गतिशक्ति योजना: सौ लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मिलेगी रफ्तार

बड़ी परियोजनाओं पर तो शासकों की नजर रहती है लेकिन छोटी परियोजनाओं और खासकर शहरी बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाएं समय पर पूरी हों इसकी सुध नहीं ली जाती। वास्तव में इसी कारण बड़ी परियोजनाओं के आगे बढ़ने के बीच शहरों का बुनियादी ढांचा तेजी से चरमराता हुआ दिखता है।

By TilakrajEdited By: Publish:Thu, 14 Oct 2021 09:53 AM (IST) Updated:Thu, 14 Oct 2021 09:53 AM (IST)
गतिशक्ति योजना: सौ लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मिलेगी रफ्तार
प्रधानमंत्री ने गतिशक्ति योजना से राज्य सरकारों को भी जोड़ने की पहल की

प्रधानमंत्री ने बुनियादी ढांचे और औद्योगिक विकास से जुड़ी परियोजनाओं को रफ्तार देने के लिए गतिशक्ति योजना का शुभारंभ करके अपनी उस प्रतिबद्धता को पुन: प्रकट किया कि उनकी सरकार तीव्र विकास के प्रति समर्पित है। प्रधानमंत्री गतिशक्ति सरीखी किसी योजना की आवश्यकता इसलिए थी, क्योंकि सड़क, बिजली, रेल और एयरपोर्ट आदि से संबंधित परियोजनाओं में अड़ंगा लगने अथवा उनके समय से पूरा न होने की शिकायतें सामने आती ही रहती थीं। बड़ी परियोजनाओं में विलंब से केवल उनकी लागत ही नहीं बढ़ती, बल्कि अन्य अनेक समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं। एक ऐसे समय जब बड़े पैमाने पर बड़ी परियोजनाएं लागू की जा रही हों, तब गतिशक्ति योजना की आवश्यकता और बढ़ गई थी।

यह योजना कितनी महत्वाकांक्षी है, इसका पता इससे चलता है कि इससे करीब सौ लाख करोड़ रुपये की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को गति मिलेगी। चूंकि इस योजना से संबंधित सभी मंत्रलयों, निवेशकों आदि को जोड़ा जा रहा है इसलिए उम्मीद की जाती है कि वह स्थिति नहीं बनेगी जिसका उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘कार्य प्रगति पर है’ का बोर्ड टांगे जाने के बावजूद काम तेजी से आगे नहीं बढ़ता।

यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने गतिशक्ति योजना से राज्य सरकारों को भी जोड़ने की पहल की। इसकी जरूरत इसलिए थी, क्योंकि केंद्रीय परियोजनाओं के मुकाबले राज्य सरकारों की परियोजनाएं कहीं अधिक लेटलतीफी का शिकार होती रहती हैं। उचित यह होगा कि राज्य सरकारें न केवल गतिशक्ति योजना से जुड़ें, बल्कि ऐसी कार्यसंस्कृति भी विकसित करें जिससे बड़ी परियोजनाओं के साथ छोटी परियोजनाओं को भी समय पर पूरा करने में सफलता मिले।

ऐसी किसी कार्यसंस्कृति की आवश्यकता इसलिए है, क्योंकि बड़ी परियोजनाओं पर तो शासकों की नजर रहती है, लेकिन छोटी परियोजनाओं और खासकर शहरी बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाएं समय पर पूरी हों, इसकी सुध नहीं ली जाती। वास्तव में इसी कारण बड़ी परियोजनाओं के आगे बढ़ने के बीच शहरों का बुनियादी ढांचा तेजी से चरमराता हुआ दिखता है। शहरों की छोटी-छोटी परियोजनाएं वर्षों तक लंबित रहने से हर तरफ न केवल अव्यवस्था फैलती है, बल्कि लोगों को तमाम समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। ऐसी स्थिति इसलिए उत्पन्न होती है, क्योंकि शहरी बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने वाले विभाग अपनी परियोजनाओं को समय पर पूरा करने के लिए अपेक्षित सतर्कता का परिचय नहीं देते।

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