नागरिकता विधेयक पर इमरान की टिप्पणी भारत के आंतरिक मामलों में लोगों को गुमराह करने की कोशिश

यह सहज ही समझा जा सकता है कि इमरान खान यह धृष्टता इसीलिए कर सके क्योंकि हमारे कई विपक्षी दल यह दुष्प्रचार करने में जुटे हुए हैं कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Publish:Wed, 11 Dec 2019 12:22 AM (IST) Updated:Wed, 11 Dec 2019 12:27 AM (IST)
नागरिकता विधेयक पर इमरान की टिप्पणी भारत के आंतरिक मामलों में लोगों को गुमराह करने की कोशिश
नागरिकता विधेयक पर इमरान की टिप्पणी भारत के आंतरिक मामलों में लोगों को गुमराह करने की कोशिश

यह बेशर्मी की पराकाष्ठा है कि लोकसभा से पारित नागरिकता संशोधन विधेयक पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान भी आपत्ति जता रहे हैं। जो देश धार्मिक आधार पर अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले में दुनिया भर में कुख्यात हो और जहां अल्पसंख्यक एक तरह से अंतिम सांसें गिन रहे हों वह आखिर किस मुंह से भारत को नसीहत दे सकता है? नागरिकता विधेयक पर इमरान खान की शरारत भरी टिप्पणी भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप ही नहीं, लोगों को गुमराह करने की कोशिश भी है।

यह सहज ही समझा जा सकता है कि इमरान खान यह धृष्टता इसीलिए कर सके, क्योंकि हमारे कई विपक्षी दल यह दुष्प्रचार करने में जुटे हुए हैं कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी है। आखिर जिस विधेयक का देश के किसी भी मजहब के नागरिकों से कहीं कोई लेना-देना ही नहीं उसे लेकर यह माहौल क्यों बनाया जा रहा है कि वह भारतीय मुसलमानों के हित में नहीं?

नागरिकता विधेयक को लेकर जानबूझकर दुष्प्रचार तब किया जा रहा है जब विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने बार-बार यह स्पष्ट किया कि इस कानूनी कवायद का भारतीय मुसलमानों से कोई लेना-देना नहीं। जो भी इस दुष्प्रचार में लिप्त हैं उन्हें बेनकाब करने की जरूरत है, क्योंकि कोई इस विधेयक को जिन्ना के विचारों के अनुरूप बता रहा है तो कोई भारतीय मूल्यों के प्रतिकूल? क्या भारत का हित इसमें है कि दुनिया भर के लोगों को देश में बसने की इजाजत दे दी जाए?

यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि नागरिकता विधेयक को लेकर दुष्प्रचार करने वाले सब कुछ जानते हुए भी इस तथ्य की अनदेखी करना पसंद कर रहे हैं कि यदि इसमें कुछ विसंगतियां होंगी तो उच्चतम न्यायालय के पास उन्हें दूर करने का अधिकार होगा।

यह अच्छा हुआ कि भारत ने नागरिकता विधेयक पर एक अमेरिकी आयोग की टिप्पणी का प्रतिवाद करने में देर नहीं की। इस आयोग की टिप्पणी अनावश्यक ही नहीं, अज्ञानता से भी भरी है। उसे इससे परिचित होना चाहिए कि खुद अमेरिकी प्रशासन अपने हिसाब से यह तय करता रहा है कि उसे किन देशों के नागरिक स्वीकार हैं और किन देशों के नहीं?

उसके ऐसे कई फैसलों को वहां की अदालतों ने सही भी ठहराया है। अमेरिका या फिर अन्य किसी देश को यह तय करने का अधिकार नहीं मिल सकता कि भारत के नागरिकता संबंधी नियम-कानून कैसे हों? यह आवश्यक है कि भारत सरकार पाकिस्तान को भी सख्त संदेश दे कि वह उसके आंतरिक मामलों में टांग अड़ाने से बाज आए। यह भी उचित होगा कि भारत की ओर से पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के मामले को उठाया जाए।

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