संघर्ष विराम समझौते के बाद भी पाकिस्तान पर भरोसा नहीं, कश्मीर में आतंकी हमलों में तेजी आना शुभ संकेत नहीं

संघर्ष विराम समझौते के बाद भी पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। एक ऐसे समय जब कश्मीर में अमरनाथ यात्रा की तैयारियां हो रही हैं तब यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आतंकी हमलों का सिलसिला थमे और आतंकियों की कमर टूटे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Tue, 30 Mar 2021 11:06 PM (IST) Updated:Wed, 31 Mar 2021 12:24 AM (IST)
संघर्ष विराम समझौते के बाद भी पाकिस्तान पर भरोसा नहीं, कश्मीर में आतंकी हमलों में तेजी आना शुभ संकेत नहीं
आतंकियों के सफाए का अभियान जारी रहना चाहिए।

पाकिस्तान के संघर्ष विराम के लिए सहमत हो जाने के बाद जब यह उम्मीद की जा रही थी कि जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के दुस्साहस का दमन होगा, तब यह देखने में आ रहा है कि वे अपना सिर उठा रहे हैं। यह शुभ संकेत नहीं कि कश्मीर में आतंकी हमलों में तेजी आती दिख रही है। सोमवार को सोपोर के नगर पालिका कार्यालय में आतंकियों के हमले में दो पार्षदों के साथ एक सुरक्षा कर्मी की मौत आतंकियों के दुस्साहस को ही बयान कर रही है। दुर्भाग्य से यह आतंकी हमला सुरक्षा में चूक को भी बयान कर रहा है। हालांकि इस चूक को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन केवल इससे ही बात बनने वाली नहीं है। सोपोर के पहले शोपियां में आतंकियों को मार गिराने के एक अभियान में सेना के एक हवलदार को अपना बलिदान देना पड़ा था। इसी तरह कुछ दिन पहले श्रीनगर-बारामुला राजमार्ग पर आतंकियों ने सीआरपीएफ की एक टुकड़ी पर हमला किया था, जिसमें एक सब इंस्पेक्टर और सीआरपीएफ के दो कर्मी बलिदान हुए थे। कश्मीर घाटी में तेज होते आतंकी हमलों के पीछे के कारणों की तह तक जाना ही होगा, क्योंकि ये किसी सुनियोजित साजिश का हिस्सा जान पड़ते हैं।

आतंकी हमलों का कोई संबंध संघर्ष विराम समझौते से भी हो सकता है और आतंकी संगठनों की ओर से यह जताने की मंशा से भी कि वे अभी पस्त नहीं पड़े हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि जिहादी मानसिकता वाले कट्टरपंथी और आतंकी संगठन जब भी कमजोर पड़ते हैं या फिर कहीं कोई शांति की पहल होती है तो वे अपना सिर उठा लेते हैं। इस सिलसिले में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भारतीय प्रधानमंत्री की बांग्लादेश यात्रा खत्म होते ही वहां जिहादी संगठनों ने किस तरह कहर बरपाया? बांग्लादेश की हिंसा यदि कुछ कहती है तो यही कि जिहादी सोच वाले चरमपंथी तत्वों को शांति और दोस्ती की कोई पहल रास नहीं आती। हैरानी नहीं कि कश्मीर और पाकिस्तान आधारित आतंकी संगठनों को भी संघर्ष विराम रास न आया हो। कारण जो भी हो, आतंकियों का सफाया करने की इच्छाशक्ति और बढ़ती हुई दिखनी चाहिए, क्योंकि उनके सक्रिय रहते कश्मीर घाटी में अमन-चैन की बहाली नहीं हो सकती। आतंकियों के सफाए का अभियान इसलिए भी जारी रहना चाहिए, क्योंकि संघर्ष विराम समझौते के बाद भी पाकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। एक ऐसे समय जब कश्मीर में अमरनाथ यात्रा की तैयारियां हो रही हैं और वहां जाने वाले पर्यटकों की संख्या में उछाल आने के भरे-पूरे आसार दिख रहे हैं, तब यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि आतंकी हमलों का सिलसिला थमे और आतंकियों की कमर टूटे।

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