खुफिया सूचना की अनदेखी का ही परिणाम है श्रीलंका में आतंकियों का भयावह हमला

सक्षम और कारगर खुफिया तंत्र के निर्माण के लिए सबसे जरूरी यह है कि इस तंत्र में किसी तरह की राजनीतिक दखलंदाजी न होने दी जाए।

By Bhupendra SinghEdited By: Publish:Thu, 25 Apr 2019 04:31 AM (IST) Updated:Thu, 25 Apr 2019 04:31 AM (IST)
खुफिया सूचना की अनदेखी का ही परिणाम है श्रीलंका में आतंकियों का भयावह हमला
खुफिया सूचना की अनदेखी का ही परिणाम है श्रीलंका में आतंकियों का भयावह हमला

श्रीलंका में हुए भीषण आतंकी हमलों में स्थानीय आतंकियों की लिप्तता के सुबूत सामने आने के साथ ही यह भी स्पष्ट हो रहा है कि उन्हें दुनिया के सबसे बर्बर आतंकी संगठन आइएस की भी मदद मिली। अगर यह साबित हो जाता है कि श्रीलंका को आइएस की साजिश के तहत ही लहूलुहान किया गया तो इसका मतलब होगा कि सीरिया और इराक में इस आतंकी संगठन को खत्म करने के दावे निरर्थक हैैं। श्रीलंका में किए गए आतंकी हमलों में मरने वालों की संख्या 350 से अधिक पहुंच गई हैै।

हाल के समय में इतने अधिक लोग किसी आतंकी हमले का शिकार नहीं बने। यह एक तरह से इस दशक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है। श्रीलंका आतंकियों के भयावह हमलों और उनके कारण हुई व्यापक जनहानि से बच सकता था, यदि उसके अधिकारियों ने भारत की ओर से मुहैया कराई गई खुफिया सूचना पर तनिक भी गंभीरता का परिचय दिया होता। यह हैरानी की बात है कि श्रीलंकाई अधिकारियों ने इस सटीक सूचना पर भी ध्यान देने की जरूरत नहीं समझी कि आतंकी भारतीय उच्चायोग के साथ चर्चों को खास तौर पर निशाना बना सकते हैैं। अब श्रीलंका में इसे लेकर आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी शुरू होता हुआ दिख रहा है कि आतंकी हमलों संबंधी खुफिया सूचना की अनदेखी कैसे हुई, लेकिन इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है। जरूरी यह है कि खुफिया सूचना की अनदेखी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जाए। कार्रवाई उन पर भी की जानी चाहिए जिन्होंने आत्मघाती हमलावरों में शामिल उन तत्वों को छोड़ दिया था जो कुछ समय पहले विस्फोटक रखने के आरोप में गिरफ्तार किए गए थे।

यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि श्रीलंका के साथ-साथ शेष दुनिया भी कुछ सबक सीखे। सबसे पहला सबक तो यही है कि खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान के साथ ही यह सुनिश्चित किया जाए कि उनकी अनदेखी न होने पाए। इसके अलावा आइएस जैसे मानवता के दुश्मन बन गए आतंकी संगठनों पर नए सिरे से लगाम लगाने के उपाय किए जाएं। पता नहीं ऐसा हो सकेगा या नहीं, क्योंकि कुछ देश ऐसे हैैं जो आतंकी संगठनों को पालने-पोसने अथवा अतिवादी तत्वों की अनदेखी करने मेंं लगे हुए हैैं। दुर्भाग्य से ऐसे देश दक्षिण एशिया में ही हैैं। ऐसे में भारत को कहीं अधिक सतर्क रहना होगा। इसलिए और भी, क्योंकि श्रीलंका में आत्मघाती हमलों के लिए जिम्मेदार माने जा रहे संगठन के तार तमिलनाडु के एक समूह से जुड़े होने का अंदेशा है।

नि:संदेह बीते कुछ समय में आतंकी संगठनों पर निगाह रखने वाला तंत्र पहले की तुलना में सक्षम हुआ है और इसका एक प्रमाण यह है कि हमारे खुफिया अधिकारियों को इसकी भनक पहले ही लग गई थी कि आतंकी श्रीलंका में कुछ बड़ा करने की फिराक में हैैं। इसके बावजूद इस तथ्य को ओझल नहीं कर सकते कि पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमले को रोका नहीं जा सका। सक्षम और कारगर खुफिया तंत्र के निर्माण के लिए सबसे जरूरी यह है कि इस तंत्र में किसी तरह की राजनीतिक दखलंदाजी न होने दी जाए और राष्ट्रीय सुरक्षा को दलगत राजनीति का विषय न बनाया जाए।

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