पाखंड पर प्रहार: किसान संगठनों को बरगलाने का काम कर रहे राजनीतिक दलों पर निशाना

खुद को किसानों का नेता बता रहे लोग अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहते हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं लेकिन इसके लिए न तो किसानों को मोहरा बनाया जाना चाहिए और न ही देश को गुमराह किया जाना चाहिए।

By Manish PandeyEdited By: Publish:Sun, 03 Oct 2021 09:44 AM (IST) Updated:Sun, 03 Oct 2021 09:44 AM (IST)
पाखंड पर प्रहार: किसान संगठनों को बरगलाने का काम कर रहे राजनीतिक दलों पर निशाना
कृषि कानूनों के विरोध में विपक्ष के हाथों में खेल रहे सड़कों पर उतरे किसान संगठन

यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने बिना किसी लाग लपेट कहा कि कृषि कानूनों का विरोध एक राजनीतिक धोखाधड़ी है। ऐसा कहकर उन्होंने उन राजनीतिक दलों पर ही निशाना साधा, जो किसान संगठनों को बरगलाने का काम करने में लगे हुए हैं। नि:संदेह यह काम इसीलिए किया जा रहा है, ताकि आगामी विधानसभा चुनावों में किसानों को गुमराह कर चुनावी लाभ उठाया जा सके। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि कृषि कानूनों के विरोध में सड़कों पर उतरे किसान संगठन भी विरोधी दलों के हाथों में खुलकर खेल रहे हैं। अब तो वे चुनावों में दखल देने की भी बात करने लगे हैं। स्पष्ट है कि खुद को किसानों का नेता बता रहे लोग अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहते हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं, लेकिन इसके लिए न तो किसानों को मोहरा बनाया जाना चाहिए और न ही देश को गुमराह किया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से वे ठीक यही कर रहे हैं और इस क्रम में आम किसानों का अहित ही कर रहे हैं, क्योंकि कृषि कानून कुल मिलाकर किसानों को उन तमाम समस्याओं से मुक्त करने वाले हैं, जिनसे वे दशकों से जकड़े हुए हैं। वास्तव में इसी कारण कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वैसे कानून बनाने का वादा किया था, जैसे मोदी सरकार ने बनाए। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि तथाकथित किसान आंदोलन केवल पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक सीमित है। क्या कारण है कि देश के अन्य हिस्सों में किसान संगठनों के आंदोलन की कहीं कोई हलचल नहीं? क्या किसान केवल पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही बसते हैं?

वास्तव में जिसे किसानों का आंदोलन बताया जा रहा है, वह एक सीमित इलाके के समर्थ किसानों का आंदोलन है और उसके बीच आढ़तियों एवं बिचौलियों की भागीदारी है। इन्हें पहले पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने संकीर्ण राजनीतिक कारणों से उकसाया और बाद में अन्य विपक्षी नेता भी उनके साथ खड़े हो गए। बीते दिनों पंजाब के नए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने भी कृषि कानूनों से उपजे हालात सुलझाने की मांग करते हुए प्रधानमंत्री से मुलाकात की। आखिर क्या कारण है कि अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री ऐसी किसी मांग के साथ प्रधानमंत्री से मिलने की जरूरत नहीं समझ रहे हैं? सवाल यह भी है कि कृषि कानूनों के विरोध के नाम पर आम लोगों को तंग क्यों किया जा रहा है? विपक्षी दल लोगों को बंधक बनाकर अपनी मांगें मनवाने वालों को उकसाकर अराजकता की राजनीति को ही बढ़ावा दे रहे हैं। उन्हें यह जितनी जल्दी समझ आ जाए तो अच्छा कि यह राजनीति उन्हें बहुत भारी पड़ेगी।

chat bot
आपका साथी