला नहीं। अल कायदा के साथ-साथ एक अन्य खूंखार आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के आतंकी भी गिरफ्तार किए जा चुके हैं। कुछ समय पहले ही बेंगलुरु में इस्लामिक स्टेट के खुरासान गुट के लिए काम करने वाले एक डॉक्टर को गिरफ्तार किया गया था। तथ्य यह भी है कि भारत के विभिन्न हिस्सों से अफगानिस्तान और सीरिया गए कई आतंकी मारे भी जा चुके हैं। इनमें से कई अच्छे-खासे पढ़े-लिखे और संपन्न परिवारों के थे।

गत दिवस केरल और बंगाल से गिरफ्तार आतंकी भी शिक्षित बताए जा रहे हैं। इसका मतलब है कि इस मिथ्या धारणा के लिए अब कोई स्थान नहीं रह गया है कि जहालत और गरीबी मुस्लिम युवाओं को आतंकवाद की ओर मोड़ रही है। वास्तव में यह मजहबी कट्टरता और धर्माधता है, जो जिहादी आतंकवाद को खाद-पानी दे रही है। इसमें एक बड़ी भूमिका इंटरनेट और खासकर सोशल मीडिया निभा रहा है।

भले ही सोशल मीडिया कंपनियां आतंकी तत्वों को हतोत्साहित करने की नीति पर चलने का दावा करती हों, लेकिन सच यह है कि उनका ऐसे तत्वों पर कहीं कोई अंकुश नहीं। कभी-कभी तो यह लगता है कि इसमें उनकी कोई दिलचस्पी ही नहीं कि आतंकी गुट उनका फायदा न उठाने पाएं। यह किसी से छिपा नहीं कि किस्म-किस्म के आतंकी समूह और उनके समर्थक सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। केरल और बंगाल से गिरफ्तार आतंकी सोशल मीडिया के जरिये ही पाकिस्तान स्थित अपने आकाओं से जुड़े थे। इस बारे में जरूरी जानकारी अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेष रूप से एफएटीएफ को उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इस संगठन को उस रपट से भी परिचित कराया जाना चाहिए, जो यह कहती है कि खालिस्तानी आतंकवाद के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, लेकिन इसी के साथ घरेलू मोर्चे पर राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक नेताओं को उन कारणों का निवारण करने के लिए आगे भी आना होगा, जो आतंक की जमीन तैयार कर रहे हैं।

यह ठीक नहीं कि संकीर्ण राजनीतिक कारणों से आतंकी संगठनों के प्रति मुस्लिम युवाओं के झुकाव की या तो अनदेखी कर दी जाती है या फिर उन्हें बेगुनाह बताने का अभियान छेड़ दिया जाता है। वास्तव में इसी रवैये के कारण देश के कुछ हिस्सों में आतंकियों की जमीन तैयार हो रही है।

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