संसदीय अराजकता: राज्य सभा के निलंबित सांसदों के शर्मनाक व्यवहार से संसद की गरिमा हुई तार-तार

लोकतंत्र नियमों से चलता है न कि उनकी खुली अवहेलना से। निलंबित सांसदों ने यही किया। यदि हमारे सांसद ही नियमों का पालन नहीं करेंगे तो फिर वे आम जनता से यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि वह नियमसम्मत व्यवहार करे?

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 22 Sep 2020 12:40 AM (IST) Updated:Tue, 22 Sep 2020 12:40 AM (IST)
संसदीय अराजकता: राज्य सभा के निलंबित सांसदों के शर्मनाक व्यवहार से संसद की गरिमा हुई तार-तार
लोकतंत्र नियमों से चलता है, न कि उनकी खुली अवहेलना से।

यह चोरी और सीनाजोरी का सटीक उदाहरण ही है कि राज्यसभा में घोर अमर्यादित आचरण का परिचय देने वाले सांसद अपने निलंबन के विरोध में यह कुतर्क पेश करने में लगे हुए हैं कि सत्तापक्ष विपक्ष की आवाज दबाने का काम कर रहा है। क्या जो विपक्षी दल निलंबित सांसदों के शर्मनाक व्यवहार की पैरवी कर रहे हैं, वे विपक्ष के शासन वाले राज्यों की विधानसभाओं में प्रतिपक्ष के वैसे ही बर्ताव को सहर्ष स्वीकार करने को तैयार हैं, जैसा विगत दिवस कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और माकपा के सांसदों ने किया? क्या पीठासीन अधिकारी से धक्कामुक्की करने, माइक तोड़ने, नियम पुस्तिका फाड़ने आदि को संसदीय परंपरा का हिस्सा मान लिया गया है? यदि नहीं तो फिर यह सब करने वालों के निलंबन के खिलाफ हल्ला क्यों मचाया जा रहा है? शर्मनाक केवल यही नहीं कि निलंबित सांसदों ने समस्त संसदीय मर्यादाएं तार-तार कर दीं, बल्कि यह भी है कि अपने निलंबन की घोषणा के बाद भी वे सदन में बैठे रहे।

देश जानना चाहेगा कि ऐसा किस नियम-परंपरा के तहत किया गया? यह और कुछ नहीं, एक तरह से नियम अपने हाथ में लेकर खुली मनमानी करना है। यदि ऐसे आचरण को स्वीकार किया गया तो फिर सदन और सड़क की राजनीति का अंतर ही खत्म हो जाएगा। इससे खराब बात और कोई नहीं हो सकती कि जिन सांसदों ने सदन की मर्यादा भंग की, वे अपने आचरण पर शर्मिंदा होने के बजाय राज्यसभा के उप सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ले आए। आखिर इसे संसदीय ढिठाई के अलावा और क्या कहा जा सकता है?

यह पहली बार नहीं है जब हद से ज्यादा हंगामा करने वाले सांसदों को निलंबित किया गया हो। ऐसा पहले भी हो चुका है और यहां तक कि उस समय भी जब कांग्रेस सत्ता में थी। तथ्य यह भी है कि एक नहीं, अनेक बार पक्ष-विपक्ष में यह सहमति बन चुकी है कि सदन में अमर्यादित व्यवहार करने वाले सांसद निलंबन के हकदार होंगे। संख्याबल की अपनी कमजोरी को अपने बाहुबल से दूर करने की कोशिश लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाने वाला काम है। इस तरह के आचरण से न तो संसद चल सकती है और न ही लोकतंत्र।

लोकतंत्र नियमों से चलता है, न कि उनकी खुली अवहेलना से। निलंबित सांसदों ने यही किया। यदि हमारे सांसद ही नियमों का पालन नहीं करेंगे तो फिर वे आम जनता से यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि वह नियमसम्मत व्यवहार करे? हुड़दंग मचाने वाले सांसदों की तरफदारी केवल संसद का ही अपमान नहीं है, बल्कि उन सभी सांसदों की अनदेखी भी है, जो नियम-परंपराओं का पालन कर संसद की गरिमा बढ़ाते हैं।

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