पेट्रोल और डीजल के मूल्यों में वृद्धि के खिलाफ भारत बंद के दौरान हुआ अराजकता का खुला खेल

किसी भी सरकार के लिए यह ठीक नहीं कि वह महंगे होते पेट्रोल-डीजल के समक्ष असहाय सी दिखे।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 10 Sep 2018 11:25 PM (IST) Updated:Tue, 11 Sep 2018 05:00 AM (IST)
पेट्रोल और डीजल के मूल्यों में वृद्धि के खिलाफ भारत बंद के दौरान हुआ अराजकता का खुला खेल
पेट्रोल और डीजल के मूल्यों में वृद्धि के खिलाफ भारत बंद के दौरान हुआ अराजकता का खुला खेल

जैसी आशंका थी वैसा ही हुआ, पेट्रोल और डीजल के मूल्यों में वृद्धि के खिलाफ कांग्रेस एवं अन्य विपक्षी दलों की ओर से बुलाए गए भारत बंद के दौरान कई स्थानों पर अराजकता का खुला परिचय दिया गया। स्पष्ट है कि इससे आम लोगों को परेशानी उठानी पड़ी। आखिर कांग्रेस और अन्य दल यह कैसे कह सकते हैैं कि इस बंद के जरिये वे जनता की परेशानियों की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करना चाह रहे थे। आखिर राजनीतिक विरोध का यह कौन सा तरीका है कि लोगों को जानबूझकर तंग करके सरकार को यह बताने की कोशिश की जाए कि वे परेशान हैैं?

विपक्षी नेताओं को यह बताना चाहिए कि इस अराजकता भरे बंद से उन्हें हासिल क्या हुआ? इसमें दोराय नहीं कि महंगा होता पेट्रोल और डीजल एक वर्ग के लिए परेशानी का कारण बन रहा है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि बंद का आयोजन करके कहीं बाजार जबरन बंद कराए जाएं तो कहीं वाहनों और यहां तक कि स्कूली बसों में भी तोड़फोड़ की जाए। चूंकि बंद के दौरान सड़क और रेल मार्ग ठप करना नेताओं का प्रिय शगल होता है इसलिए गत दिवस वह भी देखने को मिला। इसके चलते बिहार के जहानाबाद जिले में ऑटो से अस्पताल ले जाई जा रही एक बच्ची की मौत हो गई। आखिर इस मासूम की मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा? इस मामले में सवाल यह भी है कि आखिर प्रशासन यह दावा कैसे कर सकता है कि बच्ची को घर से लाने में ही देर हो गई थी?

राजनीतिक दल इससे अनभिज्ञ नहीं कि बंद उपद्रव के पर्याय बन गए हैैं, लेकिन बावजूद इसके वे इस तरह के अराजक आयोजन करके खुद को जनता का हितैषी सिद्ध करने का दिखावा करते हैैं। अगर राजनीतिक दलों को सचमुच आम आदमी की फिक्र है तो फिर उन्हें बंद बुलाने से बाज आना चाहिए। बेहतर होगा कि सुप्रीम कोर्ट अराजक होते जा रहे बंद के आयोजनों का संज्ञान ले। यह न केवल हास्यास्पद है, बल्कि हैरानी भरा भी कि कांग्रेस शासित राज्यों पंजाब और कर्नाटक में भी बंद बुलाया गया। क्या इन दोनों राज्यों में राजस्थान और आंध्र की तरह से पेट्रोल और डीजल पर वैट की दरें घटा दी गई हैैं? अगर नहीं तो कांग्रेसी नेताओं को पंजाब और कर्नाटक बंद करने की क्यों सूझी?

क्या कांग्रेस की यह मांग है कि पेट्रोलियम पदार्थों पर केवल केंद्रीय करों में ही कटौती हो? नि:संदेह कुछ सवालों का जवाब भाजपा को भी देना होगा। आखिर वह यह रेखांकित कर क्या साबित करना चाह रही है कि मनमोहन सरकार के समय भी पेट्रोल और डीजल के मूल्यों में वृद्धि हुई थी? आखिर तब उसने भी तो महंगे होते पेट्रोल और डीजल को लेकर विरोध जताया था। पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों पर सरकार का यह कहना तो ठीक है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में जिन कारणों से कच्चे तेल के दाम बढ़ रहे हैैं उन पर उसका जोर नहीं, लेकिन केवल वस्तुस्थिति बयान करने से बात बनने वाली नहीं। किसी भी सरकार के लिए यह ठीक नहीं कि वह महंगे होते पेट्रोल-डीजल के समक्ष असहाय सी दिखे।

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