गुजरात में नया प्रयोग: दिलचस्‍प होगा देखना, जनता इस व्यापक बदलाव को किस रूप लेगी

उम्मीद की जाती है कि गुजरात सरकार में नए मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक एक नई तरह की कार्यसंस्कृति और ऊर्जा का संचार करेंगे। देखना है कि गुजरात की जनता इस व्यापक बदलाव को किस रूप में लेती है?

By TilakrajEdited By: Publish:Fri, 17 Sep 2021 09:26 AM (IST) Updated:Fri, 17 Sep 2021 09:26 AM (IST)
गुजरात में नया प्रयोग: दिलचस्‍प होगा देखना, जनता इस व्यापक बदलाव को किस रूप लेगी
नए चेहरों वाली सरकार के सामने एक साथ दो चुनौतियां होंगी

गुजरात में मुख्यमंत्री बदले जाने के बाद जिस तरह सभी पुराने मंत्रियों को हटा कर नए चेहरों को मौका दिया गया, वह बहुत बड़ा राजनीतिक बदलाव है। इसके पहले शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि मुख्यमंत्री को हटाए जाने के साथ ही पुराने मंत्रियों की भी विदाई कर दी जाए। गुजरात में ऐसा हुआ तो इसका मतलब है कि भाजपा नेतृत्व राज्य की सरकार को नया रूप-स्वरूप प्रदान करना चाहता था और इसके जरिये लोगों को व्यापक बदलाव का संदेश देना चाहता था। देखना है कि गुजरात की जनता इस व्यापक बदलाव को किस रूप में लेती है? नि:संदेह देखना यह भी होगा कि जो मंत्री हटाए गए हैं, वे नई सरकार के लिए समस्याएं तो नहीं खड़ी करेंगे? वे इससे आशंकित हो सकते हैं कि कहीं उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट से तो वंचित नहीं कर दिया जाएगा? जो मंत्री हटाए गए हैं, उनका नाराज होना स्वाभाविक है, लेकिन यह भी एक तथ्य है कि लंबे समय तक सत्ता में रहे लोगों से एक तरह की ऊब पैदा हो जाती है।

उम्मीद की जाती है कि गुजरात सरकार में नए मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक एक नई तरह की कार्यसंस्कृति और ऊर्जा का संचार करेंगे। इसके बिना बदलाव का उद्देश्य पूरा होने वाला नहीं है। यह सही है कि भूपेंद्र पटेल सरकार में मंत्रियों के रूप में शामिल नए चेहरे बदलाव के साथ ताजगी का आभास कराएंगे, लेकिन इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि मुख्यमंत्री के साथ उनके नए मंत्रियों को सरकार चलाने का अनुभव नहीं है। अनुभव का यह अभाव तब चुनौती बन सकता है, जब विधानसभा चुनाव में ज्यादा देर नहीं है।

स्पष्ट है कि नए चेहरों वाली सरकार के सामने एक साथ दो चुनौतियां होंगी। एक तो सरकार का कामकाज प्रभावी ढंग से चलाना और दूसरे, भाजपा के पक्ष में चुनावी माहौल तैयार करना। नए मुख्यमंत्री और उनके मंत्रियों के सामने एक चुनौती यह भी होगी कि शासन के कामकाज में नौकरशाही न हावी होने पाए। हालांकि, नए मंत्रियों के चयन में जातिगत समीकरणों का पूरा ध्यान रखा गया है, लेकिन कुछ ऐसे लोग छूट गए हो सकते हैं, जो मंत्री बनने की इच्छा रखते हों। जो भी हो, भाजपा की प्रयोगशाला कहे जाने वाले गुजरात में एक नया प्रयोग हुआ है।

इस प्रयोग की सफलता-विफलता का निर्धारण भविष्य करेगा, लेकिन इसमें दोराय नहीं कि भारत में राजनीति से रिटायर होने की कोई परंपरा विकसित नहीं हो पाई है। यह परंपरा विकसित होनी चाहिए, क्योंकि इससे ही राजनीति में बदलाव की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ेगी और इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता कि भारतीय राजनीति में बदलाव और सुधार की आवश्यकता है।

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