कोरोना संक्रमण के बेलगाम होने के चलते कई राज्यों में लॉकडाउन की हुई वापसी, नहीं थमेगा उद्योगों का पहिया

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की आशंका के बाद भी धार्मिक सांस्कृतिक एवं राजनीतिक कार्यक्रम और खासकर रैलियां करने की क्या जरूरत थी? कम से कम अब तो आम लोगों और नीति-नियंताओं को जरूरी सबक सीख ही लेने चाहिए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Mon, 19 Apr 2021 08:35 PM (IST) Updated:Tue, 20 Apr 2021 12:26 AM (IST)
कोरोना संक्रमण के बेलगाम होने के चलते कई राज्यों में लॉकडाउन की हुई वापसी, नहीं थमेगा उद्योगों का पहिया
लॉकडाउन में न तो जरूरी सेवाएं बाधित होने पाएं और न ही औद्योगिक उत्पादन थमने पाए।

दिल्ली में एक सप्ताह और राजस्थान में 15 दिन के लिए लॉकडाउन की घोषणा के साथ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से उत्तर प्रदेश के पांच शहरों में 26 अप्रैल तक लॉकडाउन लगाने के आदेश के बाद यह तय है कि कुछ और राज्य इसी दिशा में आगे बढ़ेंगे। महाराष्ट्र पहले ही लॉकडाउन लगा चुका है। यदि लॉकडाउन की वापसी हो रही है तो इसीलिए कि और कोई उपाय नहीं रह गया था। लॉकडाउन की मजबूरी यह बताती है कि रात के कर्फ्यू बेअसर थे। यह अच्छा हुआ कि इस बार केंद्र सरकार ने अपने स्तर पर देशव्यापी लॉकडाउन लगाने के बजाय राज्यों पर यह छोड़ दिया कि वे अपने यहां के हालात के हिसाब से फैसला लें। राज्यों को यह ध्यान रहे कि लॉकडाउन में न तो जरूरी सेवाएं बाधित होने पाएं और न ही औद्योगिक उत्पादन थमने पाए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आवश्यक वस्तुओं के साथ-साथ औद्योगिक उत्पाद एवं कच्चे माल की आवाजाही का तंत्र बिना किसी बाधा के काम करता रहे। यह ठीक नहीं कि महाराष्ट्र और दिल्ली से कामगारों की वापसी होती दिख रही है। इन कामगारों में कारखाना मजदूर भी हैं। जब औद्योगिक प्रतिष्ठान बंद नहीं किए जा रहे तो फिर कारखाना मजदूर क्यों पलायन कर रहे हैं?

यदि लॉकडाउन के कारण उद्योगों का पहिया थमा तो फिर से एक नई समस्या खड़ी हो जाएगी। ऐसे में यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि राज्य सरकारों की ओर से जनता को यह संदेश दिया जाए कि अबकी बार अलग तरह का लॉकडाउन है, जिसमें जरूरी सतर्कता यानी कोविड प्रोटोकॉल के साथ काफी कुछ चलता और खुला रहेगा, जैसे ई-कामर्स डिलीवरी और कुछ पाबंदियों के साथ सार्वजनिक परिवहन। वास्तव में इस आशय का केवल संदेश ही नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि ऐसे जतन भी किए जाने चाहिए कि लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर न्यूनतम असर हो। लॉकडाउन की अवधि में जिन आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियों के लिए अनुमति दी गई है, वहां संक्रमण से बचे रहने की पूरी सावधानी बरती जाए। इसके लिए जितनी कोशिश शासन-प्रशासन को करनी होगी, उतनी ही आम लोगों को भी। यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि यदि न चाहते हुए लॉकडाउन लगाना पड़ रहा है तो कोरोना संक्रमण के बेलगाम होने के साथ-साथ कुछ भूलों के कारण भी। जैसे जनवरी-फरवरी के बाद आम जनता ने बेफिक्री दिखाई, वैसे ही उन्हें दिशा देने या उनका नेतृत्व करने वालों ने भी। समझना कठिन है कि संक्रमण की दूसरी लहर की आशंका के बाद भी धार्मिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक कार्यक्रम और खासकर रैलियां करने की क्या जरूरत थी? कम से कम अब तो आम लोगों और नीति-नियंताओं को जरूरी सबक सीख ही लेने चाहिए।

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